शेखचिल्ली अपनी माँ के पास रहते थे पर कुछ काम काज नहीं करते थे ! एक दिन गाँव की हाट में पंसारी की दूकान के पास खाली बैठे थे तभी एक अमीर आदमी दूकान पर आया और उसने पंसारी से घड़ा भर घी खरीदा ! मदद के लिये उसने शेखचिल्ली से पूछा, ‘क्या तुम यह घड़ा मेरे घर पहुँचा दोगे ? मैं तुम्हें इसके बदले में दो सिक्के दूँगा !’ शेखचिल्ली तुरंत राज़ी हो गये ! उन्होंने अपने सिर पर घड़ा रखवा लिया और अमीर आदमी के पीछे-पीछे चल दिये ! आदत के अनुसार वो लगे खयाली पुलाव पकाने ! मैं तो इन पैसों से एक अंडा खरीदूँगा ! अंडे को खूब सम्हाल के रूई पर रखूँगा ! कुछ दिन के बाद उसमें से चूज़ा निकल आएगा ! चूज़ा बड़ा होकर मुर्गी बन जाएगा ! अब तो वह मुर्गी रोज़ अंडे दिया करेगी,, और मेरे पास जब बहुत सारे चूज़े, मुर्गियाँ और अंडे जमा हो जायेंगे तो मैं उनको बेच कर बकरियाँ खरीद लूँगा ! बकरियों के भी बच्चे हो जायेंगे तो मेरे पास ढेर सारे बकरे बकरियाँ जमा हो जायेंगे ! लेकिन बड़ा आदमी बनने के लिये मुझे तो बहुत तरक्की करनी है इसलिए मैं उनको भी बेच दूँगा और फिर मैं भैंस पालने का काम करूँगा ! भैंस के दूध में अच्छा मुनाफ़ा है ! खूब धन जमा हो जाएगा ! माँ भी खुश हो जायेंगी और मुझे निखट्टू कहना बंद कर देंगी ! सबसे पहले तो मैं अपने टूटे हुए घर की मरम्मत करवा के एक सुन्दर सा मकान बनाउँगा ! पड़ोसी तो देखते ही रह जायेंगे ! और फिर तो मेरी शादी के लिये बहुत अच्छे-अच्छे रिश्ते भी आने लगेंगे ! मेरी माँ ज़रूर मेरे लिये एक सुन्दर और आज्ञाकारी पत्नी खोज लेंगी और मेरा जीवन खुशियों से भर जाएगा ! मैं रोज़ भैंसों के लिये चारा काटने जंगल जाया करूँगा और मेरी पत्नी घर का और भैंसों का सारा काम कर दूध निकाला करेगी ! मेरी माँ घर के बाहर बैठ कर दूध बेचा करेगी "







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