रविवार, 22 जनवरी 2023

मन की शक्ति

 हताशा में डूबे किसी शख़्स को हिम्मत बंधाने के लिए सदियों से जो औपचारिक तरीके अपनाए जाते रहे हैं, उनमें मन को मजबूत करने की सलाह सबसे आम है। एक सुंदर सलाह है, मन के जीते जीत है, मन के हारे हार। यानी महज सोच लेने या विचार कर लेने से परिस्थितयां बदली जा सकती हैं।

इस मनोहर वाक्य की जड़ें भारतीय दर्शन और अध्यात्म ही नहीं, समूचे विश्व के दार्शनिकों और विचारकों के निष्कर्षों से जुड़ी रही हैं। विचार की शक्तियों को सबने अपने तरीके से समझाया है। स्वामी विवेकानंद ने तो इसे बाकायदा एक विज्ञान की संज्ञा दी। उन्होंने कहा कि मन की शक्तियों या विचार की ताकत से उपजे चमत्कार असाधारण, लेकिन स्वाभाविक होते हैं। वे उसी तरह नियमों से बंधे होते हैं, जैसे संसार के अन्य भौतिक दृश्य। प्रकृति ने किसी व्यक्ति विशेष को ऐसी शक्ति देकर पैदा नहीं किया। क्रमपूर्वक अध्ययन और अभ्यास से इसे कोई भी हासिल कर सकता है। इस विज्ञान को उन्होंने राजयोग का नाम दिया। उनका मानना था कि असाधारण शक्तियां हर किसी के मन में हैं। यह मन सृष्टि में अखंड रूप से मौजूद मन का अंश है यानी हर मन एक दूसरे से जुड़ा है।
कैसे? यह समझने के लिए साल 1900 में लॉन्स एंजेल्स, कैलिफॉर्निया में 'मन की शक्तियां' विषय पर हुए व्याख्यान पर आते हैं। बाद में इस पर एक क़िताब 'मन की शक्तियां और जीवन गठन की साधनाएं' आई थी। स्वामी विवेकानंद ने अपनी बात की शुरुआत ऐसी कुछ चमत्कारिक घटनाओं के साथ की, जो उनकी आंखों देखी थीं।
वह बताते हैं, 'मैंने सुना कि एक शख़्स किसी के मन के गुप्त सवालों के जवाब तुरंत दे देता है। भविष्य में होने वाली घटनाओं तक के बारे में बता देता है। मैं हैरान हुआ और कुछ साथियों को लेकर उनके पास गया। हमने अपने सवाल सोच लिए। भूलें न, इसके लिए उनको काग़ज़ पर लिखकर जेब में रख लिया। उस शख़्स ने जैसे ही हममें से एक को देखा, हमारे सारे गुप्त सवालों को न केवल दोहरा दिया, बल्कि उनके जवाब भी दिए। इसके बाद उन्होंने काग़ज़ पर कुछ लिखा और उसे मोड़कर मुझे दिया। कहा कि उस पर मैं साइन कर दूं। उस काग़ज़ को उनके कहे मुताबिक मैंने बिना देखे अपनी जेब में रख लिया। मेरे साथियों ने भी। फिर भविष्य में होने वाली कुछ घटनाओं पर रोशनी डालते हुए उन्होंने कहा कि हम किसी भी भाषा के किसी भी शब्द या वाक्य को सोच लें।'
'मुझे लगा कि वह संस्कृत बिलकुल नहीं जानते होंगे, इसलिए मैंने संस्कृत का एक लंबा वाक्य सोच लिया। तब उन्होंने कहा कि हम जेब से वह काग़ज़ निकाल लें। मैंने काग़ज़ देखा तो संस्कृत का वह बड़ा-सा वाक्य उस पर ज्यों का त्यों लिखा था। घंटे भर पहले उस वाक्य के लिखे जाते वक़्त उन्होंने सबसे कह भी दिया था कि वह शख़्स उसी वाक्य को मन में निश्चित करेगा और यह सच निकला। मेरे एक साथी ने तो अरबी भाषा का वाक्य सोचा था। यह कुरान से लिया गया था। एक अन्य साथी जो डॉक्टर थे, उन्होंने जर्मन भाषा में लिखी वैद्यक पुस्तक से एक वाक्य सोचा था। सब उसी भाषा में उस जेब वाले काग़ज़ के टुकड़े पर लिखे मिले।'
Swami Vivekananda on Raja Yoga
मन से सब एक
ऐसे ही एक और चमत्कार का ज़िक्र करते हुए स्वामी विवेकानंद ने हैदराबाद के ऐसे ब्राह्मण के बारे में बताया जो ऐसी चीज़ तुरंत मंगवा देते, जो आपने मन में सोची हो। एक दिन स्वामी विवेकानंद उनसे मिले तो केवल लंगोटी छोड़कर उन्होंने और उनके साथियों ने उनसे सारे कपड़े वगैरह ले लिए। अपने पास से एक कम्बल ओढने के लिए उन्हें दे दिया और एक कोने में बैठ जाने को कहा। 50 आंखें उनको ध्यान से देख रही थीं। ब्राह्मण ने अपने मन की वस्तुओं के नाम काग़ज़ पर लिख देने के लिए कहा।
स्वामी विवेकानंद कहते हैं, 'सबने ऐसी-ऐसी चीज़ों के नाम लिखे, जो उस प्रदेश में पैदा ही नहीं होती थीं। जैसे अंगूर के गुच्छे, नारंगियां वगैरह। काग़ज़ के टुकड़े उनको दे दिए। कुछ देर में उस कम्बल में से सारी चीज़ें ढेर की ढेर निकलती चली गईं। उनको अगर तौला जाता तो वे उन ब्राह्मण के वजन से दोगुनी होतीं। अब उन्होंने उन फलों को हमसे खाने के लिए कहा। लेकिन मायाजन्य या कृत्रिम फल समझकर हमें उनको खाने में हिचकिचाहट होने लगी। फिर उन्होंने ख़ुद उनको खाना शुरू कर दिया तो हमने भी खाया। फलों का स्वाद सामान्य था। पूछने पर उन्होंने कहा, 'यह सब है तो हाथ की सफाई ही'। लेकिन केवल हाथ की सफाई के बल पर यह सब कर दिखाना असंभव जान पड़ता है। इतनी मात्रा में इतनी तरह की चीज़ें भला कहां से लाई जा सकती हैं?'
स्वामी विवेकानंद का कहना था कि ऐसी चमत्कारिक घटनाएं भारत ही नहीं, सभी देशों में होती हैं। स्वामी विवेकानंद इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह सब असाधारण शक्तियां हर मनुष्य के मन में हैं।
एक उदाहरण से वह समझाते हैं। वह कहते हैं, 'आपने देखा होगा कि एक जगह बैठा इंसान जो सोचता है, वह विचार ठीक उसी रूप में दूसरी जगह बैठे मनुष्य के मन में पैदा हो जाता है। संयोगवश नहीं, वरन तैयारी के साथ एक व्यक्ति दूर बैठे दूसरे व्यक्ति के पास संदेश भेजना चाहता है। दूरी का महत्व नहीं। यदि मेरा मन आपके मन से भिन्न होता तो ऐसा कैसे संभव हो पाता? विचार पहले आकाश स्थित लहरों यानी वाइब्रेशन में घुल-मिल जाता है और वह वाइब्रेशन तुम्हारे मस्तिष्क में प्रवेश करती है। फिर विचार का रूप ग्रहण करती है। मन ‘यूनिवर्सल’ है। सबके मन उस यूनिवर्सल अखंड मन के ही हिस्से हैं।'
जो सोचते हैं, वह होता है
2006 में रोंडा बर्न की एक क़िताब आई थी, द सीक्रेट। इसके आने से पहले इसी नाम से फिल्म बनी। रोंडा इसमें इसी लॉ ऑफ अट्रैक्शन यानी आकर्षण के नियम को कहती हैं। इस नियम के मुताबिक, आपके जीवन में जो कुछ हो रहा है, उसे आप ख़ुद अपने जीवन में अपनी ओर खींच रहे हैं। हर चीज को आप विचार और दिमाग़ में बसी तस्वीरों के जरिए आकर्षित करते हैं। आप जो सोचते हैं और जो तस्वीरें दिमाग़ में रखते हैं, वे आपकी ओर खिंची चली आती हैं। वह कहती हैं, 'इतिहास में आकर्षण के इन नियमों का ज़िक्र होता रहा है। सभी धर्मों में है। कहानियों और ग्रंथों में है। बस हम ध्यान नहीं देते। ऐसे में अनजाने में अनचाही चीज़ों के बारे में सोचकर हम उनको भी अपनी ज़िंदगी में खींच लेते हैं।'
इसके तीन साल बाद दिमाग़ी शक्ति और तरंगों पर रिसर्च करने वाली ब्रेंडा बार्नबे ने क़िताब लिखी 'बेयॉन्ड द सीक्रेट'। इसमें उन्होंने द सीक्रेट से एक क़दम आगे बढ़कर यह बताया कि हमें अपने विचारों को विजुअलाइज कैसे करना है, यानी दिमाग़ में उनकी तस्वीर कैसे बनानी है ताकि लॉ ऑफ अट्रैक्शन उनको हम तक पहुंचा सके। क़िताब के 'द क्रिएटिव पावर ऑफ द माइंड' सब टाइटल में अंग्रेज कवि और बुद्धिजीवी जेम्स ऐलेन की 1902 में (यानी स्वामी विवेकानंद के उस व्याख्यान के महज़ दो साल बाद) आई क़िताब 'ऐज ए मैन थिंकेथ' का ज़िक्र है।
38 साल की उम्र में ऐलेन बड़ी कंपनी में ऊंचे ओहदे पर काम कर रहे थे। जब विचारों की इस चमत्कारिक शक्ति से उनका साक्षात्कार हुआ तो नौकरी छोड़कर पत्नी के साथ झोपड़ी में रहने लगे। मेडिटेशन में ज़्यादातर वक़्त बिताते हुए उन्होंने दिमाग़ी ऊर्जा पर बहुत उपयोगी साहित्य रचा। ऐलेन कहते हैं, 'आदमी बिलकुल वैसा है, जैसा वह सोचता है। उसके विचारों का सार ही उसका चरित्र है। वह अपने विचारों का स्वामी है, जो ख़ुद अपने हालात, वातावरण और किस्मत को आकार देता है।'
विचारों पर कौन, कैसे और कितना नियंत्रण कर सकता है, यह अलग विषय हो सकता है, लेकिन इस बात पर लगभग सब एकमत रहे हैं कि जो कुछ है वह हमारे विचारों यानी हमारे मनोविज्ञान में है। हमारी खुशियां, दुख, हताशा, उल्लास, सब हमारे विचारों से जन्मे हैं। और अगर ऐसा है, तो सोच की ताकत को कोई कैसे नकार सकता है!

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