सोमवार, 28 मार्च 2011

चेन्नई केंद्रीय कार्यसमिति ने केरल सरकार को बधाई दी....

   दिनांक २२ मार्च से २५ मार्च तक चेन्नई के राजीव गाँधी मेमोरिअल सी टी टी सी में संपन्न मान्यता प्राप्त संघ की केन्द्रीय कार्य समिति बैठक में निम्नांकित प्रस्ताव पारित किये गए ...
       एक- तमाम पूंजीवादी आक्रमणों के वावजूद पी एसयु  को बचाया जा सकता है.इसके लिए दो ही रास्ते हैं  अ-प्रतिगामी नीतियों के खिलाफ जनांदोलन खड़ा किया जाये जिसका नेत्रत्व कर्मचारियों को करना चाहिए . बाज़ार की प्रतिस्पर्धा के मद्देनज़र उसकी मांग के अनुसार उत्पादनों का और मानव संसाधनों का युक्तियुक्तकरण किया जाये.
दो- केन्द्रीय सार्वजनिक उद्द्य्मों में जो बीमार या घाटे में हैं वे यह आशा नहीं करते की जो सरकार अकेले टेलीकाम सेक्टर में ही एकअदद टू-जी स्पेक्ट्रम के लिए १  लाख ७६ हजार करोड़ का घपला चुप चाप पचा सकने की क्षमता के वावजूद निजी  कारपोरेट क्षेत्र को स्वान टेलिकॉम या कलिग्नार टी वी की तर्ज पर वेळआउट पैकेज दे सकती है, यह सब चलता  रहता  यदि बड़ी अदालत  ने करारी  चोट  न  की होती  , वो विश्व बैंक या इंटर नेशनल मोनिटरी फंड के  घोषित दिशा निर्देशों की अवग्याँ कैसे कर सकती है? अर्थात अपने ही सार्वजनिक उपक्रमों को लूटने की खुली छूट देंने से इनकार कैसे कर सकती है? चूँकि यहाँ संगठित कर्मचारी अधिकारी संघर्ष के लिएमैदान में  हैं सो इन सार्वजनिक उपक्रमों को ओउने -पोने दाम पर बाजार में ठीकरे के भाव बेचने और निजी क्षेत्र को अबाध मुनाफा कमाने की छूट देने के वावजूद सरकार की किरकिरी हो रही है.की अब तक २५० पी एस यूज भारत की जनता के कल्याण हेतु न केवल जिन्दा हैं बल्कि -एल आई सी ,एस बी आई बी एस एन एल एवं ओ एन जी सी जैसे महारत्न तो अभी भी शक्तिशाली मुद्रा में निजी क्षेत्र को चुनौती बने हुए हैं.कर्मचारियों को सी ई सी चेन्नई का सन्देश है ' करो या मरो' का नारा नहीं चलेगा अब तो 'हर हल में सिर्फ जीतना ही अंतिम विकल्प बचा है.
    हालांकि मजदूर वर्ग कि कतारों में भी 'सरेंडर करो ...मैदान छोडो ...जो मिले सो ले लो ...या न मिले तो किस्मत को..कोसो .जैसे विचार तेजी से संक्रमित हो रहे हैं......किन्तु ये  विचार सिर्फ एग्जीक्यूटिव  तक   ही  सीमित नहीं बल्कि ग्रुप सी और डी में भी इसकी धमक पहुँच चुकी है.
    चेन्नई सी ई सी का आह्वान है कि 'हम लड़ेंगे ...जब लड़ेंगे तो जीतने कि भी सम्भावनाएं रहेंगी . नहीं लड़ने और सरेंडर होना श्रमिक वर्ग के खाते में नहीं लिखा .
तीन- अब आर्थिक मांगो-पेंशन,वेतन पुनरीक्षण,मेडिकल या एल टी टी सी को बढवाने कि मांग उठा पाना संभव नहीं,क्योकि यह एक वास्तविकता है कि देश का निजी क्षेत्र ,आउट सोर्सिंग और ठेका सिस्टम बेहद कम मूल्य पर श्रम  को बाज़ार में खरीदकर सरकार का तथाकथित सर दर्द कम कर रहा है कि पेंशन ,भत्ते या बोनस कि देनदारियों से मुक्ति  दिलाने में निजी क्षेत्र के सहयोग का सरकार कि ओर से शुक्रिया.
    चेन्नई सी ई सी ने निजी क्षेत्र के  और ठेका मजदूरों को लामबंद कर उनके बाजिब हितों कि लड़ाई के लिए अपनी ओर से मुक्म्म्बिल सहयोग का आह्वान किया है. वास्तव में यह कोई यह्सान नहीं है यह तो संगठित क्षेत्र पर आने वाली सुनामी से बचाव कि महज एक मशक्कत भर है.
यह थोड़े से साहस और संघर्ष कि बात नहीं बल्कि चट्टानी एकता और अनवरत संघर्ष से ही संभव है कि संगठित क्षेत्र के मजदूर -कर्मचारी और एग्जिक्यूटिव अपने वेतन भत्ते और पेंशनरी वेनिफिट्स सुरक्षित रखने में तभी कामयाब हो सकते हैं जबकि वे निजी क्षेत्र में हो रही श्रम कि लूट का जनता के बीच खुलासा करें और निजी क्षेत्र के कामगारों को एकजुट संघर्ष के लिए प्रेरित करें. .
 चार- एन ऍफ़ टी ई,  एस एन टी टी ऐ ,ऍफ़ एन टी ओ और मेनेजमेंट कि मिलीभगत ने यु पि ऐ सरकार की टेलिकाम पालिसी का समर्थन किया था और बी एस एन एल ई यु ,जो कि प्रतिगामी नीतियों कि घोर मुखालफत करती रही ,उसे मान्यता से महरूम किये जाने कि भरपूर कोशिश कि किन्तु सभी को मुंह कि खनी पडी .सी ई सी का आह्वान है कि आगामी संघर्षों में हमारा साथ देवें.
  पांच- सभी पी एस यूज में और खास तौर से सिक इंडस्ट्रीज में न केवल श्रमिक वर्ग का अपितु स्टेक होल्डर्स कि भी भागीदारी हो वैचारिक आधार पर मजदूर कर्मचारी संगठनों से जुड़ें  ताकि उनप्रतिगामीनीतियोंको बदलाजा सके जिनसे राष्ट्र के आधुनिक मंदिरों के ध्वंस का खतरा है. भारत संचार निगम में इसकी पहल हो चुकी है. 
     छे- वी आर एस और आउट सोर्सिंग कि नीति का पुरजोर विरोध किया जायेगा. जनता के उपक्रमों को मेनेजमेंट और राजनीतिज्ञों का चारागाह मात्र नहीं बनाए दिया जायेगा. जन भागीदारी और उत्तरदायित्व का अनुशासन  कायम किया जायेगा.
      
                         इसके अलावा वित्तीय जीवन्तता के लिए पी एस यूज को बचाने में स्टील इंडिया ,कोल इंडिया ,सीटू तथा केरल सरकार ने जो राह दिखाई है उससे से सबक सीखने का संकल्प लिया गया.यह सुखद अनुभूति है कि जिन राजकीय सार्वजनिक उपक्रमों को पहले कि एन डी ऐ ,यु पीए और केरल कि यु डी ऍफ़ सरकारें लगभग मृत घोषित कर चुकीं थीं,केरल के  वे अधिकांश {लगभग ४२]पी एस यूज आज मुनाफे में चलने लगे हैं,निस्संदेह  इसका श्रेय सीटू और केरल कि वाम मोर्चा सरकार को जाता है.
           बी एस एन एल ई यु के महासचिव  काम. पी अभिमन्यु ,ए आई आई इ ऐ के महासचिव काम .अमानुल्लाह खान जे ऐ सी कन्वीनर वी ऐ एन नम्बूदिरी तथा टॉप लेवल अधिकारियों/सी ई ई सी मेम्बरों की उपस्थिति में गगनभेदी नारों के साथ यह केन्द्रीय कार्य कारिणी बैठक सम्पन्न हुई.
 यूनियन सत्यापन पर चर्चा हुई कहा गया- विजय का जश्न मनाइए.आपको जो कम वोटों से जीत हुई वो चिंता का कारन नहीं है.लगातार चौथी बार जीतना फक्र की बात है ,जीत -जीत है चाहे कम वोट हों या ज्यादा.हमने बैंक एल आई सी से और अन्य पी एस यूज से ज्यादा वेतन बढ़वाया,हमने प्रमोसन पालिसी लागु कराया,इसी आधार पर जब हमने चुनाव पूर्व के आकलन में सभी सर्कल सेक्रेटरी से जानकारी ली तो १३६०००वोट मिलने की उम्मीद बताई गई थी.किन्तु कुछ परिस्थितियों के कारण -जिन पर  हमारा कोई जोर नहीं था कोई गलती भी हमारी नहीं थी -फिर भी हमें कम वोटों से जीत मिली और १०६००० वोट पाकर हम प्रथम रहे.
   एस एन टी टी ऐ ने अपने आपको जिन्दा रखने के लिए यह बचकाना कदम उठाया और एन ऍफ़ टी ई को सपोर्ट किया. उनका कहना है की मेनेजमेंट ने अंदाज लगाया था की यदि स न टी टी ए ने एन ऍफ़ टी ई को वोट किया तो बी एस एन एल ई यु हार जायेगी. किन्तु मजदूरों के भाग्य से और दलालों के दुर्भाग्य से एन ऍफ़ टी ई हार गई ,जबकि एस एन टी टी ऐ ने जी जान से ताकत लगाईं थी क्योंकि वे यह सावित करना चाहते थे की एस एन टी टी ऐ जहां होगा विजय श्री वहां होगी .ऍफ़ एन टी ओ की तरह इनका भी भ्रम टूट गया और लगातार अकेले दम पर बी एस एन एल ई यु जीत गया.
        कुछ नकारात्मक बिन्दुओं की ओर भी ध्यानाकर्षण किया गया.इसमें सबसे बड़ी बात थी मेनेजमेंट का आशीर्वाद प्राप्त करने वाले तत्वं द्वारा दुष्प्रचार.हमारे कुछ साथी भी सजग नहीं रहे या अपनी बात ठीक से नहीं रख पाए.लगातार दो दो हड़तालों का पैसा कटना और यूनियन फंड में ६०० रुपया लेना भी निम्न सोच के कर्मचारियों को हमसे दूर रखने में काम आया.इस मानसिकता को दुष्प्रचार की आग ने हवा दी और हम १०६००० पर आ गिरे. फिर भी जीत तो जीत है.
      चर्चिल से तो ठीक ही रहे.द्वितीय विश्व युद्ध में स्टालिन और चर्चिल दोनों ने शानदार काम किया ,दोनों ने हिटलर को और फासिस्टों को हराया किन्तु इतिहास ने क्या न्याय किया?पूरे विश्व
 युद्ध के दौरान न केवल ब्रिटेन को बचाया बल्कि सारी दुनिया में फेले ब्रिटिश साम्राज्य को जिन्दा रखा.किन्तु १९४५ में विश्व युद्ध की समाप्ति पर जब ब्रिटेन में आम चुनाव हुए तो जनता ने चर्चिल को नकार दिया और उनकी कंजर्वेटिव टोरियन पार्टी सत्ता से पहली बार विमुख हुई.लेबर पार्टी के एटली जीत गए.इसी तरह जिस स्टालिन ने सोवियत यूनियन का शानदार नेत्रत्व करते हुए हिटलर को पराजित करने में योगदान किया उसे न केवल सोवियत संघ की भावी पीढीयों ने बल्कि विश्व के माध्यम मार्गी वामपंथियों ने भी विस्मृत कर दिया.
   अतः बी एस एन एल ई यु की लगातार चौथी जीत को हम बहुत महत्वपूर्ण मानते हैं.हम जीते हैं ,हमारी जीत शानदार है या नहीं यह उनसे पूंछो जो हारे हैं.
     यदि हम बी एस एन एल को बचाना चाहें तो अवश्य बचा पाएंगे ,यदि हमारी आत्मा मर चुकी है या हम कायर हैं तो ही बी एस एन एल ख़त्म हो सकता है. जनता के बीच जाकर एल आई सी जैसा प्रोपेगंडा करना होगा कि सरकारी क्षेत्र कि दूर संचार कम्पनी के बेहतरीन उत्पाद और टेरिफ्स क्या हैं?बिना जन समर्थन के बी एस एन एल तो क्या कोई भी शाशक वर्ग  भी सत्ता में नहीं रह सकता.इस महीने कि २९ तारिख को जे ऐ सी में कोई आये तो ठीक वर्ना बी एस एन एल ई यु अकेले दम पर ही बी एस एन एल को बचने कि लड़ाई छेड़ देगी.
      इस चेन्नई केन्द्रीय कार्य कारिणी समिति ने निर्णय लिया है कि एल आई सी कि तरह हम भी बिना मान्यता के कैसे लड़ें इस हेतु कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना होगा.इसके लिए ट्रेड यूनियन क्लास का भी निर्णय लिया गया.सी डी आर सिस्टम एक बहुत जरुरी और गतिशील आवश्यक सिस्टम है.आगामी तकनीकी बदलावों के लिए इसकी उपयोगिता असंदिग्ध है.सी एम् डी साब ने भी माना है कि प्रचालन और संधारण के कार्यों में वित्तीय कठिनाई आड़े नहीं आयेगी.
      श्रीराम तिवारी ..आल इंडिया संगठन सचिव -बी एस एन एल ई यु
        

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