गुरुवार, 10 मार्च 2011

राष्ट्रीयतावादी कांग्रेस ने क्षेत्रीयतावादी द्रुमुक के सामने झुकने से इनकार कर क्या ग़लत किया?

       गठबंधन की राजनीति से देश और प्रजातंत्र को क्या फायदा हुआ या आगे होगा यह कहना मुश्किल है.यह स्पष्ट है कि
  कि  क्षेत्रीयतावादी ,जातीयतावादी, व्यक्तिवादी ,इलिमवाला,फिलिमवाला और संप्रदायवाला खूब फलाफुला.  
यह एक आश्चर्यजनक सत्य है कि जिस मतान्ध विचारधारा ने राजीव गाँधी का क़त्ल किया उसके परिवर्ती संवाहक  स्वयम श्री करूणानिधि रहे हैं.   उनकी द्रविण मुनेत्र कड़गम भी   प्रभाकरण  और  लिट्टे  को   पयपान कराती रही है.  ऐसी अलगाववादी ,हिन्दी विरोधी और महाभ्रष्ट  क्षेत्रीय पार्टी को लतिया कर सोनिया गाँधी ने जो किया उससे न केवल  कांग्रेस अपितु देश का भी कुछ भला होगा ऐसी आशा की जानी चाहिए.
                               करूणानिधि या द्रुमुक ने तमिलनाडु को तो वर्षों पीछे धकेला ही है किन्तु अपने मंत्रियों के मार्फ़त अपने विशाल कुनबे  का न केवल भरणपोषण अपितु इस परिवार की भावी पीढ़ियों
 के ऐशो-आराम का भी इंतजाम कर दिया है.दयानिधि मारन,टी आर बालू , ऐ.राजा  ,कनिमौझी ही नहीं बल्कि पूरा द्रुमुक परिवार  ही भृष्टाचार की वैतरणी में फुदक रहा है. जयंती नटराजन और कांग्रेस के शुभचिंतकों ने कांग्रेस हाई कमान को सलाह दी कि द्रुमुक हमारे साथ रहे या न रहे ,हमें अब कोई फर्क नहीं पड़ता.उनका निष्कर्ष है कि आगामी विधान सभा चुनावों में द्रुमुक का पराभव निश्चित है अतएव जयललिता को और तमिल जनता को  ठोस सन्देश भेजा जाये कि न केवल वर्तमान दौर के भृष्टाचार के लिए बल्कि तमिलनाडु कि जनता कि मौजूदा परेशानियों -महंगाई ,बेकारी, भृष्टाचार और भाई-भतीजावाद के लिए जो जिम्मेदार हैं ,उस द्रुमुक से  हम {कांग्रेस} नाता तोड़  रहे हैं. उसकी पारिवारिक ध्रुष्ट्ताओं का खामयाजा कांग्रेस क्यों भुगते?
        इससे से पूर्व की जयललिता के पिद्दे-घोड़े आगे बढ़ पाते करूणानिधि ने अंतिम प्रयास  हेतु अपने विश्वस्तों  को सोनिया दरबार  में भेज दिया. करूणानिधि को भारत की जनता से कोई लेना देना नहीं, तमिल जनता और  तमिलनाडु तो उनके परिवार का साम्राज्य  हैं. कांग्रेस से नाता टूटा तो अभी तो सिर्फ ए राजा ही जेल में हैं ,आइन्दा दयानिधि मारन,कावेरी मारन, कनिमौझी,ए बालू तो बो बालू पता नहीं कौन -कौन तिहाड़ प्रवास पर होंगे.सो घबराहट में कांग्रेस के उन दिग्गजों को जो की इस गठबंधन के शिल्पकार हुआ करते थे उन्हें स्मरण किया और उनके ही सुझाव पर यह पुनर मूषको भव का नाटक खेला गया.सोनिया जी ने द्रुमुक दूतों की कैसी लू उतारी और कांग्रेस को भले ही सत्ता से जाना पड़े तो मंजूर ,किन्तु एक परिवार विशेष के लिए कांग्रेस को कुर्वान नहीं किया जा सकता,६० या ६३ सीटें तो प्रतीक मात्र थीं वास्तविकता यही है की कांग्रेस की इस दौर में बीसों घी में हैं. देश का हर जिम्मेदार दल भाजपा या वाम कोई भी देश में तुरंत लोक सभा के चुनावों के लिए तैयार नहीं. प्रकारांतर से ये सभी विपक्षी दल किसी तरह के नकारात्मक ध्रुवीकरण के पक्ष में तो बिलकुल नहीं ,द्रुमुक या उन तत्वों से तो अभी सभी अपना दामन बचाना चाहेंगे.
          सोनिया जी ने द्रुमुक के संकट से कांग्रेस को तात्कालिक  राहत  पहुंचाई यह अन्य राष्ट्रीय दलों के लिए एक सबक है कि क्षेत्रीयतावाद ,भाषावाद या साम्प्रदायिकतावाद के आगे घुटने टेकने के बजाय अपने राष्ट्रीयतावादी दृष्टिकोण को शिद्दत से जनता के बीच ले जाकर  महंगाई ,भृष्टाचार ,बेरोजगारी तथा अन्य प्रासंगिक  विषयों पर आगामी विधानसभा के चुनाव फेस करना चाहिए ,यही  लोकतंत्र और देश के प्रति राष्ट्रीयतावादी उत्तरदायित्व होगा...........श्रीराम तिवारी
       

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