जो दुखों में टूटता नहीं, सुख की लालसा में पागल नहीं रहता, जो खुद को संभालना सीख गया, जिसका प्राण वस्तुओं में नहीं बसा है, भय जिसको डराता नहीं, क्रोध में जो अपना नियंत्रण नहीं खोता उसकी बुद्धि मुझसे जुड़ी है मैं उसके लिए दूर नहीं हूं। उसकी बुद्धि स्थित है। जीवन में संयोग-वियोग एवं पाना-खोना चलता रहेगा। योगी व्यक्ति इन स्थितियों में अविचलित रहते हैं। अपनों के द्वारा दिया गया अपमान व्यक्ति को अन्दर तक झकझोर देता है। जिस समय व्यक्ति को अपनों के प्यार की सबसे अधिक आवश्यकता होती है उसी समय साथ छोड़ जाते हैं लेकिन जिनकी आत्मा बलवान है वे इन स्थितियों में भी संतुलन बनाते हैं। इसलिए उस परम पिता परमात्मा का स्मरण करने से व्यक्ति आंतरिक दुर्बलताओं को जीतता है।
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