अमेरिका,रूस,जापान,जर्मनी,इंग्लैंड,फ़्रांस अथवा भारत-किसी भी मुल्क के राजनैतिक फलकपर नजर डालिये,सभी देशोंके वर्तमान शासक या तो ट्रम्प,पुतिन,सिंजो आबे की तरह खुद पूँजीपति हैं या वे भारतीय शासकों की तरह पूँजीपतियोंके एजेंट हैं। ये बात जुदा है कि ट्रम्प को अमेरिकी सीनेटमें ही विरोध झेलना पड़ रहा है!शायद उन्हें गलतफहमी थी कि वे जो कहेंगे दुनिया में वही सब होगा।
बड़े देशों के लूटखोर पूँजीपति और करप्ट नेता 'परोपकार' के लिए सत्ता में नहीं आये हैं। चूँकि भारत जैसे विकासशील देशों के कैपिटलिस्ट दल और उनके नेता अपने वित्त पोषक पूंजीपति वर्ग के समक्ष केवल दुम हिलाना ही जानते हैं। इसलिए वे चाहते हुये भी जन हितैषी नीतियों पर अमल नही कर सकते!वैश्विक परिष्थितियां इशारा कर रहीं हैं कि समानता,बंधुता,और आर्थिक स्वतंत्रता के लिए पुनः संघर्ष का बिगुल बजेगा ! और इस क्रांति का नेतत्व अब सर्वहारा वर्ग नहीं करेगा ! बल्कि सूचना और संचार तकनीकी में दक्ष ,साइंस -टेक्नालाजी में दक्ष उच्च शिक्षित आधुनिक युवा वर्ग इसका नेतृत्व करेगा !
परिस्थिति हर तरह से क्रांति के अनुकूल है केवल 'वर्ग चेतना'की दरकार है। यह सब मार्क्स एंगेल्स की शिक्षाओं से ही सम्भव होगा ! जाति -पांति और मजहब आधारित संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली अब शनै:शनै: और मजबूत होगी और भृष्ट चुनाव प्रक्रिया से जीत कर आने वाले नेताओं को जनता नकार देगी! इसलिये आइंदा एक अलग किस्म की बुर्जुआ क्रांति ही भारत में सम्भव है!
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