भारत में कुछ लोग जिन्हें गलत फहमी है कि वे न्यो इंटैलेक्चुअल हैं,वैश्विक अध्येता हैं दुर्भाग्य से उनमें अधिकांश हिंदू विरोधी और सनातन धर्म विरोधी हैं! ये लोग केवल सनातनी संतों की आध्यात्मिक शक्ति को चुनौती देते हैं! किंतु इनमें दम नही कि किसी गैर हिंदू चमत्कार को चुनौती दे सकें!
'अजमेर शरीफ* हजरत निजामुद्दीन या देश भर में तमाम दरगाहों पर सदियों से चमत्कार का जिक्र होता आ रहा है, किंतु किसी भी बुद्धिवादी/कुतर्कवादी की हिम्मत नही कि उनको चुनौती दे सके! लोग मक्का मदीना क्यों जाते हैं ? वे सैर सपाटे या मजा मौज के लिए नही जाते बल्कि खुदा की जियारत करने और दुआ मांगने के निमित्त तमाम कष्ट उठाकर वहां जाते हैं, उनके समस्त पाक क्रिया कलापों में जिस चमत्कार की आशा की जाती है,उस पर कब किस ने चुनौती दी?
मदर टेरेसा को मरने के कई साल बाद संत (Saint) की उपाधी मिली थी? क्यों? क्योंकि इस उपाधि को पाने वाले की एक विशेष योग्यता यह होनी चाहिए कि जिसे संत की उपाधि दी जा रही हो, उसके जीवन में कम से कम एक चमत्कार तो अवश्य होना चाहिये! कहने का तात्पर्य यह है कि "काणी अपनी आँख न देखे, दूसरों की पर पर के देखे!"हिंदू समाज के सारे दुश्मन तत्व कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री महाराज को चुनौती देने की बात कर रहे हैं!
सनातन हिंदू संत महात्माओं को चुनौती देने वाले यह न भूलें कि जब एक ब्रहसमाजी युवक नरेंद्रदत्त ने स्वामी रामकृष्ण परमहंस को चुनौती थी कि *तुम्हारी दुर्गा माता का अस्तित्व है तो साबित करो*स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने जब उस युवा जिज्ञासु की चुनौती स्वीकार की तो वही नास्तिक नरेंद्र - स्वामी विवेकानंद हो गया! चमत्कार हर युग में हर जगह होते रहे हैं, यह अलग बात है कि जादू टोना के बहाने कुछ कम अक्ल के लोग शुद्ध सात्विक आस्था के पीछे लट्ठ लेकर पिल पड़ते हैं!
मैं चुनौती देता हूँ कि जो सनातन धर्म के किसी विषय पर हस्तक्षेप करते हैं तो वे बताएं कि संस्कृत साहित्य,पाणिनी व्याकरण और वेद वेदांग का अध्यन किये बिना हिंदू धर्म के गूढ़ रहस्यों को जाने बिना किसी पूज्य सनातनी संत के प्रति नकारात्मक सोच और वैमनस्य का भाव आप कैसे रख सकते हैं!
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