शनिवार, 28 जनवरी 2023

संतशिरोमणि तुलसीदास परम प्रगतिशील थे

 रामचरितमानस विवाद के मौजूदा प्रसंग में बाबा नागार्जुन का हस्तक्षेपकारी लेख. प्रगतिशील नैतिकता की अनुकरणीय मिसाल.

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प्रगतिशीलता समग्र जीवनदृष्टि है. बाबा नागार्जुन इसकी 'केवल जलती मशाल ' थे. इन दिनों चल रहे रामचरितमानस विवाद में उनके मत को याद किया जाना जरुरी है, क्योंकि वे जन्मना ब्राह्मण थे, तुलसी साहित्य के अध्येता थे, बौद्ध दर्शन में गहरी पैठ रखने वाले थे, किसान आंदोलन में राहुल सांकृत्यायन के साथ लाठियां खाईं , जेल गए, फिर प्रगतिशील साहित्य आंदोलन के आधार स्तंभ बने. अपने शुरुआती दौर में जब वे मात्र 22 वर्ष के थे, तब उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास का महिमामंडन करते हुए 1934 में 'मृत्य्ंजय कवि तुलसीदास' शीर्षक एक डेढ़ पृष्ठ का लेख लिखा था जो 'दीपक' में प्रकाशित हुआ था. तब तक न प्रगतिशील लेखन आंदोलन की उपस्थिति थी और न लेखकों के बीच डिक्लास व डिकास्ट होने की चेतना. प्रगतिशील सांस्कृतिक दृष्टि ने जब बाबा को बैद्यनाथ मिसिर से बाबा नागार्जुन के रुप में परिवर्तित किया तब वे 'बलचनमा', 'वरुण के बेटे' सरीखे उपन्यासों द्वारा हाशिये के समाज के कथाकार और 'हरिजन गाथा' लिखने वाले महाकवि हो चुके थे. 1970 में जब समूचे उत्तर भारत में मानस चतुश्शती समारोहों की धूम मची तब दिल्ली से प्रकाशित प्रगतिशील वैचारिक पत्रिका 'मुक्तधारा' में बाबा नागार्जुन के 'मानस चतु: शताब्दी समारोह' शीर्षक लेख का तीन अंकों में धारावाहिक प्रकाशन हुआ था.इस हस्तक्षेपकारी लेख की उन दिनों बहुत धूम और चर्चा रही. वर्तमान रामचरितमानस विवाद में इस लेख की विस्तृत चर्चा प्रासंगिक है इसमें आज के सारे मुद्दे समाहित हैं ,इसलिए उस लेख के कुछ अंश यहाँ निम्नवत् उद्धृत हैं:
"हमनें बड़ी गहराई से 'मानस चतु:शताब्दी समारोह' के बारे में सोचा है. कलम उठाने से पहले संत प्रवर तुलसीदास की छवि बार-बार ध्यान में बिठाने की कोशिश की है! जितना कुछ हमें तुलसी बाबा की जीवन- कथा के सिलसिले में मालूम हो सका है, तदनुसार उनका व्यक्तित्व यों तो मुझे काफी आकर्षक लगता है. वह अकिंचन पिता और बदनसीब माँ के पुत्र थे. जन्मते ही दरिद्रता का अभिशाप तुलसीदास पर मंडराने लगा होगा.
मगर पचास वर्ष की उम्र के बाद? अच्छे खासे महंत की भूमिका में आ गए थे न? वर्णाश्रम (सनातन) धर्म के पुनरुद्धार का बीड़ा उठा लिया था आपने! लोगों से संत जी ने साफ- साफ कहा -"पूजिय विप्र ग्यान गुन हीना " यानी शूद्र अगर पठित भी हो तो उसको आगे नहीं बढ़ने दो.. यानी बेचारे तुलसीदास की भाव-भूमिका विवेचन करने नहीं बैठा हूँ इस समय. हाँ, इतना तो जोर देकर के प्रबुद्ध पाठकों को बतलाना ही चाहूंगा कि हमारे करोड़ों करोड़ 'शूद्र' भाई 'रामचरितमानस' को कभी खुले दिल- दिमाग से अपना नहीं सकेंगे. हिंदी भाषा- भाषी बहुजन समाज को ब्राह्मणशाही प्राचीरों की दुर्लंघ्य-दुर्भेद्य परिधि के अंदर नियतिवाद की पीनक में पड़े रहने का 'अक्षय-पाठ' पढ़ानेवाला यह 'महाकाव्य: शोषण और प्रवंचना की नई-पुरानी बुनियादों को हिला पाएगा क्या? कबीर और नानक की बराबरी में बिठलाकर तुलसीदास से जवाब-तलब करो तो आपकी असलियत का पता चल जाएगा. तुलसीदास ने ढेर सारी अच्छी-अच्छी बातें 'लोक-भाखा'(अवधी) में कहने हिम्मत की.. उन्होंने दारिद्र्य को ही दशानन बताया . . कभी किसी नवाब या राजा के दरबार में हाजिरी नहीं बजाई.. और इसलिए संतशिरोमणि तुलसीदास परम प्रगतिशील थे, डाक्टर रामविलास शर्मा का यह रुख हमें कभी नहीं जंचा. अपनी 'अंतरात्मा की आवाज' तो जाने कब से उसी मूर्तिभंजक औघड़ के पक्ष में रही है, जिसे कबीर कहते हैं.
क्या हम हरिजनों-गिरिजनों और अहिंदू भारतीयों के लिए 'रामचरितमानस' का संक्षिप्त तथा सुधरा संस्करण नहीं तैयार कर सकते? क्या रामकथा के गायन-वाचन पर पुराणपंथियों का ही एकाधिकार सदा के लिए कायम रहेगा? कुछ अतिआवश्यक सुझाव (क) शूद्र की निंदा और ज्ञान-गुणहीन ब्राह्मण की प्रशंसावाले अंशों को हटाकर आज की दृष्टि से उदार मनोवृत्तिवाले लोगों को जंचने-रुचनेवाला संस्करण जनसाधारण के लिए उपलब्ध हो.(ख) इस अभिनव संस्करण वाले 'रामचरितमानस' में कथामूलक सहज स्वाभाविक अंश ही रहेंगे. पौराणिक अतिरंजनावाले , अवांतर प्रसंगोवाले, नामकीर्तन पर अत्यधिक जोर देने वाले, भक्ति का झाग छलकानेवाले अंश इस नए 'रामचरितमानस' में नहीं होंगें. (ग) रामकथा के शैव-शक्त-जैन-बौद्ध या अन्य रुपांतर भी परिशिष्ट के तौर पर 'संक्षिप्त रामचरितमानस' में जुड़े हों. (घ) सरकारों से बहुतेरी सुविधाएं प्राप्त 'गीता प्रेस' गोरखपुर रामकथा प्रेमी 'शूद्र' हिंदू परिवारों और 'विधर्मी' हिंदीभाषियों को रुचनेवाला 'संक्षिप्त अभिनव रामचरितमानस' प्रकाशित प्रचारित करके अपनी व्यापक सदाशयता का परिचय दे.
उत्तर भारत में कोटि कोटि जनों के लिए रामचरितमानस आज भी अपरिहार्य है' कई मित्रों ने समय समय पर हमसे कहा है. मन ही मन लेकिन देर तक सोचता रह गया हूँ : रामचरितमानस हमारी जनता के लिए क्या नहीं है? सभी कुछ है! दकियानूसी का दस्तावेज है, नियतिवाद की नैया है.. जातिवाद की जुगाली है. सामंतशाही की शहनाई है! ब्राह्मणवाद के लिए वातानुकूलित विश्रामागार.. पौराणिकता का पूजा मंडप क्या नहीं है! सब कुछ है, बहुत कुछ है! रामचरितमानस की बदौलत ही उत्तर भारत की लोकचेतना सही तौर पर स्पंदित नहीं होती. 'रामचरितमानस' की महिमा ही जनसंघ के लिए सबसे बड़ा भरोसा होती है हिंदीभाषी प्रदेशों में.
तुलसी बाबा के व्यक्तित्व में तनिक भी खोट मुझे नजर नहीं आती है... जन्म तो आखिर ब्राह्मण वंश में ही हुआ था न! नानक या कबीरवाली भला प्रखरता कहाँ से लाते?
'रामचरितमानस' के प्रेमी (अंधभक्त नहीं) बहुजनहित और सत्यशोधन की दृष्टि से इस महाकाव्य की एक एक पंक्ति को वास्तविकता की कसौटी पर कसेंगे-आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों यह 'अप्रिय कार्य' उन्हें करना ही पड़ेगा. शूद्र वर्ग और स्त्री वर्ग को सहज अपावन और 'अति अधम' बतलाने वाली एक भी पंक्ति जिस संस्करण में छपी हो, रामचरितमानस का वह संस्करण गैर-कानूनी घोषित हो जाए. हरिजन-गिरिजन विधायक और सांसद इस दृष्टि से सतर्क रहें. ब्राह्मणवादी और सामंतशाही के धूर्त प्रतिनिधि ऊंचे ऊंचे पदों पर जमे बैठे हैं. अब भी मनुस्मृति और रामचरितमानस को ही वे अपने असली 'नीति ग्रंथ' मानते हैं. 'समाजवाद' और 'आर्थिक समता' आदि बहुतेरे शब्द उनके मुख से निकलने पर अपना सही मतलब खो बैठे हैं.
हिंदीभाषी राज्यों के अंदर छोटे- बड़े सैकड़ो शहर हैं, हजारों कस्बे हैं, लाखों गाँव हैं.. सर्वत्र रामचरितमानस के पुराणपंथी अनुशासन का बोलबाला है. परस्पर विरोधी बातों के समर्थन में 'मानस' की चौपाइयां और दोहे सुना- सुनाकर नागरिकों की सिट्टी पिट्टी गुम कर देनेवाले निरक्षर देहाती आपको वहाँ एक एक चौपाल में मिल जाएंगे! गरीबी, अज्ञान, जोर जुल्म, प्रवंचना, और बेइंसाफी को 'विधाता की देन' 'नियतिनटी की लीला' , 'पूर्वजन्मों के बुरे कर्मो का कुफल' मानकर सब कुछ बर्दाश्त करते जानेवाले तथाकथित इंसानों की संख्या करोड़ों करोड़ पहुंचा दी है 'रामचरितमानस' ने! जी हाँ, सारी जिम्मेदारी इसी पोथे पर डालूँगा मैं!
समाजवाद के हमारे सपने तब तक अधूरे ही रहेंगे, जब तक 'मानस' का मोह नहीं टूटता. पिछड़ी जातियों में पैदा होकर भी सौ किस्म की मजबूरियाँ झेलनेवाले साठ प्रतिशत इंसान तब तक सही अर्थों में 'स्वतंत्र और स्वाभिमानी' भारतीय नहीं होंगे, जब तक 'रामचरितमानस' सरीखे पौराणिक संविधान ग्रंथ की कृपा से प्रभु जातीय भारतीयों की गुलामी का पट्टा उनके गले में झूलता रहेगा." (नागार्जुन रचनावली, खंड 6 में संकलित 'मानस चतु:शताब्दी समारोह' शीर्षक लेख का संपादित अंश).
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 भाई लोग तब चुप रहते हैं जब नूपुर शर्मा का गला काटने की धमकी दैने वाले तत्व ऐलान कर रहे थे कि वे 2047 में भारत को इस्लामिक राष्ट्र बना देंगे! अब यदि पं धीरेंद्र शास्त्री ने हिंदूराष्ट्र की बात की है तो तमाम लोग विधवा विलाप कर रहे हैं!

भले मानुष को यह धरती सुहाती तो है!!

 मुश्किल से गुजरी स्याह रात के बाद,

खुशनुमा एक नयी सुबह आती तो है।
घर के आँगन में हो कोई हरा-भरा पेड़,
तो कभी कभी गौरैया भी गाती तो है।।
यों तितलियां जीती हैं सिर्फ आठ पहर,
किंतु जिंदगी उनकी भी मुस्कराती तो है!
जीवन चाहे कितना ही छोटा क्यों न हो,
भले मानुष को यह धरती सुहाती तो है!!
आभामंडल मंद हो या तीव्र दीप्तिमंत का,
प्रकाशकिरण उसके अंतस में समाती तो है!
लहरें दरिया की हों या महासागर कीं,
उमड़ घुमड़ गंतव्य में समाती तो है!!
आज भले ही मौसम है बदमिजाज कुछ,
किंतु बसंत के आने पर कोयल गाती तो है।
क्रूर निष्ठुर नीरस नागर सभ्यता के इतर,
ग्राम्यगिरा में लोरी की आवाज आती तो है!!
गौरैया,तितली,कोयल,लोरी,भोरका कलरव,
सह्रदय इंसानमें जीनेकी उमंग जगाती तो है।
- श्रीराम तिवारी !

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सोमवार, 23 जनवरी 2023

नूर जहीर

 एक था कम्युनिस्ट, नाम था कामरेड सज्जाद जहीर, लखनऊ में पैदा हुए.

ये मियाँ साहब, पहले तो Progressive Writers Association, यानि अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के रहनुमा बनकर उभरे ,और अपनी किताब अंगारे से इन्होने अपने लेखक होने का दावा पेश किया.
बाद मे ये जनाब भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सर्वेसर्वा बने, मगर बाबू साहब की रूह मे तो इस्लाम बसता था, इसीलिए 1947 मे नये इस्लामी देश बने, पाकिस्तान मे जाकर बस गये, इनकी बेगम रजिया सज्जाद जहीर भी उर्दू की लेखिका थी.
सज्जाद जहीर, 1948 मे कलकत्ता के कम्युनिस्ट पार्टी के सम्मेलन मे भाग लेने कलकत्ता पहुँचे, और वहाँ कुछ मुसलमानो ने कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया से अलग होकर CPP यानि कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ पाकिस्तान का गठन कर लिया, जो बांग्लादेश मे तो फली - फूली।
मगर पाकिस्तान मे, सज्जाद जहीर, मशहूर शायर लेखक फैज अहमद फैज, शायर अहमद फराज, रजिया सज्जाद जहीर, और कुछ पाकिस्तानी जनरलो ने मिलकर रावलपिंडी षडयंत्र केस मे पाकिस्तान मे सैन्य तख्ता पलट का प्रयास किया और पकडे जाने पर जेल मे डाल दिये गये। सज्जाद फराज और फैज अहमद को लंबी सजाऐ सुनाई गई
जेल से रिहा होने के बाद सज्जाद जहीर भारत आया और खुद को शरणार्थी घोषित करके कांग्रेस सरकार से भारतीय नागरिता मांगी और कांग्रेस सरकार ने सज्जाद को भारतीय नागरिकता दे दिया.
अब आगे की कथा सुनिये
इन मियाँ साहब, सज्जाद जहीर और रजिया जहीर की चार बेटियाँ थी।
1- नजमा जहीर बाकर, पाकिस्तानी सज्जाद जहीर की सबसे बडी बेटी, JNU मे Biochemistry की प्रोफेसर है.
2- दूसरी बेटी नसीम भाटिया है.
3- सज्जाद जहीर की तीसरी बेटी है, नादिरा बब्बर जिसने फिल्म एक्टर और कांग्रेस सांसद राज बब्बर से शादी की है, इनके दो बच्चे है, आर्य बब्बर और जूही बब्बर.
4- सज्जाद जहीर की चौथी और सबसे छोटी बेटी का नाम है नूर जहीर, ये मोहतरमा भी लेखिका है, और JNU से जुडी है।
नूर जहीर ने शादी नही की और जीवन भर अविवाहित रहने के अपने फैसले पर आज भी कायम है। चूँकि नूर जहीर ने शादी ही नही की, तो बच्चो का तो सवाल ही पैदा नही होता।
अविवाहित होने के बावजूद नूर जहीर के चार बच्चे है, वो भी चार अलग - अलग पुरूषो से।
इन्ही नूर जहीर और ए. दासगुप्ता की दूसरी संतान है पंखुडी जहीर।
ये वही पंखुडी जहीर है, जिसने कुछ ही वर्षो पहले दिल्ली मे संघ कार्यालय केशव कुञ्ज के सामने खुलेआम किस ऑफ लव के नाम से इवेंट आयोजित किया जी हाँ, ये वही है जो कन्हैया कुमार वाले मामले में सबसे ज्यादा उछल कूद मचा रही थी। खुलेआम सिगरेट , शराब, और अनेकों व्यसनों की शौकीन. बिन ब्याही माँ की, दो अलग अलग पुरूषों से उत्पन्न चार संतानों मे से एक पंखुडी जहीर जैसी औरतें, खुद औरतों के नाम पे जिल्लत का दाग है।
इन्ही जैसे लोगो ने JNU की इज्जत मे चार चाँद लगा रखे है।
पाकिस्तान मे कम्युनिस्ट पार्टी आज तक 01% वोट भी नही जुटा पाई, कुल 176 वोट मिलते है इन्हे और पाकिस्तानी सज्जाद जहीर की औलादें, कम्युनिस्टो का चोला पहनकर भारत की बर्बादी के नारे लगा रही हैं।
समझ मे आया ??
JNU के कामरेडो का पाकिस्तान प्रेम और कश्मीर के मुद्दे पर नौटंकी करने का असली उद्देश्य!!
क्या कारण है कि ये पंखुडी दासगुप्ता ना लिखकर खुद को पंखुडी जहीर लिखती है ?
और हाँ, इसकी सगी मौसी के लड़के, नादिरा बब्बर और राज बब्बर की संतान, फिल्म एक्टर आर्य बब्बर का घर का नाम सज्जाद है।

शेखचिल्ली

 शेखचिल्ली अपनी माँ के पास रहते थे पर कुछ काम काज नहीं करते थे ! एक दिन गाँव की हाट में पंसारी की दूकान के पास खाली बैठे थे तभी एक अमीर आदमी दूकान पर आया और उसने पंसारी से घड़ा भर घी खरीदा ! मदद के लिये उसने शेखचिल्ली से पूछा, ‘क्या तुम यह घड़ा मेरे घर पहुँचा दोगे ? मैं तुम्हें इसके बदले में दो सिक्के दूँगा !’ शेखचिल्ली तुरंत राज़ी हो गये ! उन्होंने अपने सिर पर घड़ा रखवा लिया और अमीर आदमी के पीछे-पीछे चल दिये ! आदत के अनुसार वो लगे खयाली पुलाव पकाने ! मैं तो इन पैसों से एक अंडा खरीदूँगा ! अंडे को खूब सम्हाल के रूई पर रखूँगा ! कुछ दिन के बाद उसमें से चूज़ा निकल आएगा ! चूज़ा बड़ा होकर मुर्गी बन जाएगा ! अब तो वह मुर्गी रोज़ अंडे दिया करेगी,, और मेरे पास जब बहुत सारे चूज़े, मुर्गियाँ और अंडे जमा हो जायेंगे तो मैं उनको बेच कर बकरियाँ खरीद लूँगा ! बकरियों के भी बच्चे हो जायेंगे तो मेरे पास ढेर सारे बकरे बकरियाँ जमा हो जायेंगे ! लेकिन बड़ा आदमी बनने के लिये मुझे तो बहुत तरक्की करनी है इसलिए मैं उनको भी बेच दूँगा और फिर मैं भैंस पालने का काम करूँगा ! भैंस के दूध में अच्छा मुनाफ़ा है ! खूब धन जमा हो जाएगा ! माँ भी खुश हो जायेंगी और मुझे निखट्टू कहना बंद कर देंगी ! सबसे पहले तो मैं अपने टूटे हुए घर की मरम्मत करवा के एक सुन्दर सा मकान बनाउँगा ! पड़ोसी तो देखते ही रह जायेंगे ! और फिर तो मेरी शादी के लिये बहुत अच्छे-अच्छे रिश्ते भी आने लगेंगे ! मेरी माँ ज़रूर मेरे लिये एक सुन्दर और आज्ञाकारी पत्नी खोज लेंगी और मेरा जीवन खुशियों से भर जाएगा ! मैं रोज़ भैंसों के लिये चारा काटने जंगल जाया करूँगा और मेरी पत्नी घर का और भैंसों का सारा काम कर दूध निकाला करेगी ! मेरी माँ घर के बाहर बैठ कर दूध बेचा करेगी "

‼️
🟠👉सोचते-सोचते शेखचिल्ली मुस्कुरा भी रहे थे और शरमा भी रहे थे ! अब बाल बच्चे भी तो हो जायेंगे और वहीं घर के आँगन में खेला करेंगे ! शाम को मेरे घर लौटने का इंतज़ार किया करेंगे ! जब शाम को सिर पर भैसों के लिये चारा लाद कर मैं घर आउँगा तो बच्चे ‘अब्बा-अब्बा’ कह कर मेरे पैरों से लिपट जायेंगे ! उन्हें गोद में लेने के लिये मैं सिर के गठ्ठर को वहीं पटक दूँगा और उन्हें गोद में उठा लूँगा ! शेखचिल्ली अपने ख्यालों में इतने डूब चुके थे कि चारे का गठ्ठर पटकने की जगह उन्होंने अपने सिर पर रखा घी से भरा घड़ा ही ज़मीन पर पटक दिया ! घड़ा फूट गया और सारा घी ज़मीन पर फ़ैल गया ! अमीर ने जब यह नज़ारा देखा तो अपना सिर पीट लिया ! शेखचिल्ली को उसने खूब खरी खोटी सुनाई और कहा कि, ‘तुमने तो मेरा सारा घी मिट्टी में मिला दिया !’शेखचिल्ली सदमे में चुपचाप खड़े थे ! डाँट सुन कर बोले, ‘तुम्हारा तो सिर्फ घी ही मिट्टी में मिला है मेरा तो सारा घरबार, बीबी बच्चे, भैंस तबेला, सब के सब मिट्टी में मिल गये ‼️ 😜😜
तो ऐसे थे जनाब शेखचिल्ली ! आज भी कोरे दिवास्वप्न देखने वाले और आधारहीन कल्पना के संसार में विचरने वालों लोगों को शेखचिल्ली की उपाधि से ही नवाज़ा जाता है ‼️

बागेश्वरधाम सरकार की जय


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दूसरों की आस्था को अंधविश्वास और पाखंड कह देना अनैतिक और असंवैधानिक है ! जिन्हें आस्था पर यकीन नहीं उन्हें मालुम हो कि उनकी तथाकथित अनास्था क्या है? अनास्था भी केवल स्वछंदतावाद ही है न! आस्था तो पवित्र और निहायत निजी मसला है, यहाँ तर्क -कुतर्क को कोई स्थान नहीं,क्योंकि सनातनी की विशुद्ध सात्विकि आस्था में किसी अनिष्ट की कोई गुंजाइश ही नहीं! बल्कि आस्था उत्पन्न होते ही सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होने लगता है! वंदे भवानी शंकरौ श्रद्धा विश्वास रूपिणो....
सिर्फ सनातनी हिंदू ही नही, दूसरे अन्य धर्म पंथ भी, जो परम अहिंसक हैं,उनके उपासना मार्ग में प्रवेश करते ही मानव मन में ऊर्जा का संचरण होने लगता है! मैं पूरे होशोहवास में कहता हूं कि हिंदु धर्म पर हमला करने वाले लोग वामपंथी बुद्धिजीवी नही हैं, बल्कि वे ईसाई तनखैया मिशनरीज और गजवा ए हिंद तथा सनातन विरोधी वाह्य षडयंत्रकारी हैं......
इसीलिये जोर से बोलो... बागेश्वरधाम सरकार की जय हो! धीरेंद्र शास्त्री महाराज की जय हो!
(नोट :- यह पोस्ट केवल आस्थावान मित्रो और हर एक सनातनी के लिये है)r
दूसरों की आस्था को अंधविश्वास और पाखंड कह देना अनैतिक और असंवैधानिक है ! जिन्हें आस्था पर यकीन नहीं उन्हें मालुम हो कि उनकी तथाकथित अनास्था क्या है? अनास्था भी केवल स्वछंदतावाद ही है न! आस्था तो पवित्र और निहायत निजी मसला है, यहाँ तर्क -कुतर्क को कोई स्थान नहीं,क्योंकि सनातनी की विशुद्ध सात्विकि आस्था में किसी अनिष्ट की कोई गुंजाइश ही नहीं! बल्कि आस्था उत्पन्न होते ही सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होने लगता है! वंदे भवानी शंकरौ श्रद्धा विश्वास रूपिणो....
सिर्फ सनातनी हिंदू ही नही, दूसरे अन्य धर्म पंथ भी, जो परम अहिंसक हैं,उनके उपासना मार्ग में प्रवेश करते ही मानव मन में ऊर्जा का संचरण होने लगता है! मैं पूरे होशोहवास में कहता हूं कि हिंदु धर्म पर हमला करने वाले लोग वामपंथी बुद्धिजीवी नही हैं, बल्कि वे ईसाई तनखैया मिशनरीज और गजवा ए हिंद तथा सनातन विरोधी वाह्य षडयंत्रकारी हैं......
इसीलिये जोर से बोलो... बागेश्वरधाम सरकार की जय हो! धीरेंद्र शास्त्री महाराज की जय हो!
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बागेश्वर सरकार के खिलाफ साजिश का भंडाफोड़, देश के एक अरबपति सुपरस्टार का प्लान,पंडित धीरेंद्र शास्त्री को कर दो बर्बाद, ऑपरेशन बाबा हैदूसरों की आस्था को अंधविश्वास और पाखंड कह देना अनैतिक और असंवैधानिक है ! जिन्हें आस्था पर यकीन नहीं उन्हें मालुम हो कि उनकी तथाकथित अनास्था क्या है? अनास्था भी केवल स्वछंदतावाद ही है न! आस्था तो पवित्र और निहायत निजी मसला है, यहाँ तर्क -कुतर्क को कोई स्थान नहीं,क्योंकि सनातनी की विशुद्ध सात्विकि आस्था में किसी अनिष्ट की कोई गुंजाइश ही नहीं! बल्कि आस्था उत्पन्न होते ही सकारात्मक ऊर्जा का संचरण होने लगता है! वंदे भवानी शंकरौ श्रद्धा विश्वास रूपिणो....
सिर्फ सनातनी हिंदू ही नही, दूसरे अन्य धर्म पंथ भी, जो परम अहिंसक हैं,उनके उपासना मार्ग में प्रवेश करते ही मानव मन में ऊर्जा का संचरण होने लगता है! मैं पूरे होशोहवास में कहता हूं कि हिंदु धर्म पर हमला करने वाले लोग वामपंथी बुद्धिजीवी नही हैं, बल्कि वे ईसाई तनखैया मिशनरीज और गजवा ए हिंद तथा सनातन विरोधी वाह्य षडयंत्रकारी हैं......
इसीलिये जोर से बोलो... बागेश्वरधाम सरकार की जय हो! धीरेंद्र शास्त्री महाराज की जय हो!
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