मंगलवार, 8 मार्च 2011

प्रधान मंत्री की एक ओर अग्नि परीक्षा -मोदी कमेटी पर अमल कैसे हो?

     चौतरफा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी यु पी ऐ सरकार को कहीं ठौर नहीं है. निरंतर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी और विपक्षी हंगामों के चलते जांच-पड़ताल और ठोस  नतीजों की अपेक्षा सुनिश्चित करने में जुटी सरकार और कांग्रेस के दिग्गज सिपहसालार एक नई चुनौती से रूबरू होने जा रहे हैं.
       महंगाई पर काबू पाने के लिए गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गठित महंगाई- रोधी कमेटी ने द्रढ़ता के साथ निर्णय लिया है कि 'वायदा बाजार'  कारोबार तुरंत बंद किया जाना चाहिए यह एक एतिहासिक और महत्वपूर्ण  दूरगामी प्रगतिशील फैसला है, नाकेवल सत्तापक्ष  अपितु विपक्ष का प्रमुख दल भाजपा भी इस फैसले से यु  निश्चित ही द्विविधा में होगा .जहां तक वाम पंथ का सवाल है इसे तो मानो बिन मांगेमुराद मिली  ;क्योंकि विगत यु पी ऐ प्रथम के दौर से ही वाम ने  वायदा बाजार को महंगाई का एक बड़ा कारक सावित कर इसे समाप्त करने कि रट लगा राखी थी . तब प्रधानमंत्री जी ने कोई ध्यान नहीं दिया था .किन्तु विगत वित्तीय सत्र २००९-२०१० में   महंगाई से मची त्राहि -त्राहि को जब संयुक विपक्ष ने मुद्दा बनाया तो   प्रधान मंत्री जी ने गत अप्रैल-२०१० में महंगाई पर रोक लगाने बाबत महंगाई-रोधी कमेटी गठित की. महाराष्ट्र , तमिलनाडु के मुख्यमंत्री सदस्य के रूप में शामिल किये गए और गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को अध्यक्ष बनाया गया. विगत वर्षों में भी जब संसद और उसके बाहर सड़कों पर विभिन्न राजनैतिक दलों ने आवाज उठाई तो कोई भी इसी तरह की कमेटी बिठाकर मामले की आंच को धीमा किया गया, योजना आयोग के सदस्य अभिजीत सेन की अध्यक्षता वाली कमेटी ने भी पहले तो वायदा कारोवार के विरोध में रिपोर्ट वनाई किन्तु दिग्गज खाद्द्यान्न माफिया के प्रभाव ने रिपोर्ट को वायदा बाजार का समर्थन करते हुए दिखाने पर मजबूर कर दियाथा. नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली कमेटी ने महंगाई जैसे मुद्दे पर सुझाव देने में भले ही ११ महीने लगाए हों किन्तु वायदा बाजार का स्पष्ट विरोध करके अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूर्ण की है. देखना यह है कि अब इस रिपोर्ट को लागू करने में सरकार कितना समय लेती है . वैसे केंद्र सरकार को शायद न तो महंगाई की चिंता है और न घोटालों की.
                      देश को वैश्वीकरण की राह पर ले जाने वाले हमारे प्रधान मंत्री जी हर जगह विवश और ढीले नजर आ रहे हैं. उनका दर्शन था की कोई और विकल्प नहीं है सिवाय एल पी जी के. यदि विकल्प नहीं थे तो अब मोदी कमेटी के सुझाव पर तो  अमल  करो. 
   देश में भरी बेरोजगारी बढी है, परिणामस्वरूप चोरियां ,ह्त्या लूट ,डकेती और बलात्कार आम बात हो चुकी है. लोग न घर में सुरक्षित हैं और न बाज़ार में.
      अधिकांश   विपक्ष और मुख्यमंत्री इस वायदा बाज़ार को बंद करने के पक्ष में हैं. वायदा कारोबार का मुद्दा सीधेतौर से महंगाई से जुड़ा है . कृषि जिसों में अरबों रूपये के वायदा सौदे हो रहे हैं. इस गलाकाट प्रतिस्पर्धा में बड़े-बड़े औद्योगिक  घराने भी कूद  पड़े हैं . किसान वर्ग को इससे से रत्तीभर फायदा नहीं है. भृष्ट व्यपारियों ,बड़े अफसरों और सत्ता में बैठे मंत्रियों की इस सबमें हिस्सेदारी है.
   आज देश घोटालेबाजों ,सट्टेबाजों के चंगुल में सिसक रहा है. आम जनता त्राहि-त्राहि कर रही है. कहा जाता है कि महंगाई तो सर्वव्यापी और सर्वकालिक है. क्या बाकई यह सच है? नहीं..नहीं...नहीं...
       विश्व कि महंगाई और भारत कि महंगाई में कोई समानता नहीं. विश्व के कई देशों में खाद्यान्न  कि भारी कमी है,  जबकि भारत में गेहूं-चावल के भण्डार भरे हैं और रखने को गोदाम नहीं, सो खुले में रखा -रखा सड़ रहा है. यदि दयालु न्यायधीश कहते हैं कि गरीबों में बाँट दो तो सरकार मुहं फेर लेती है.क्यों? शक्कर के भण्डार भरे पड़े हैं. कमी थी तो रुई और यार्न को निर्यात प्रोत्साहन क्यों? गरीब दाल-रोटी मांगता है आप उसे मोबाइल और इन्टरनेट का झुनझुना पकड़ा रहे हैं. भारत में महंगाई का मूल कारण मुनाफाखोरी और सरकार की जन-विरोधी नीतियाँ हैं मोदी कमेटी ने यदि वायदा बाजार को बंद करने की सिफारिश  की है तो केंद्र सरकार उस पर अमल क्यों नहीं कर रही? यदि सरकार इस रिपोर्ट को मानने से इनकार करती है तो देश  के साथ और खास तौर से देश की निम्न वित्तभोगी जनताके साथ नाइंसाफी तो  होगी ही , साथ ही भाजपा के उदारपंथियों पर उग्र  दक्षिणपंथ के नायक नरेंद्र मोदी की बढ़त में भी कोई नहीं रोक सकेगा.
                             श्रीराम तिवारी

1 टिप्पणी:

  1. निश्चय ही वायदा कारोबार आम जनता के हित में बन्द होना चाहिए.
    यदि सरकार इस सिफारिश को ठुकराती है तो व्यापक जन-आन्दोलन चलना चाहिए.

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