- यदि भारतीय राजनीति के विगत ६ दशकों की राजनीतिक हस्तियों को उनके- व्यक्तित्व,कृतित्व,विचारधारा, ,शैक्षणिक योग्यता, लोकप्रियता एवं सामाजिक सरोकारों के नार्म्स पर आधारित- सिलसिलेवार श्रेष्ठता क्रम में सूचीबद्ध किया जाये,तो मेरी सूची इस प्रकार होगी ..
{१}मोहनदास करमचंद गाँधी {२}पंडित जवाहरलाल नेहरु {३}बाबा साहिब वी आर आंबेडकर
{४}मौलाना आज़ाद {५}लाल बहादुर शाश्त्री {६}सर्व पल्ली राधाक्र्ष्णन
{७}सरदार पटेल {८}ई एम् एस नम्बूदिरिपाद {९}इंदिरा गाँधी
{१०}जयप्रकाश नारायण {११]ज्योति वसु {१२}माधव सदाशिव गोलवलकर
{१३}वी टी रणदिवे {१४]श्रीपाद अमृत डाँगे {१५}हरकिसन सिंह सुरजीत
[१६}शंकरदयाल शर्मा {१७}अटलबिहारी वाजपई {१८}राजीव गाँधी
{१९]लालकृष्ण आडवानी {२०}सोनिया गाँधी {२१}अर्जुन सिंह ....
मेनें यह यह वरीयता सूची १०० तक ही बनाई है. हममें से हरेक अपनी मेधा शक्ति के आधार पर कुछ इसी तरह की सूची बनाकर देखे तो स्वर्गीय अर्जुन सिंह के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व को अपने मानकों पर मूल्यांकित कर उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि व्यक्त कर सकता है . मैनें {२१}वें क्रम पर श्री अर्जुन सिंह जी को स्थापित किया है. वो अब हमारे बीच नहीं है,कल४ मार्च -२०११ को एम्स-नई दिल्ली में उनका निधन हो गया है. हालाँकि उक्त सूची में भी अब तीन ही मौजूद हैं -अटलजी ,अडवाणी जी और सोनिया गाँधी .शेष सभी अब इस दुनिया में नहीं हैं.
किसी भी महान व्यक्तित्व के धीरोदात्त चरित्र चित्रण के लिए किसी साहित्यिक विशेष योग्यता की जरुरत भले न हो किन्तु मानवीय सम्वेदनाओं की अजश्र धारा और व्यक्ति विशेष के सन्दर्भ में सटीक जानकारियों के साथ -साथ उसके समकालिक घटनाक्रम की वास्तविक छवि निरूपण की क्षमता तो होना ही चाहिए.इस हेतु मैं श्री अर्जुन सिंह जी के बारे में कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन सुधी पाठकों पर छोड़ता हूँ .
घटना एक -आज से लगभग २८ वर्ष पूर्व का वाकया है.मैं बज्रंग्नगर -इंदौर में किराये के मकान में रहता था.मकान मालिक ने आधा हिस्सा खाली रख छोड़ा था . एक दिन सुबह उठा तो देखा की पड़ोस वाले हिस्से में काफी चहल- पहल है, उत्सुकता वश किसी से पूंछा की कौन है ? हमें बताया गया की १२ अधेढ़ उम्र के लोग रीवा-सीधी आँचल से आर आई ट्रेनिंग के लिए इंदौर आये हैं. वे बघेली में ही बात करते थे. बात बात में दाऊ साब के बारे में फुसफुसाते रहते थे तब मैं नहीं जनता था कि ये दाऊ कौन हैं ? उनको परिवार साथ लाना संभव नहीं था अतएव वे सभी इस डेड़ कमरे के मकान में ठस गए .उनका ट्रेनिंग सेण्टर यहीं अनूप टाकिज के पास था.वे सभी उम्र में मुझसे काफी बड़े थे किन्तु रोज सुबह सुबह उठकर'पायं लगी' कहते और पैर छूते थे,वे सभी अपने आपको अर्जुनसिंह जी का रिश्तेदार बताते थे . मेरे कई मित्र और सपरिजन वेरोजगार थे अतः इन नवागंतुक पड़ोसियों से जानकारी ली कि राजस्व विभाग में भरती कि प्रक्रिया क्या है? इन लोगों ने हमें बताया कि सब दाऊ साब कि कृपा है और जब मैंने आग्रह किया कि दाऊ साब से कहकर दो -चार गरीबों का भला और करवा दो ,तो दूसरे ही दिनउन सबने मकान ही छोड़ दिया.मैंने काफी खोज खबर ली तो पता चला की ये सभी पटवारी थे जिन्हें एक सरलीकृत प्रशाशनिक प्रक्रिया से रेवेनुए इंस्पेक्टर बना दिया गया,ये सभी भर्तियाँ संदेहास्पद थीं .उसी समय पटवारी वर्ग तथा मध्य प्रदेश के अन्य कई विभागों में हजारों की तादाद में नियुक्तियां हुईं किन्तु ये सौभाग्य सिर्फ उन्ही को प्राप्त हुआ जिनके पास रिश्वत देने का इंतजाम था.उस समय मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह थे .
घटना दो -जब१९९५-९६ में प्रदेश के प्रख्यात आदिवासी नेता शिव भानु सिंह सोलंकी को मुख्यमंत्री प्रस्तावित किया जा रहा था,अधिकांस विधायक उनके साथ थे .श्री अर्जुनसिंह जी का भी वरदहस्त उनके साथ था तो उनके रिश्तेदार दिग्विजय सिंह ही मुख्य मंत्रीपद पर आसीन कैसे हो गए?
घटना तीन-राजीव गाँधी की हत्या के बाद कांग्रेस के कर्णाटक अधिवेशन में और कांग्रेस के इतिहास में शायद पहली बार और अंतिम बार ऐंसा हुआ की २० सदस्यीय कांग्रेस कार्य समिति के चुनाव गुप्त मतदान से हुए.सबसे ज्यादा वोट अर्जुनसिंह को मिले वे कांग्रेस के नंबर वन हो चुके थे ,फिर ऐंसा क्या हुआ की नरसिम्हाराव ने सभी चुने गए कार्य समिति सदस्यों से त्याग पत्र ले लिया और बाद में पराजित लोगों को कार्य समिति में लपक लिया .अर्जुन सिंह शानदार विजय के बाद भी २० वें नंबर पर नामजद कैंसे हो गए ?
घटना चार -देश भर से अर्जुन सिंह को समर्थन मिल रहा था ,लेकिन वे बार बार सोनिया गाँधी को आगे आने -बागडोर संभालने ,नेत्रत्व करने की विनती करते रहे और सोनियाजी ने उनकी एक नहीं सुनी .नरसिम्हाराव ने तो उन्हें लगभग अप्रसांगिक कर दिया और फिर दाऊ ने तिवारी कांग्रेस बनाकर देश की कौनसी सेवा की .आज न तो वो कांग्रेस है और न वे तिवारी {नारायण दत्त} इस लायक हैं की दाऊ को श्रधा सुमन अर्पित कर सकें .
इन घटनाओं के अलावा और भी ढेरों हैं जो दाऊ अर्जुन सिंह के व्यक्तित्व पर रौशनी डालती हैं .अर्जुनसिंह के कई रूप थे वे कुँअर अर्जुन सिंह के रूप में भारत के सामंत वर्ग को सुहाते थे.वे सर्वहारा वर्ग के उत्थान के लिए कभी कभार कल्याणकारी नीतियों पर सकारात्मक वक्तब्य रखकर वामपंथ को बहलाते थे. वे वामपंथी वुद्धिजीवियों के आश्रयदाता ,राजीव गाँधी साक्षरता मिशन के प्रणेता और भारत ज्ञान -विज्ञान -समिति जैसी अनेकों एन जी ओ के सृजनहार थे .
श्री अर्जुनसिंह जी ने डी पी मिश्र और पंडित जवाहरलाल नेहरु कि मिश्रित नीतियों को अपना अलग पैटर्न दिया. मुसलमान और अन्य अल्पसंख्यक उन पर भरोसा करते थे,क्योंकि दाऊ अक्सर दक्षिण पंथी हिंदुत्व वाद पर आक्रमण करते रहते थे ,मुझे याद नहीं कि उन्होंने कभी उन तत्वों का विरोध किया हो जो minorities के नाम पर समाज में और देश में ग़दर मचाते रहे.अजीत जोगी जैसे ब्यूरोक्रेट और टेक्नोक्रेट अर्जुन सिंह का सहारा पाकर सत्ता में पहुंचे फिर उन्होंने वक्त पर अर्जुन सिंह का साथ क्यों नहीं दिया ?
देश कि जनता ने अर्जुन सिंह को खूब प्यार दिया . वे प्रधानमंत्री वनने कि स्थिति में भी एक दो बार आ चुके थे किन्तु उनका राजनीतिक पराभव इस ढंग से हुआ कि वे सीधी और चुरहट तक सीमित रह गए . जीवन के अंतिम आम चुनाव में अपनी वेटी को भी हारता देखा . जिन्दगी भर नेहरु परिवार को देश से ऊपर माना .दाऊ का अंत क्या द्वारका के पतन जैसा नहीं है .
दुर्वासा के श्राप से द्वारका के यादव जब आपस में लड़ मरे तो कृष्ण ने अपनी अंतिम यात्रा के समय अर्जुन को हस्तिनापुर से बुलवा भेजा .अर्जुन के साथ बचे खुचे यादवों ,औरतों ,बच्चों को हस्तिनापुर भेज दिया.रास्ते में झाबुआ के भीलों ने उन सबको लूट लिया .अर्जुन ने गांडीव कि धोंस दी तो भील बालकों ने अर्जुन का गांडीव भी छीन लिया ...अर्जुन को मार पीट कर जिन्दा छोड़ दिया बाकि सभी धन दौलत लूट ली .
लोक प्रसिद्द है .
पुरुष बली न होत है ,समय होत बलवान .
भिल्लन लूटीं गोपिका ,वही अर्जुन वही बाण ...
दाऊ अर्जुन सिंह को -जन -काव्य भारती की ओर से श्रद्धा सुमन समर्पित ....
श्रीराम तिवारी
अर्जुन सिंह जी का जो चित्रण आपने किया है सही है.जैसी करनी वैसी भरनी उनके साथ हुआ है.
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