यदि तुम्हारा कोई अपना स्वतंत्र राष्ट्र नही या तुम्हारी अपने राष्ट्र के प्रति कोई निष्ठा नही,तो तुम बिना डोर की उस कटी पतंग जैसे हो,जिसका कोई निश्चित पता ठिकाना नही" :-
:-विस्मार्क (प्रसिद्ध जर्मन फिलॉसफर)
निसंदेह भारतीय विविधतापूर्ण समाज में यही युक्ति चरितार्थ हो रही है!हमारे भारत में राष्ट्रवाद-सामाजिक समरसता के बनिस्पत अलगाव धर्म- मजहब और जाति का जोर ज्यादा है। हर धर्म-मजहब -पंथ के लोग
सिर्फ अपनी पहचान और 'आस्पद'के लिए संघर्षरत हैं।
जातिवाद का जहर उगलकर मलाईदार परत के साधन सम्पन्न लोग अपने आरक्षण की मलाई जीम रहे हैं ,उन्हें उस मलाई की रखवाली की चिंता है। जिन्हे आरक्षण नहीं मिला अवसरों से वंचित हैं उन्हें उसे हर हाल में पाने की चिंता है। ये तमाम आंतरिक संघर्ष हर देश में हो सकते हैं। लेकिन भारत में कुछ ज्यादा ही हो रहे हैं।
अब यदि 'राष्ट्रवाद' की चिंता करने वाला कोई है ,तो उसे सिर्फ इस वजह से नजर अंदाज नहीं किया जा सकता ,कि वह तो 'संघ परिवार' से है ! और संघ परिवार 'वालों को यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि एकमात्र वे ही सच्चे देशभक्त हैं। क्या उनके तमाम अपराध सिर्फ देशभक्ति के दिखावटी नारे लगाने से छिप जायेंगे? क्या संघ में शामिल सब के सब देशभक्त ही होते हैं ?
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