गुरुवार, 2 जनवरी 2020

दासत्वबोध

भारतीय संत कवियों के नाम में 'दास' शब्द पता नहीं कब कैसे जुड़ गया। उनके नाम का 'दास' वाला हिस्सा ईश्वरीय नाम का पदबन्ध नहीं है,यह कोई ब्रिटिश क्राउन प्रदत्त उपाधि भी नहीं है ! और यह दासत्वबोध इस्लामिक जगत के बर्बर बादशाहों,निरंकुश खलीफाओं द्वारा प्रदत्त तमगा भी नहीं है!
धार्मिक अंधश्रद्धा ने और कायराना कर्मकांड ने सामंतवादी गुलामी के अवशेषों को बहुत आस्था से संजोये रखा है!जबकि इसी पतित दासत्वबोध ने अतीत में 'अखण्ड भारत' को खंड -खंड किया है । भारत की मेहनतकश पीढ़ियों को सैकड़ों साल तक जो गुलामी भोगनी पड़ी और जिसका बहुत भारी असर मौजूदा पूंजीवादी दौर में भी है,उसकी वजह यह 'दास' शब्द ही है।

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