हरएक स्याह रात के बाद,
फिर से नई सुबह आती तो है !
निहित स्वार्थ से परे हो शख्सियत
जिंदगी बेपनाह जगमगाती तो है!
समष्टि चेतना का हर नाम रूप,
है किंचित रूहानी इबादत जैसा!!
तान सुरीली स्वागत जैसे समष्टि का,
पसारा जिंदगी का भव्य सूरज जैसा!
हो मानवीय संवेदनाओं की बगिया-
महकती है और कोयल गाती तो है !!
व्योम में बजें वाद्यवृन्द पावस के यदि,
हर एक भोर खिलखिलाती तो है !
हर एक स्याह रात के बाद,ूी
फिर से नई सुबह आती तो है !!
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