गुरुवार, 16 फ़रवरी 2023

मजाक उड़ाने की स्थति में नहीं हैं

 होली का त्यौहार आने वाला है,किन्तु हमारे जम्बूदीपे -भरतखण्डे विनोदी स्वभावे सियासतदां एक दूसरे का मजाक उड़ाने में अभी से व्यस्त हैं। राहुल जी ने अपनी भारत जोड़ो यात्रा पीएम नरेंद्र मोदी का मजाक उड़ाने में खर्च कर दी! उधर भाजपा और मोदी जी ने विगत साढ़े आठ साल कांग्रेस और राहुल का मजाक उड़ाते उड़ाते खर्च कर दिये !

राहुल गांधी भी जब कभी केरल जाते हैं ,तो एक सांस में पीएम नरेंद्र मोदी जी का मजाक उड़ाते हैं और उनके केरलीय लग्गू भग्गू केरल की सत्तारूढ़ सीपीएम का मजाक उड़ाते रहते हैं। बंगाल में ममता के तृणमूली गुंडे बात-बात में सीपीएम ,भाजपा तथा मोदी सरकार का मजाक उडाते रहते हैं। इधर दिल्ली में आप के नेता केजरीवाल सीसोदिया संजयसिंह कभी दिल्ली पुलिस का ,कभी उप-राज्यपाल का और कभी पीएम मोदी जी का मजाक उड़ाते रहते हैं। अतीत में कश्मीरी अलगाववादी देश के शहीदों का खूब मजाक उड़ाते रहे हैं। लालू,मुलायम,नीतीश,शरद,तेजस्वी यादव -ये सभी 'समाजवाद' का मजाक उड़वाते रहे हैं। हिन्दुत्ववादी लोग धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र का मजाक उड़ाया करते हैं !और जो किसी का मजाक उड़ाने की स्थति में नहीं हैं,वो खुद का मजाक उड़वा रहे हैं। जैसे मायावती,स्वामीप्रसाद मौर्य,ममता, फारुख अबदुल्ला,महबूबा और असदउद्दीन औवैसी !
इसी तरह वामपंथी नेता ,कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी भी कहने को तो फासीवाद ,पूंजीवाद और साम्प्रदायिकता से लड़ने का दावा करते हैं,किन्तु मेहनतकशों की नजर में वे खुद अपना ही मजाक उड़वा रहे हैं। चाहे फिदायीन इशरत जहाँ का मामला हो,संसद पर हमले के जिम्मेदार अफजल गुरु का मामला हो ,चाहे मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार याकूब मेमन की फाँसी का सवाल हो , चाहे देश भर में व्याप्त आतंकी घुसपैठ का सवाल हो,चाहे JNU में अलगाववादी नारेबाजी हो,चाहे गुपकार गेंग की राष्ट्र विरोधी हरकत हो, हर मामले में भारतीय वामपंथ जनता की नजर में हेय दृष्टि से देखे जा रहे हैं!
कश्मीर हो या पंजाब देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने वालों की पैरवी हम ही क्यों करते रहते ? जब कभी चीन की फौज विवादित क्षेत्र डोकलाम या तवांग से भारत में घुस आती है तो क्या सीपीसी का कोई भी सदस्य उस 'पीपुल्स लिबरैशन आर्मी' का विरोध करने की हिम्मत कर सकता है? क्या कभी किसी चीनी नेता या कामरेड ने चीन में सताये जा रहे लाखों निर्वासित तिब्बतियों,उईगर मुस्लिमों के लिए आक्रोशित होकर शी जिनपिंग -मुर्दावाद का नारा लगाया ? लेकिन भारत में संसद से लेकर सड़क तक हर ऐरा गैरा नत्थू खैरा मोदीजी को अल्ल वल्ल बक सकता है!
चीनी कामरेडों ने तो दलाई लामा 'जिन्दावाद का नारा कभी नहीं लगाया ! और यदि नहीं लगाया तो अच्छा ही किया। क्योंकि दलाई लामा तो अमेरिकन सम्राज्य्वाद के पिछलग्गू हो गये थे। हमारे भारतीय कामरेड क्या सीपीसी से कुछ सीखेंगे ? अफजल गुरु,याकूब मेनन कोई शांति के मसीहा नहीं थे ! दाऊद ,हाफिज सईद, छोटा शकील, ये सब दलाई लामाँ हैं क्या ? अफजल गुरु जिन्दावाद- का नारा देने वाला -जेएनयू का छात्र नेता कन्हैयालाल अपने आपको कामरेड बताता था, जिसे सीताराम येचुरी दौड़े दौड़े JNU जा पहुंचे थे वह सीपीआई छोड़कर कांग्रेस में चला गया है! यदि सीपीआई की छात्र शाखा एआईएसएफ का कोई नेता उस कन्हैया की इस हरकत का समर्थन करता है ,तो उसे भी कम्युनिस्ट कहलाने का हक नहीं। ग्रामशी प्रणीत साम्यवाद -सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की व्यवहारिकता के अनुशीलन बिना भारत में कोई भी क्रांति संभव नहीं!
यह मेरी निजी या कोरी सैद्धांतिक स्थापना नहीं है।चीनी कयूनिस्ट पार्टी का इतिहास ही इसके लिए पर्याप्त प्रमाण है। उत्तर कोरिया ,वियतनाम,क्यूबा ,चिली ,बेनेजुएला या पूर्व सोवियता संघ की कम्युनिस्ट पार्टी के किसी सदस्य ने ऐंसा कभी नहीं किया।जो दोगलापन चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने भारत के सर्वहारा वर्ग के साथ किया है! सोवियत संघ या रूस में तो क्रांति के गद्दारों -(गोर्वाचेव और येल्तसिन)ने भी इस तरह अपने देश का भद्दा मजाक नहीं उडाया होगा। फिर भी यदि किसी को मजाक उड़ाने का बहुत शौक चर्राया है तो किसी जाति, मजहब का नही बल्कि 'वर्ग शत्रु' का उड़ा लो न कामरेड ! जो अपने ही देश का मजाक उड़ायेगा ,तो सरकार भले ही माफ़ कर दे किन्तु देश की अवाम और सर्वहारा वर्ग क्यों माफ़ करेगा ?
क्या विवेक ,बुद्धि ,प्रगति ,राष्ट्रनिष्ठा इत्यादि रत्न केवल उनके ही पास हैं ,जिन्हे हम पूँजीवादी -साम्प्रदायिक कहते हैं ? आज जो लोग सत्ता से वंचित हैं और सत्ता पक्ष का सिर्फ अंध विरोध ही करते चले जा रहे हैं। हो सकता है की कल वे सत्ता में हों , क्या वे तब भी इस तरह की हरकत करेंगे ? अभी जो जो सत्ता में हैं उन्होंने छल-कपट ,प्रलोभन और भावनात्मक जन-दोहन करके देश की सत्ता हथियाई है । किन्तु ये लोग विपक्ष में होने के वावजूद देश के खिलाफ नारे तो नहीं लगाते ! अब जो दल या व्यक्ति हार गए हैं ,यदि वे सिर्फ विरोध के लिए विरोध ही जारी रखेंगे तो इसकी क्या गारंटी है कि जनता आइन्दा उन्हें अवसर देगी। क्योंकि निषेध की नकारात्मक परम्परा वैसे भी भारत के स्वश्थ चिंतन के अनुकूल नहीं है। कौन महा मंदमति होगा जो इस तरह के प्रमादी - नकारात्मक - आलोचकों का संज्ञान लेगा ? वाला है
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