भले ही भारत के अर्धसामंती,अर्धपूंजीवादी समाज में कई ग्रुपों में बिखरे पड़े वामपंथ को अतीत में पर्याप्त सफलता नही मिली!किंतु तब भी पूर्ववर्ती कॉ नम्बूदिरीपाद,कॉ.ज्योति बसु,कॉ.ए.के.गोपालन,कॉ.हरकिसन सिंह सुरजीत, कॉ इंद्रजीत गुप्ता,कॉ बीटीआर, कॉ.प्रमोद दासगुप्ता, कॉ ए. वी. बर्धन, कॉ. होमी दाजी जैसे सर्वहारा के असली हीरो जब तक जिंदा रहे, सारी दुनिया में भारतीय वामपंथ की तूती बोलती रही! पं.नेहरू और इंदिराजी ने वामपंथ को बहुत सताया,किंतु हमारे तत्कालीन कामरेड कभी भी श्रीहीन नही हुए!
किंतु मौजूदा वामपंथी नेता लगभग श्रीहीन हो चुके हैं! वे कैडरों को लगातार संघर्ष में झोंकते चले जाते हैं!जनवादी केंद्रीयताऔर केंद्रीय जनवाद सिर्फ अधिवेशनों में पारित किये जाने के कागजी प्रस्ताव मात्र रह गए हैं! वे भारत के निर्वाचित प्रधानमंत्री और सेवाभावी हिंदु संगठनों को आतंकी सिद्ध करने में लगे रहे! घोर अल्पसंख्यकवादी हो जाने का ही परिणाम है कि पूरा वामपंथ एकजुट होकर भी कन्हैयाकुमार जैसे एक पापुलर स्टारको एक दोयम दर्जे के भाजपाई नेता से नही जिता सके!
धर्मनिरपेक्षता (मुस्लिम परस्ती) से वामपंथ को क्या मिला? लगातार 'रामलला मंदिर' की जगह,बाबरी मस्जिद बताने से,कश्मीरी पत्थरबाजों पर अरण्यरोदन करने से,धारा 370 और CAA/NRC के गलत सलत इंटरपिटेशन से पढ़ा लिखा बंगाली हिंदू भी नाराज हो गया! नतीजा यह कि बंगाल में चौथे नंबर पर हैं!
मौजूदा वामपंथ की गलत सलत लाइन के कारण,वामपंथ त्रिपुरा में भी हार गया! मानिक सरकार जैसा ईमानदार नेता भी हारने को मजबूर कर दिया!वेशक भाजपा ने हर राज्य में चुनाव जीतने के घटिया तरीके अपनाए,तो क्या? केरल में सही लाइन से चलकर वामपंथ ने भाजपा को मैदान में धूल चटा दी!
वामपंथ के द्वारा कश्मीरी पत्थरबाजों की पैरवी और वर्ग विशेष के साथ देशभर में जुगलबंदी जनता को रास नही आई! अत: जब कभी जहाँ कहीं चुनाव होते हैं तो वामपंथ की मेहनत का फल कहीं कांग्रेस को कहीं,सपा-वसपा को,कहीं राजद को किसी और गैरभाजपाई दल को मिल जाता है। और वामपंथ हारने के बाद फिर नारा लगाता है कि
*लडेंगे तो जीतेंगे भी *
*सभी साथियों को क्षमा सहित सादर समर्पित *
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