पाँच राज्यों -पश्चिम बंगाल,तमिलनाडु,केरल,असम और पुद्दुचेरी के विधान सभा चुनाव कार्यक्रम घोषित हो चुके हैं . देश की राजधानी दिल्ली में और सम्बंधित राज्यों में राजनीतिक गतिविधियाँ तेज हो गईं हैं.घोषित चुनाव कार्यक्रम के मुताबिक -तमिलनाडु ,केरल और पुद्दुचेरी में एक ही चरण में १३ अप्रैल को जबकि असम में दो चरणों में ४ और ११ अप्रैल को मतदान होगा . सबसे लम्बी चुनावी प्रक्रिया पश्चिम बंगाल में निर्धारित की गई है , जहां १८ अप्रैल से १० मई तक ६ चरणों में मतदान कराया जायेगा . इन पाँच राज्यों
के चुनावों को स्थानीय मुद्द्ये तो प्रभावित करेंगे ही,साथ ही महँगाई , भृष्टाचार और आर्थिक नीतियों का असर भी पडेगा. ये विधानसभा चुनाव सम्बन्धित राज्यों के कामकाज की समीक्षा रेखांकित करेंगे,साथ ही केद्र की सत्तारूढ़ संयुक प्रगतिशील गठबंधन सरकार के कामकाज पर भी लघु जनमत संग्रह के रूप में देखे जायेंगे ,केंद्र में आसीन संप्रग सरकार का नेत्रत्व का रही कांग्रेस इन चुनाव वाले राज्यों में से सिर्फ दो में -असम और पुदुचेरी में ही सत्ता में है. तमिलनाडु में उनके 'अलाइंस पार्टनर'द्रुमुक की सरकार है. कांग्रेस का अधिकतम जोर यही हो सकता है कि यथास्थिति बरकरार रहे.आसार भी ऐसे ही बनते जा रहे हैं.उक्त पाँच राज्यों में देश कि तथाकथित मुख्य विपक्षी पार्टी का कोई वजूद नहीं है अतेव कांग्रेस को भाजपा कि ओर से संसद में भले ही चुनौती मिल रही हो किन्तु इन राज्यों में कोई चनौती नहीं है.
पश्चिम बंगाल में पिछले करीब ३५ साल से माकपा के नेत्रत्व में वाम मोर्चा काबिज है,उसे कामरेड ज्योति वसु का शानदार नेत्रत्व मिला था . उनके बाद का नेत्रत्व भी कमोवेश सुलझा हुआ और सेद्धान्तिक क्रांतीकारी आदर्शों का तरफदार है किन्तु भूमि सुधार कानून लागू करने,मजदूरों -किसानो को संगठित संघर्ष से अपने अधिकारों कि रक्षा का पाठ पढ़ाने,वेरोज्गरी भत्ता देने,राज्यमें धर्म निरपेक्ष मूल्यों कि हिफाजत करने के वाबजूद आज का नौजवान बंगाली आर्थिक सुधारों के पूंजीवादी पैटर्न का हामी हो चला है.उसे किसीप्रजातांत्रिक क्रांति या समाजवाद में कोई दिलचस्पी नहीं,वह या तो हिंसक -बीभत्स नग्न छवियों का शिकार हो चला है,या उग्रवाम कि ओर मुड़ चला है. अतः उसे प्रतिकार कि भाषा का सिंड्रोम हो गया है ,इन तत्वों ने बंगाल में माओवाद,ममता ,तृणमूल और गैरवामपंथी दकियानूसी जमातों का 'महाजोत' बना रखा है ,कहने को तो कभी कांग्रेस और कभी तपन सिकदर भी इनके साथ हो जाते हैं किन्तु ये उनका एक सूत्रीय संधिपत्र है कि वाम को हटाओ .बाकि एनी सवालों ,नीतियों पर इन में जूतम पैजार होती रही है ,अतः कोई आश्चर्य नहीं कि घोर एंटी इनकम्बेंसी फेक्टर के वावजूद वाम फिर से{आठवीं बार} पश्चिम बंगाल कि सत्ता का जनादेश प्राप्त करने में कामयाब हो जाये.
केरल में तो आजादी के बाद से ही दो ध्रुवीय व्यवस्था कायम है .प्रतेक पाँच साल बाद सत्ता परिवर्तन में कभी कांग्रेस के नेत्रत्व में यु डी ऍफ़ और कभी माकपा के नेत्रत्व में लेफ्ट .अभी लेफ्ट याने वाम मोर्चे कि पारी है देश और दुनिया के राजनीतिक विश्लेषक , पत्रकार ,स्तम्भ लेखक और वुद्धिजीवी मानकर चल रहे होंगे कि अबकी बारी यु डी ऍफ़ याने कांग्रेस के नेत्रत्व में केरल कि सरकार बनेगी.विगत एक साल से यु पी ऐ द्वितीय कि सरकार कि जिस तरह से भद पिट रही है ,एक के बाद एक स्केम का भन्दा फोड़ हो रहा है ,कभी शशी थरूर ,कभी पी जे थामस और कभी टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाला ,ये सब घोटाले न जाने देश को कहाँ ले जाते यदि न्यायपालिका कि भृष्टाचार के खिलाफ ईमानदार कोशिशें न होतीं !इन सब भयानक भूलों चूकों को केरल कि जनता भी जरूर देख सुन रही होगी.केरल कि शतप्रतिशत साक्षरता और साम्प्रदायिक सहिष्णुता के परिणाम स्वरूप कोई आश्चर्य नहीं कि केरल में भी वामपंथ पुनः सत्ता में आजाये.
तमिलनाडु में मुख्यमंत्री एम् करूणानिधि अब जनता और राज्य पर बोझ बन चुके हैं , उनके परिवार का हर वंदा और वंदी बुरी तरह बदनाम हो चुके हैं ,ऐ राजा,कनिमोझी ,अझागिरी ,दयानिधि मारन,स्टालिन और उस कुनवे का हर शख्स आपादमस्तक पाप पंक में डूब चूका है सो द्रुमुक तो डूवेगी ही, अपने साथ कांग्रेस को भी खचोर डालेगी, कांग्रेस का नेत्रत्व अपनी जिम्मेदारी का ईमानदारी से निर्वाह करने में असफल रहा सो खमियाजा तो भुगतना ही होगा .जयललिता को पुनः सत्तासीन होने कि तैयारी करनी चाहिए .
जहां तक भाजपा कि बात है , इन चुनावों में उसके सरोकार कहीं भी उपस्थिति दर्ज करने में असमर्थ हैं.कुल मिलाकार इन चुनावों के नतीजे केंद्र कि संप्रग सरकार , कांग्रेस , वामपंथ , के भविष्य की दिशा तो तय करेंगे ही, साथ ही इन प्रान्तों की जनता का वर्तमान भृष्ट व्यवस्था से सरोकार रखने वालों के प्रति क्या सोच है ?यह भी जाहिर होगा .....श्रीराम तिवारी
bahut achha laga man me sahas badha aapko isawar aur sadhbudhi aur sahas de ki aap saty
जवाब देंहटाएंko pahchankar sache ka sath de jisse ki aap ka
parlok bhi ujwal bane