आधुनिक साइंस की सबसे प्रचण्ड रिसर्च यह है कि"-
''ब्रह्मांड में कभी भी कुछ भी नष्ट नहीं होता,ऊर्जा और पदार्थ की अविनष्टतता
एवं नित्य परिवर्तनशीलता ही इस ब्रह्मांड का अटल नियम है"
इस सिद्धांत को पुष्ट करने के लिए दुनिया में सिर्फ पाश्चात्य भौतिकवादी दर्शन ही नही बल्कि भारतीय वेदांत दर्शन और उपनिषदों की बड़ी धाक रही है। भारतीय षडदर्शन का अधिकांस चिंतन विज्ञान आधारित ही है।
आदि शंकराचार्य की यह घोषणा है कि 'ब्रह्म सत्यम जगन्मिथ्या' भी 'ऊर्जा की अविनष्ट्ता के सिद्धांत' से मेल खाती है। जिस तरह ऊर्जा को पदार्थ में और पदार्थ को ऊर्जा में रूपांतरित कर सकते हैं,किन्तु वे कभी नष्ट नहीं होते,उसी तरह विशिष्ठ चैतन्य और समष्टि चैतन्य भी एकदूजे में रूपान्तरित होते रहते हैं,किंतु नष्ट नही होते!
यह रूपान्तरण जब विशिष्ठ चैतन्य में होगा तो उसको जीवन मुक्ति या मोक्ष कहते हैं। वैदिक मतानुसार कर्मफल कभी नष्ट नहीं होते। उनके अनुसार त्रिगुणमयी माया अर्थात पृथ्वी जल आकाश वायु अग्नि इत्यादि पंचमहाभूतों के मायाविष्ट चैतन्य से सृष्टि हुई है।
सभी जीव समान रूप से उस एक 'ब्रह्मतत्त्व' के ही प्रति उत्पाद हैं। अर्थात सिर्फ मनुष्य ही नही बल्कि जीव मात्र -जन्तु,जलचर,थलचर,नभचर सहित तमाम जड़-चेतन समरूप से एक ही विराट सत् चित् आनंद के प्रति उत्पाद हैं!
किंतु इस परम सत्य और आत्मानंद की अनूभूति के लिये देश समाज और पुरा पड़ोस में शांति बहुत जरूरी है!शांति के लिये शाम दाम दंड भेद जरूरी है!और यदि ये सब विफल हो जायें तो सीमित युद्ध भी जरूरी है!सभ्य मुल्क की सिर्फ सेना ही नही बल्कि हर नागरिक को चाहे वो सन्यासी ही क्यों न हो,अन्याय और शोषण के खिलाफ मुस्तैदी से लड़ना चाहिये!वह अन्यायी चाहे बाहर का हो या अपने ही घर का क्यों न हो, उसका प्रतिकार किये बिना सुख शांति, सम्रद्धि और आत्म कल्याण कुछ भी संभव नही है!
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