गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

सत्य को समझने के करीब आ गया

 अब पश्चिम में मनोविज्ञान कह रहा है कि प्रत्येक नर्सरी स्कूल में, किंडरगार्टन में, प्रत्येक प्राइमरी स्कूल में मनोवैज्ञानिक होने चाहिए, जो प्रत्येक बच्चे का एप्टिटपूड—अगर कृष्ण की भाषा में कहें, तो स्वधर्म—उस बच्चे का झुकाव पता लगाएं। और मनोवैज्ञानिक कहे कि इस बच्चे का यह झुकाव है, तो बाप उस बच्चे का कुछ भी कहे कि इसको डाक्टर बनाना है, अगर मनोवैज्ञानिक कहे कि चित्रकार, तो बाप की नहीं चलनी चाहिए। सरकार कहे कि इसे डाक्टर बनाना है, तो सरकार की नहीं चलनी चाहिए। सरकार कितना ही कहे कि हमें डाक्टरों की जरूरत है, हमें पेंटर की जरूरत नहीं है, तो भी नहीं चलनी चाहिए। क्योंकि यह आदमी डाक्टर हो ही नहीं सकता। ही, डाक्टर की डिग्री इसे मिल सकती है, लेकिन यह डाक्टर हो नहीं सकता। इसके पास चिकित्सक का एप्टिटयूड नहीं है। इसके पास वह गुणधर्म नहीं है।

इसलिए पश्चिम का मनोवैज्ञानिक इस सत्य को समझने के करीब आ गया है। और वह कहता है, अब तक बच्चों के साथ ज्यादती हो रही है। कभी बाप तय कर लेता है कि बेटे को क्या बनाना है, कभी मां तय कर लेती है, कभी कोई तय कर लेता है। कभी समाज तय कर देता है कि इंजीनियर की ज्यादा जरूरत है। कभी बाजार तय कर देता है। मार्केट वेल्यू होती है—डाक्टर की ज्यादा है, इंजीनियर की ज्यादा है, कभी किसी की ज्यादा है—इन सब से तय हो जाता है। सिर्फ एक व्यक्ति, जिसे तय किया जाना चाहिए था, वह भर तय नहीं करता है। वह उस व्यक्ति की अंतरात्मा से कभी नहीं खोजा जाता है कि यह आदमी क्या होने को है। बाजार तय कर देगा, मां—बाप तय कर देंगे, हवा तय कर देगी, फैशन तय कर देगी कि क्या होना है।
स्वभावत: मनुष्य विजड़ित हो गया है, क्योंकि कोई मनुष्य वह नहीं हो पाता है, जो हो सकता है। और जब कभी भी हम करोड़ों लोगों में एकाध आदमी वही हो जाता है, जौ होने को पैदा हुआ था, तो उसका आनंद और है, उसका नृत्य और है, उसका गीत और है। उसकी जिंदगी में जो खुशी है; फिर हम तड़पते हैं कि यह खुशी हमको कैसे मिले? कौन—सा मंत्र पढ़ें, कौन—सा ग्रंथ पढ़ें, यह खुशी कैसे मिले? सच बात यह है कि खुशी सिर्फ स्वधर्म के फुलफिलमेंट से मिलती है और किसी तरह मिलती नहीं है।

सच्चा प्रगतिशील -सच्चा धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति कभी भी कल्पना अथवा मिथ का सहारा नहीं लेता! इतिहास का ककहरा जानने वाला भी जानता है कि सभ्यताओं के हर दौर में असभ्य आक्रान्ताओं ने सामंती इतिहास को अपने पक्ष में लिखवायाु है।
जो व्यक्ति यह मानता है कि इब्ने बतूता,अलबरूनी , बाबर,हुमायूँ ,अबुलफजल, जहांगीर रोशनआरा ने जो कुछ लिखा वो सब सच है। तो उस व्यक्ति को यह भी मानना होगा कि यह सच केवल उनका था जिन्होंने लिखा है। भारत का असल इतिहास न तो अंग्रेजों को मालूम पड़ा और न अब तक तो साइंस को ही मालूम हुआ । इसलिए जिन्हें मिथ कह दिया गया है उन किवदंतियों,लोकगाथाओं और रीती रिवाजों की पड़ताल से ही विजित याने हारे हुए गुलाम समाजों का असल इतिहास जाना जा सकता है।अभीतो ये आलमहै कि हरकोई दक्षिणपंथी -वामपंथी विद्वान इतिहास का मीठा -मीठा गप कड़वा-कडवा थू किये जा रहा है

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