विगत २४-२५ मार्च को लोकसभा में यु पी ए सरकर की ओर से पेंशन-संशोधन बिल प्रस्तुत किया गया, इस बिल के विरोध में कुल ४६ मत पड़े और भाजपा ने बहिर्गमन किया ,इस प्रकार भाजपा ने २८-जुलाई २००८ वाला रास्ता ही अपनाया याने कांग्रेस यदि आर्थिक नीतियों को अमेरिकी जामा पहनाने में नौ कदम चलती है तो भाजपा दस कदम चलकर न केवल अमेरिकी पूंजीपतियों बल्कि भारतीय नव-धनाड्यों को पुरजोर अपील करती है की ...'में हूँ ना' ....
यह सब इस आलेख में दुहराना जरुरी नहीं की पेंशन संशोधन विधेयक के निहतार्थ क्या हैं? सरकार इस भारी-भरकम रकम को जो की देश के मेहनतकशों की गाढे पसीने की कमाई है ; को म्युचुअल फंड में लगाने को यु पी ऐ प्रथम के दौर से ही लालायित है किन्तु तब वामपंथ के बाहरी समर्थन को पाने के लिए' 'कामन मिनिमम प्रोग्राम' के तहत ही यह मजबूरी रही थी की पेंशन फंड से छेड़-छाड़ नहीं की जाये, जब सारे जहां ने इस अनैतिक कर्म को जान ही लिया है तो अब लाज के घूंघट की जरुरत कहाँ? जिन ४६ सांसदों [वामपंथी]ने पेंशन फंड बचाने के लिए जबरदस्त पहल की और सरकार के सामने घुटने टेकने या बिकने से इनकार किया उन क्रांतिकारियों को लाल सलाम ..
जिस यु पी ऐ सरकार ने इस फंड को दांव पर लगाया है और जिन भाजपाइयों ने नूरा कुश्ती की तर्ज पर यु पी ऐ द्वितीय को बार-बार बचाया है उन्हें भी देश का सचेत मजदूर और कर्मचारी आसानी से माफ़ नहीं करेगा.
यह पहला प्रतिगामी कदम नहीं है. इससे से पहले भी अनेकों मौकों पर भारतीय मीडिया ने चाहे भृष्टाचार का सवाल हो,२-जी स्पेक्ट्रम या कामनवेल्थ -आदर्श सोसिअटी,या विदेशी बेंकों में जमा काले धन का सवाल हो,हर बार भाजपा को घोर विरोधी और नैतिकतावादी दिखाया है किन्तु स्वयम भाजपा के अन्दर जो ७० %कांग्रेसवाद घुसा हुआ है वो मूल कांग्रेस को बचाने के लिए सामने आ जाता है. यह सिर्फ आनुषांगिक भाजपा में ही नहीं बल्कि संघ-परिवार के शीर्षस्थ पांच-पांडवों में भी जी एम् वैद्य जैसों की वैचारिक आस्था के केंद्र में मौजूद है.
श्रीराम तिवारी
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