प्राणघातक उदासीनता
कॉर्टेज़ (Cortes)एक साहसिक स्पैनिश ठग था। जुलाई 1519 में वह मेक्सिको पहुँचा। उससे पहले एक दशक में स्पैनिश लोगों ने क्यूबा के स्थानीय लोगों को नरसंहार व अपने साथ लाई बीमारीयो के द्वारा समाप्त कर दिया था। क्यूबा मेक्सिको से एक हज़ार मील दूर था।
इस दूरी को नोट करे।
तो जब वह 550 साथी लूटेरों के साथ मेक्सिको के तट पर उतरा तो लोगों की भीड़ इकट्ठि हो गयी। कॉर्टेज़ बोला,"We come in peace. Take us to your leader." (Peace पढ़कर आपको माफ़िया गैंग याद आए तो आपका दोष नही, आपका गुण है।) कॉर्टेज़ ने झूठ बोला कि वो एक स्पेन के राजा का दूत है, और उसे वहाँ के राजा से मिलवाया जाय। वहाँ के राजा ऐज़्टेक (Aztec) थे। वह अपने समय की महान सभ्यता थी। युरोप से बहुत आगे। कॉर्टेज़ कोई दूत नही था, वह तो एक लूटेरा था।
उन दिनो यूरोप में नहाने की परम्परा नही थी। स्पैनिश जहाँ जाते उनके साथ एक दो स्थानीय व्यक्ति धूप बत्ती जलाकर चलते, कि दुर्गन्ध छुपी रहे।
कॉर्टेज़ को मोनेटजुमा, ऐज़्टेक शासक के पास ले जाया गया। जब कॉर्टेज़ की बात शासक से हो रही थी तो उसने अपने साथियों को एक संकेत दिया। उसके साथियों ने मोंटेज़मा के सारे अंगरक्षको मार डाला। उसके साथियों के पास इस्पात की तलवारें थी, मोंटेज़मा के अंगरक्षको के पास लाठियाँ व पत्थर के ब्लेड वाले भाले थे। कॉर्टेज़ ने मोंटेज़मा को बंदी बना लिया।याने के मेक्सिको के सम्राट को बंदी बना लिया।
लेकिन उसने सम्राट से कहा कि वो उसे मारेगा नही, अगर सम्राट अभी भी सम्राट होने का बहाना करे। मोंटेज़मा मान गया। मेक्सिको में सम्राट ने पूरी सत्ता केंद्रित की हुई थी। अतः पूरी सत्ता कॉर्टेज़ के हाथ में आ गयी। कई महीनो तक ऐसा चला। मोंटेज़मा वही आदेश देता जो कॉर्टेज़ कहता। कॉर्टेज़ ने मोंटेज़मा से सारे राज जान लिए। उसने पता लगा लिया कि साम्राज्य में कौन कौन मोंटेज़मा से नाख़ुश है। अन्तत दरबारियों ने मोंटेज़मा व कॉर्टेज़ के विरुद्ध विद्रोह कर दिया, व नया सम्राट चुन लिया व कॉर्टेज़ को शहर से बाहर कर दिया।लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। कॉर्टेज़ ने सम्राट से नाख़ुश लोगों को अपने साथ मिलाया और ऐज़्टेक की राजधानी पर चढ़ाई कर क़ब्ज़ा कर लिया। उसने स्पेन व क्यूबा से और बहुत सारे लोगों को बुला लिया और अपना साथ देने वाले locals को भी मार डाला। सौ साल के अंदर ऐज़्टेक के नब्बे प्रतिशत लोग मारे गए, कुछ नरसंहारो में व बाक़ी नई बीमारियों में। बाक़ी दस प्रतिशत दास बनाए गए।
कॉर्टेज़ के आने के दस साल बाद ही एक और स्पेनिश, पिज़्ज़रो, इनका (Inca) साम्राज्य में जा पहुँचा।उसके पास मात्र 168 सिपाही थे। इनका उस समय का अमरीका का ही नही, पूरे विश्व का सबसे बड़ा साम्राज्य था। वह पेरू से चिली तक फैला हुआ था।
इनका व ऐज़्टेक की राजधानियों में दूरी क़रीब 4000 मील थी। इसे भी नोट करे।
पिज़्ज़रो ने कॉर्टेज़ की हुबहु नक़ल की। उसने राजदूत बन वहाँ के सम्राट से मिलने की इच्छा बतायी, व मिलने पर उसे बंदी बना लिया। जैसे हिंदू राजा के मरते ही सेना भाग खड़ी होती थी, सम्राट के बंदी बनते ही पूरा साम्राज्य ठप हो गया। पिज़्ज़रो ने भी सम्राट के विरोधी लोकल लोगों की मदद से पूरे साम्राज्य पर क़ब्ज़ा कर लिया। इनका लोगों का भी वही अंजाम हुआ जो ऐज़्टेक का हुआ था। समाप्तम भवति।
550 व 168 लोगों ने दुनिया के बहुत उन्नत व बड़े साम्राज्यो की इति कर दी।
तो?
तो? मतलब?
मूर्तिपूजक बेहद बुद्धिमान होते है। दुनिया का पूरा विज्ञान मूर्तिपूजकों द्वारा निर्मित गणित पर ही टिका है(Hindu and Greek) मूर्तिपूजक बेहद सहनशील, सहिष्णु भी होते है।
तो?
असल में मूर्तिपूजकों में एक fatal flaw है। Deadliest fatal flaw. Destructive switch. मूर्तिपूजक सेल्फ़-सेंटर्ड होते है, अपने में मगन। अपना मोक्ष, अपनी मुक्ति, अपना वंश। अपना परिवार, या ज़्यादा से ज़्यादा अपनी जाति।
दुनिया से कोई मतलब नहीं, कुछ जानने की इच्छा नही, कुछ सीखने की इच्छा नही, कुछ खोजने की इच्छा नहीं।
कोई अन्वेषण नहीं, कोई adventure नहीं। कोई ख़तरे से खेलना नहीं, कोई रिस्क नही लेने का।
ऐज़्टेक जैसे साम्राज्य को नहीं पता था कि क्यूबा ख़त्म हो चुका है, कि अब इस्पात के अस्त्र लिए घूम रहे है लोग। महल से बाहर किसी को पता नहीं कि सम्राट बंदी है।
इनका को नही पता था कि ऐज़्टेक में राजदूत के भेष में आए स्पैनिश ने क्या किया। दोनो साम्राज्य में किसी ने सौ साल में इकट्ठा होकर मुट्ठी भर स्पेन वालों को पराजित नही किया, सब एक एक कर समाप्त हो गए लेकिन साथ नहीं आए।
भारत में किसी ने नहीं जाना कि सिंध में क्या हुआ व काबुल में क्या हुआ। कन्नौज में किसी ने नहीं जाना कि दिल्ली में क्या हुआ। बाबर तोप लेकर आया तो हम हाथी पर बैठकर मुक़ाबले में पहुँचे। तोप देखी ही नही थी क्या होती है।
कभी ये नहीं तय किया कि राजा मारा गया तो कमान कौन सम्भालेगा। युद्ध्क्षेत्र में ही कौन नम्बर दो है। किसी ने नही जाना कि प्लासी में क्या हुआ। गोवा में सैकड़ों साल नर संहार चला हिंदुओं का, शेष भारत के किसी हिंदू ने नही जाना कि गोवा में क्या चल रहा है।
आज भी राज है इसी प्राण घातक आत्मकेंद्रित मानसिकता का।
कैराना ख़ाली हुआ तो आसपास के गाँव के हिंदुओं को नही पता, काँधला के हिंदुओं को नही पता, शामली के हिंदुओं को नहीं पता, पानीपत के हिंदुओं को नही पता। काँधला ख़ाली होगा तो बडौत के हिंदुओं को नहीं पता चलेगा।
या पता चल भी जाए तो फिक्र नहीं होगी।
मेरठ का शास्त्रीनगर ख़ाली हो रहा है तो गढ़ रोड व विश्वविद्यालय रोड के हिंदुओं को नहीं मतलब।
डॉक्टर नारंग को घर से खींच कर पीट पीट कर मारा गया तो पड़ोसीयो को नही पता, विकासपुरी से हिंदू भाग रहे है तो बाक़ी दिल्ली को नही पता।
केरल में आज एक हिंदू के हत्या कर दी गयी, हर सप्ताह होने वाली हिंदू हत्या की कड़ी में, तो ना केवल केरल के हिंदुओं को पता, बाक़ी भारत के हिंदुओं को भी नहीं पता।
बंगाल बिहार UP तमिलनाडु केरल कर्नाटक में दीमके धर्म को खोखला कर गयी, किसी हिंदू को नही पता।
मेरा परिवार, मेरा वंश, मेरा मोक्ष, मेरी मुक्ति, मेरी गाड़ी, मेरा मकान, मेरा कुत्ता।
क़ुरान नही पढ़ी, बाइबल नहीं पढ़ी। 1947 में क्या हुआ, नहीं पता, 1971 में क्या हुआ, नहीं पता।
बस यही आत्मघातकी आत्मकेंद्रित सोच।
मुझे क्या, मेरा क्या।
कहते है कि अंत समय में डायनासौर के शरीर सुन्न हो गए थे। उन्हें अपने शरीर के घाव भी पता नही चलते थे। कोई पूँछ भी चबा रहा होता था तो उस डायनासौर को पता नही चलता था।
मूर्तिपूजक उन्ही डायनासौर का पुनर्जन्म है, सुन्न हुए डायनासौर का।
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