मंगलवार, 10 जनवरी 2023

जाने क्यों नजारे आज उखड़े हुए हैं।

 सूरज के घोड़े आज बिगड़े हुए हैं।

कोई और दिशा में वो दौड़े हुए हैं।
कांपते हैं होठ ‌और आंखों में धुंध है,
जाने क्यों नजारे आज उखड़े हुए हैं।
अपनी नींद भी आज डरी डरी रही,
जैसे सपनों के बहुत चिथड़े हुए हैं।
ख्वाबों का सफर बहुत लम्बा न हो,
हकीकत की जमीं पांव पकड़े हुए है।
तुम दूर तक नहीं चल पाओगे साथ,
पैर अभी तो जख्मों से जकड़े हुए हैं।
गोया कल फिर धूप निकलेगी यहीं,
आंख रोशनी हाथ शोले पकड़े हुए हैं।
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