आपकी विद्वत्ता इससे नहीं मानी जायेगी कि आप कितना अधिक पढ़े-लिखे हैं ?औरआप कितने बड़े ज्ञानी या विद्वान हैं !यह इससे भी मूल्यांकित नहीं होगा कि आप कितने महान गणितज्ञ हैं ?आपकी विद्वत्ता इससे सुनिश्चित नहीं हो सकती कि आपने दर्शनशास्त्र,समाज शास्त्र,मनोविज्ञान,भूगोल,अंतरिक्ष विज्ञान, परमाणुविज्ञान,भाषाविज्ञान,व्याकरण,नृतत्व समाजशास्त्र,भूगर्भशास्त्र ,चिकित्साविज्ञान का कितना अध्यन किया है ? आपने ईश्वर, धर्म,मजहब ,अध्यात्म और राजनीतिशास्त्र पर क्वंटलों कागज काले क्यों न कर डाले हों ? आपका संचित ज्ञानकोष चाहे कितना ही समृद्ध क्यों न हो ? यदि आप किसी रोते हुए बच्चे को हँसा नहीं सकते ,यदि आप अपने ही सपरिजनों या बुजुर्गों को खुश नहीं रख सकते ,यदि आप खुद भी सहज खुशियों से महरूम हैं तो आपका संचित ज्ञान कोष खुद आपके लिए भी जहर ही है।जिससेआप तत्काल मुक्त हो जाइये ! आप सहज,सरल और तरल जीवन जीने की कोशिश कीजिये! यदि आप वास्तव में ज्ञानी हैं तो किसी भी व्यक्ति,विचार अथवा वस्तु के अंधव्यामोह से बचिए बहुजनहिताय-बहुजनसुखाय की सोचिये और अहं का बोझ तत्काल उतारकर तुरंत फेंक दीजिये !
:-श्रीराम तिवारी
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