धन्य है ,कोरोना वायरस, एक झटके में घुटनों पर ला दिया समस्त मानव जाति को। उड़े जा रहे थे, उड़े जा रहे थे । कोई चाँद पर कब्जे की तैयारी कर रहा है तो कोई मंगल पर। कोई सूरज को छूने की कोशिश कर रहा है तो कोई अंतरिक्ष में आशियां ढूँढ रहा है । चीन पड़ोसी देशों की जमीन हड़पने की तैयारी में तो रूस और अमेरिका nuclear power के नशे में पूरे विश्व को ध्वस्त करने की कोशिश में लगे हैं ।
कहीं धर्म के नाम पर नरसंहार चल रहा है तो कहीं जाति के नाम पर अत्याचार ।छोटे छोटे बच्चों के बलात्कार किये जा रहे हैं । मानव जाति तो जैसे समाप्त हो चुकी है ।
ईश्वर ने मानो एक संदेश दिया है - जय कोरोना
"मैंने तो तुम लोगों को रहने के लिए इतनी खूबसूरत धरती दी थी । तुम लोगों ने इसे बर्बाद करके नर्क बना दिया । मेरे लिये तो आज भी सब एक छोटे से प्यारे से परिवार की तरह हो। मुझे नहीं पता कि कहां चीन की सीमा खत्म हो कर भारत की सीमा शुरू होती है । मुझे नहीं पता कि कहां ईरान है और कहां इटली और कहां जर्मनी । ये सब तुम लोगों ने बनाया है ।
मुझे नहीं पता कि कौन ईसाई है, कौन मुस्लिम, कौन हिन्दू, कौन यहूदी और कौन बौद्ध है । मुझे नहीं पता कि कौन ऊँची जाति का है तो कौन नीची जाति का ।
मैंने तो सिर्फ़ इन्सान बनाया था । क्यों एक दूसरे को मार रहे हो? प्यार से नहीं रह सकते क्या? जानते हो कि सब छोड़ कर मेरे पास ही आना है तब भी छीना झपटी, नोचा खसोटी, कत्ले-आम मचा रखा है ।
अभी तो मैंने तीसरा नेत्र थोड़ा सा ही खोला है । संभल जाओ और सुधर जाओ, फिर मत कहना कि मैंने मौका नहीं दिया । एक बार वसुधैव कुटुंबकम की तरह रह कर तो देखो, सब ठीक हो जाएगा ।"
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