ई. हूफर -नामक पाश्चात्य विद्वान ने बहुत सही कहा था-
“जब पहाड़ों को खिसकाने के लिये आवश्यक तकनीकी कौशल हो तो उस आस्था की आवश्यकता ही नहीं जो पहाड़ खिसकाती है।”
यह पाश्चात्य सिद्धांत भारतीय कर्मयोग सिद्धांत से काफी मेल खाता है।अर्थात आस्थावान हो या अनास्थावान कर्म तो करना ही पड़ेगा! तत्पश्चात कर्मफल भी जरूरी नही कि मिल ही जायेगा ! पहाड़ खिसकाने के लिए खुद तुम्हे ही माथापच्ची करनी होगी। साइंस और टेक्नालाजी की शरण में जाना होगा।मनुष्य का परिश्रम, साइंस और टेक्नालाजी का अथवा ईश्वरीय आस्था या स्तुति की मोहताज नहीं। उसका तो यह आत्म अनुसन्धान ही काफी है कि पूजा-पाठ या स्तुति से नतीजे आएंगे इसकी गारन्टी कोई नहीं देगा,किन्तु परिश्रम और बुध्दि कौशल से एक दिन अवश्य हाजिर हो जायेंगे।
“जब पहाड़ों को खिसकाने के लिये आवश्यक तकनीकी कौशल हो तो उस आस्था की आवश्यकता ही नहीं जो पहाड़ खिसकाती है।”
यह पाश्चात्य सिद्धांत भारतीय कर्मयोग सिद्धांत से काफी मेल खाता है।अर्थात आस्थावान हो या अनास्थावान कर्म तो करना ही पड़ेगा! तत्पश्चात कर्मफल भी जरूरी नही कि मिल ही जायेगा ! पहाड़ खिसकाने के लिए खुद तुम्हे ही माथापच्ची करनी होगी। साइंस और टेक्नालाजी की शरण में जाना होगा।मनुष्य का परिश्रम, साइंस और टेक्नालाजी का अथवा ईश्वरीय आस्था या स्तुति की मोहताज नहीं। उसका तो यह आत्म अनुसन्धान ही काफी है कि पूजा-पाठ या स्तुति से नतीजे आएंगे इसकी गारन्टी कोई नहीं देगा,किन्तु परिश्रम और बुध्दि कौशल से एक दिन अवश्य हाजिर हो जायेंगे।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें