मार्क्सवादी विद्वानों और हिन्दुत्ववादी धंधेखोरों में पहला अंतर तो विद्वत्ता और धंधेबाज़ी का है, दूसरा, अंतर यह है कि मार्क्सवादी सत्य को समग्रता में देखते हैं ! जबकि हिन्दुत्ववादी गप्प और एकांगिकता के वशीभूत होते चले जाते हैं। तीसरा अंतर यह है कि मार्क्सवादी लोग ग़रीबों,मजूरों और किसानों के प्रति अटूट रुप से जुड़े रहते हैं, जबकि हिन्दुत्ववादी अमीरों के हितों से जुड़े हैं। चौथा,मार्क्सवादी सच्चे देशभक्त होते हैं,जैसे,भगतसिंह आदि,जबकि नकली हिन्दुत्ववादी भले ही अंधराष्ट्वादी हों,किंतु वे देशभक्त कदापि नहीं होते! वे हमेशा फासिज्म के अनुगामी होते हैं। पांचवां-सच्चे मार्क्सवादी लैंगिक असमानता को गलत मानते हैं,जबकि हिंदुत्वादी और अन्य मजहबों के कट्टरपंथी पुरुषसत्तात्मकता से बुरी तरह आक्रांत हैं!वे नारीमात्र को जड़ वस्तु की तरह देखते हैं!
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