रविवार, 5 जनवरी 2020

नई सुबह आती तो है ।

हरएक स्याह रात के बाद,
फिर से नई सुबह आती तो है ।
तलाश है ज़िसकी तुम्हें हर वक्त,
वो मौसमे बहार आती तो है ।।
निहित स्वार्थ से परे हो शख्सियत
जिंदगी बेपनाह जगमगाती तो है।
समष्टि चेतना को दे दो कोई नाम,
किंचित रूहानी इबादत जैसा!
हो तान सुरीली स्वागत समष्टि का,
व्यवहार जिंदगी का सूरज जैसा!!
तब मानवीय संवेदनाओं की बगिया,
महकती है और कोयल गाती तो है ।
यदि व्योम में बजें वाद्यवृन्द पावस के,
तो भोर हर मौसम खिलखिलातीतो है !
हर एक स्याह रात के बाद,
फिरसे नई सुबह आती तो है !

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