कल्पना करें कि 70 सवारियों से ठसाठस भरी 55 सीटर बस के बाहर कुछ लोग और खड़े हैं, किंतु जो अंदर बैठे हैं, उनका कहना है कि बस के अंदर सिर्फ उनकी जाति वालों को ही अंदर बिठाया जाये! सवाल यह है कि जो दुर्भाग्यवश बाहर खड़े हैं, क्या उनका इस विराट भारतीय लोकतंत्र में कोई हक नहीं ?
राज्य या केंद्र सरकार जब कुछ संगठित जाति विशेष के लोगों को ही दूध मलाई खिलाएगी,सरकारी नौकरियों में बिठायेगी,तो उन बेचारों का क्या होगा,जो बेहद गरीब हैं, जिनके पास व्यापार करने के लिए पूंजी नही है, खेती करने के लिए जमीन नही है ? और दुर्भाग्य से जिनके माथे पर सवर्ण का ठप्पा लगा है ! बदकिस्मती से वे दलित आदिवासी भी नही हैं? जय हिंद! जय आरक्षण! जय संविधान!
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