बुधवार, 2 मार्च 2011

भारतीय लोकतंत्र की चुनौतियाँ और समाधान...

 विगत दिनों विकीलीक्स के धारावाहिक खुलासों में दुनिया भर के व्यक्तियों,समूहों ,राजनैतिक -सामाजिक संगठनों और राष्ट्रों के बारे में जो बातें प्रकाश में आयीं थीं-उनमें भारत और भारतीय लोकतंत्रात्मक सिस्टम के बारे में ,भारत -पकिस्तान , भारत- अमेरिका तथा भारत और चीन के अन्योंन -आश्रित  द्विपक्षीय सम्बन्धों के बारे में,- तस्वीर इतनी भयावह थी कि भारत का सचेतन नागरिक या एक उदार -राष्ट्रवादी भी चिंतित हुए बिना  नहीं रह सकता.
    पाकिस्तान ने एक तरफ तो भारत से बातचीत के माध्यम से व्यापार -सीमा विवाद -कैदियों का आदान प्रदान,साहित्यिक -सांस्कृतिक ,प्रतिनिधि मंडलों कि आवक जावक में सकारात्मक रूचि दिखाई ;दूसरी ओर प्रतेक अन्तरराष्ट्रीय मंच पर भारत के खिलाफ कूटनीतिक चालें चलकर ,अपने यहाँ आतंकवाद -उग्रवाद पर अंकुश लगाने के बहाने अमेरिका और अरब देशों से अरबों रूपये कि इमदाद प्राप्त की.उसी के बलबूते पर भारत में नकली करेंसी और आतंकवादी भेजने का सिलसिला बदस्तूर जारी है. चीन और अमेरिका के आपसी रिश्ते कैसे भी हों किन्तु भारत को ताकतवर होते कोई भी नहीं देखना चाहता ,एटमी करार और सुरक्षा परिषद् की स्थाई सीट के बारे में तो श्रीमती  हिलेरी क्लिंटन ने गजब कर दिया -उन्होंने तो  पकिस्तान की ही सरजमीं पर भारत का मजाक बनाया कि ये भारतीय मूर्ख नेता क्या खाक देश को वीटो पवार दिलाएँगे ?ये सभी तथ्य बिकिलीक्स की बेब साईट पर उपलब्ध हैं . बशर्ते दुश्मनों ने कोई छेड़ -छाड़ न की हो ..
     हमें विकिलीक्स के इन  खुलासों से कोई आश्चर्य इसलिए नहीं हुआ क्योंकि हमें अपने देश की जनता और राजनैतिक  पार्टियों की असलियत मालूम है. जब अपना ही माल खोटा हो तो परखने वाले पर नाराजगी कैसी? देश की दो बड़ी पार्टियां -कांग्रेस और भाजपा कटखने कौओं की तरह झगड्तीं रहतीं हैं.नौकरशाही मक्कार और भ्रष्ट हो चुकी है ,पूंजीपति मस्त हैं , आम जनता त्रस्त है ,न्यायपालिका और देश भक्त सुधीजन पस्त हैं.
     विगत दिनों भारत से बाहर के विदेशी मीडिया ने भारत की जो तस्वीर पेश की है -उसमें शर्मिंदगी के अलावा कुछ भी नहीं है. मेरे देश के फटे हाल भीख मांगते लोग ,मेरे देश के शंड- मुशंड-मक्कार बाबा लोगों की लोम विलोम में डूबी  अय्याशी  ,विदेशी बैंकों में अकूत काला धन ,एक दूसरे पर घटिया आरोप लगाते सत्तालोलुप राजनीतिज्ञ ,स्वनामधन्य शोहरत के भूंखे झक्की स्वयम्भू सामजिक कार्यकर्ता, बंधनमुक्त बेकार  तरुणाई,बेलगाम महंगाई ,और टू-जी स्पेक्ट्रम -कामनवेल्थ स्केम को न्यू- यार्क टाइम्स ,गार्जियन और द डान जैसे अखवारों ने खूब चटखारे ले-लेकर छापा और जिसे  इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने डकार ले- लेकर  परोसा है . 
    आज जबकि भारत बेहद गर्दिश और मुश्किल के दौर से गुजर रहा है -नक्सलवादी +माओवादी +अलगाववादी +क्षेत्रीयतावादी +रिश्वतखोर +मुनाफाखोर +जमाखोर +मिलावट करने वाले +परजीवी +चन्दाचोर+भू माफिया +दलाल +सुरा-सुन्दरी =देश का केंसर ,अन्दर से इस मादरे वतन को खा रहे है, उधर सीमाओं पर सभी  पड़ोसी राष्ट्र  हमारे ऊपर न केवल हँस रहे अपितु उस मौके की फ़िराक में हैं कि कैसे और कब भारत को चूना लगाना है.
      हमारे राजनीतिज्ञ दूजे परआरोप  जड़ने और नीचा दिखने के फेर में   वो सब भी बोल जाते हैं जो हमारे अमित्रों-शत्रु  राष्ट्रों  के काम आ जाता है .भले ही स्वराष्ट्र के काम कुछ भी न आये. सियासतदान कितने खुदगरज हैं कि अपने असरदार झूंठे -सच्चे आरोपों कि जद  में मातृभूमि को दुनिया के बाजार में रुसवा करते हुए भी निर्लज्ज बने रहते हैं .बेशक सत्ता में काबिज होने कि वजह से कांग्रेस कि जिम्मेदारी कुछ ज्यादा बनती  कि पार्टी और सरकार दोनों मोर्चों पर निगाह रखे कि कुछ ऐंसा न किया जाये या कहा जाये जिससे से देश कि दुनिया में भद पिटे.श्रीमती सोनिया गाँधी से सभी कांग्रेसियों को मर्यादित आचरण , शुचिता और त्याग का सबक सीखना चाहिए  . मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को भी जल्बाजी  में ऐंसा करना या कहना -सुनना नहीं चाहिए जो देश को शर्मिंदगी का सबब बना दे. भाजपा को अपनी ताकत तिरंगा यात्राओं जैसी संवेदनशील शोशेबाजी में खर्च न करते हुए दूरदर्शिता और परिपक्व राजनीती के मार्फ़त राष्ट्र-गौरव के नए कीर्तीमान स्थापित करने चाहिए.
          कांग्रेस कि मानसिकता में विपक्ष कि मिट्टी पलीद करना जैसा ही सिद्धांत  क्यों है.?एक दूसरे को नापाक साबित करके देश कि जनता को उस रास्ते क्यों ले जाया जाये जो लोकतंत्र से छिटककर राजनीतिक उथल -पुथल कि अँधेरी सुरंग में जाकर ख़त्म होता है यदि ३० साल कि जवान  भाजपा के आचरण में शासन-प्रशासन कि गंभीरता का पुट नजर नहीं आता तो सवा सौ साल पुराणी कांग्रेस में भी विपक्ष में रहने का शऊरऔर सब्र नजर नहीं आता .
      आई वी एन -७के ताज़ा सर्वे के अनुसार देश कि जनता कांग्रेस को सबसे भृष्ट ,भाजपा को कम भृष्ट और वामपंथ को सबसे कम भृष्ट मानती है .अर्थात हम्माम में सभी नंगे हैं .कोई कम कोई ज्यादा और शायद ये फर्क भी तभी तक है जब तक कि आजमाने का मौका न दे दिया जाये.ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इत्यादि अन्य अन्तरराष्टीय संस्थाओं ने भी भारतीय लोकतंत्र को राजनैतिक दलों के भृष्टतम आचरण से क्षत -विक्षत निरुपित किया है 
यह कड़वा और डराने वाला सच नहीं है ,इससे से भी अधिक भयावह ये है कि संघर्ष कि चेतना को जनता का समर्थन राइ के बराबर ही है जबकि भृष्टाचार के सुनामी देश को छीज रहे हैं . 
           
                        श्रीराम तिवारी

1 टिप्पणी:

  1. भाजपा जो साम्राज्यवाद की पृष्ठ-पोषक है ,उससे कोई उम्मीद करना ही व्यर्थ है.अब १९७९ के बाद से कांग्रेस भी धीरे -धीरे साम्राज्यवाद की अनुयायी होती गई है.हमारे बामपंथ की छाप देशवासियों पर विदेशी सिद्धांतों को मानने वालों की है.इस और हमारी और से सामूहिक रूप से प्रयास किये जाने की सख्त जरूरत है.जब हम ऐसा कर पाएंगे तभी सफल हो जायेंगे.

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