सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

आधुनिक भारत के मंदिरों (केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों-पी.एस.युज. ) की रक्षा कौन करेगा ?

वर्तमान २१ वीं शताब्दी के इस प्रथम दशक की समाप्ति पर वैश्विक परिद्रश्य जिन्ह  मूल्यों ,अभिलाषाओं और जन-मानस की सामूहिक हित कारिणी आकांक्षाओं - जनक्रांतियों के लिए मचल रहा है ,वे  विगत २० वीं शतब्दी के ७०वें  दशक में सम्पन्न  तत्कालीन शीत युद्धोत्तर काल  के जन -आन्दोलनों की पुनरावृति भर हैं .तब सोवियत व्यवस्था के स्वर्णिम प्रकाशपुंज  ने एक तिहाई दुनिया को महान अक्टूबर क्रांति के मानवतावादी मूल्यों से अभिप्रेरित करते हुए सामंतवाद और पूंजीवाद को पस्त करने में आश्चर्यजनक क सफलता हासिल की थी . वियतनाम में  महाशक्ति अमेरिका का मानमर्दन हो चुका था.कामरेड हो-चिन्ह-मिन्ह के नेतृत्व  में वियेतनाम के नौजवानों, किसानो और मजदूरों ने अमेरिका से चले उस भीषण युद्ध में न केवल विजय हासिल की थी; बल्कि मार्क्सवाद -लेनिनवाद -सर्वहारा अंतर राष्ट्रीयतावाद का परचम फहराकर दुनिया भर के श्रमसंघों ,मेहनतकशों ,मजूरों ,किसानो और साक्षर युवाओं  को नयी  रौशनी -नई सुबह  से रूबरू कराया था. लेकिन अमेरिका ने इस हार को वाटरलू के रूप में लेने से इंकार कर दिया था. सोवियत-क्रांति को विफल करने के दिन तक वो चैन से नहीं बैठा .क्रेमलिन में येल्तसिन रुपी विभीषण ने उसके इस दिवास्वप्न को साकार करने में अवर्णनीय सहयोग किया था .
                       पूंजीवादी व्यवस्था और साम्यवादी व्यवस्थों में द्वंदात्मक संघर्ष के परिणाम स्वरूप तीसरी दुनिया के जनमानस में सर्वहारा- क्रांती की ललक हिलोर लेने लगी थी.तत्कालीन पूंजीवादी अर्थशास्त्रियों  ने सोवियत-क्रांति और उसके दुनियावी प्रभाव से आतंकित होकर ;अमेरिका समेत तमाम पूंजीवादी मुल्कों को नई गाइडलाइन दी कि वे अपने-अपने मुल्कों में अपने तई श्रमिक वर्ग को ,किसानो को कुछ लालच दें ,कुछ जन-कल्याण के नाम पर ,देश की स्वतंत्रता-प्रभुता के नाम पर ,मजहब -धरम के नाम पर और दीगर -आग -लूघर के नाम पर सरकारी कोष से जनता के वंचित-वर्गों को देने दिलाने का स्वांग या नाटक  करें. भारत समेत तीसरी दुनिया ने भी इन चोंचलों का अनुगमन किया जिससे उन्हें तत्कालीन जन-आंदोलनों को दबाने  में महती कामयाबी मिली भी .इस जन-कल्याणकारी राज्य के नाम पर किये गए पारमार्थिक खर्चों के लिए एक ओर तो जनता से विभिन्न टेक्सों के रूप में धन वसूली की जाती रही. ,फिर
 उसमें से बकौल स्वर्गीय श्री राजीव गाँधी के अनुसार- १५ पैसा जनता तक पहुँचता है और ८५ पैसा  राजनीति के शिखर से होता हुआ -नौकरशाही ,राजनीतिज्ञों ,ठेकेदारों और पूंजीपतियों में बँट जाता है. सरकारी क्षेत्रों और सार्वजानिक क्षेत्र में यह एक तथ्यात्मक सच्चाई है कि सोवियत-पराभव के उपरान्त एक ध्रुवीय -विश्वव्यवस्था के परिणामस्वरूप रातों-रात यह जन -कल्याणकारी राज्य का कांसेप्ट निरस्त कर दिया गया .क्योंकि पूंजीवाद को अब किसी का डर नहीं था ,कोई चुनौती देने वाला नहीं रहा .हालाँकि नवस्वतंत्र राष्ट्रों ने अमेरिकी झांसे में आने कि कोई जल्दी नहीं दिखाई .इसीलिये पाश्चात्य आर्थिक संकट का अखिल भूमंडलीकरण होने  में देर हो रही है .
       पूंजीवादी देशों ने खास तौर से भारत जैसे विकासशील  राष्ट्रों ने उन क्षेत्रों में जहाँ पूंजीपति निवेश से बचते थे वहां जनता के पैसे से देश की तरक्की में गतिशीलता के वास्ते सार्वजनिक उपक्रमों का निर्माण कराया .चूँकि रक्षा बैंक बीमा ,दूर संचार ,खनन और सेवा क्षेत्र में तब प्रारंभिक लागतों के लिए पूँजी की विरलता  और उस पर मुनाफे की गारंटी के अभाव में निजी क्षेत्र से लेकर हवाई जहाज तक -सब कुछ विदेश से मंगाना और इसे खरीदने के लिए विदेशी मुद्रा का अभाव होना , इत्यादि कारणों से भारत के तत्कलीन नेत्रत्व ने वैज्ञानिक अनुसंधानों ,श्रम शक्ति प्रयोजनों और आधारभूत संरचना  के निमित इन केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों को खड़ा किया था .तब सरकार पर जनता की जन आकांक्षा की पूर्ती का भी दबाव था- कि अब तो देश आजाद है...अब लाओ -रोटी -कपडा और मकान... हमने आपको देश का मालिक बना दिया...आप हमें कम से कम मजूरी या रोजगार ही प्रदान करने कि कृपा करें ......तब सरकारों कि गरज थी ,इसीलिये केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रम- नवरत्न -महारत्न खड़े किये थे .अब इन सार्वजनिक उपक्रमों को निजी हाथों में कौड़ी मोल बेचा जा रहा है भारी कमीशनबाजी हुई .क्योंकि अब पूंजीवादी नव्य उदारवादी आर्थिक नीतियों का  प्रोस्पेक्ट्स तीव्रता से लागू किये जाने का आदेश वहीं से आ रहा है ,जहाँ से जन -क्रांतियों को दबाने के निमित्त जन -कल्याणकारी कार्ययोजना जारी की गई थी .इन नीतियों और कार्यक्रमों के नियामक नियंता एम् एन सी या विश्व बैंक  के कर्ता-धर्ता ही नहीं बल्कि वे नाटो से लेकर पेंटागन तक और G -20  से लेकर सुरक्षा परिषद् तक काबिज हैं .
          भले ही इन सार्वजनिक उपक्रमों को सरकार ने अपनी गरज से बनाया था किन्तु अब जनता कि गरज है सो इसे बचाने के लिए आगे आये .मैं किसी क्रांति  का आह्वान नहीं कर रहा .मैं सिर्फ ये निवेदन कर रहा हूँ कि जो लोग इस ध्वंसात्मक प्रक्रिया मैं शामिल थे या हैं उन्हें और उनके नीति निर्धारकों को आइन्दा वोट कि ताकत से सत्ताच्युत किया जा सकता है .इतना तो बिना किसी उत्पात ,विप्लव या खून-खरावे के किया ही जा सकता है .,यह सर्व विदित है{सिर्फ डॉ मनमोहनसिंह जी ,श्री प्रणव जी ,श्री मौन्तेक्सिंह जी  को नहीं मालूम } कि भारतीय अर्थव्यवस्था यदि अमेरिका प्रणीत आर्थिक महामंदी कि चपेट में नहीं आयी तो इसके लिए देश का सार्वजनिक क्षेत्र .कृषि निर्भरता  और बचत कि परंपरागत प्रवृत्ति ही जिम्मेदार है .विगत २० सालों से देश में मनमोहनसिंह जी के मार्फ़त उक्त सार्वजनिक क्षेत्र  ध्वंसात्मक  नीतियों पर जोर लगाया जाता रहा है .इसमें एन डी ए कि आर्थिक नीतियां भी शामिल हैं ,क्योंकि उनकी कोई नीति नहीं है सो मनमोहनसिंह अर्थात पूंजीवादी नीति को १९९९से२००४ तक उन्ही आर्थिक सुधारों को तवज्जो दी गई जो स्व. नरसिम्हाराव के कार्यकाल में तत्कालीन वित्तमंत्री मनमोहनसिंह जी लाये थे .वे अमेरिका से सिर्फ यह एंटी-नेशनल वित्तीय-वायरस ही नहीं अपितु भारत में अमीरों को और अमीर बनाने  और गरीवों-किसानों को आत्महत्या के लिए प्रेरित करने का इंतजाम भी साथ लाये थे .आजादी  के फौरन बाद टेलिकाम क्षेत्र में कोई भी पूंजीपति आना नहीं चाहता था क्योंकि तब आधारभूत संरचना  कि लागत अधिक और मुनाफा कम था .विगत ५० सालों में जब देश कि जनता और दूरसंचार  विभाग के मजदूर कर्मचरियों ने कमाऊ विभाग बना कर तैयार कर दिया तो देशी विदेशी पूंजीपतियों ,दलालों कि लार टपकने लगी.बना बनाया नेटवर्क फ्री फ़ोकट में देश के दुश्मनों तक पहुंचा दिया .भारत संचार निगम को कंगाल बना कर रख दिया .एस -बेन्ड स्पेक्ट्रम हो या टु-जी थ्री -जी सभी कुछ दूर संचार विभाग से छीनकर उन कम्पनियों को दे दिया जिनकी न्यूनतम अहर्ताएं भी लाइसेंस के निमित्त अधूरी थी .कुछ के तो पंजीयन भी संदेहास्पद पाए गए हैं .
            तथाकथित नई दूरसंचार नीति के नाम पर जितना भ्रष्टाचार हुआ उतना सम्भवत विगत ६० सालों में अन्य शेष विभागों का समेकित भ्रुष्टाचार भी बराबरी पर नहीं आता .पहले तो इस नई टेलीकाम पालिसी के तहत दूर संचार विभाग के तीन टुकड़े किये गए -एक -विदेश संचार निगम जो कि रातों रात टाटा को दे दिया .दो -एम् टी एन एल बना कर अधमरा छोड़ दिया .तीन भारत संचार निगम बनाकर -{यह पवित्र काम एन डी ए कि अटल सरकार के समय हुआ था और स्व प्रमोद महाजन जी इस के प्रणेता थे ]राजाओं ,रादियाओं ,कनिमोजिओं ,बिलालों ,स्वानों ,भेड़ियों को चरने के लिए छोड़ दिया .दूर संचार विभाग के १९९९ से ए  राजा तक जितने भी मंत्री रहे हैं वे सभी महाभ्रष्ट थे.यह स्वभाविक है कि बोर्ड स्तर का अधिकारी भी भृष्ट ही होगा और चूँकि यह भृष्टाचार कि गंगा उपर से नाचे आनी ही थी, सो आ गई ...अब भारत संचार निगम या अन्य सार्वजनिक उपक्रमों को बीमार घोषित कर इसकी संपदा भी इसी तरह ओने पौने  दामों पर देशी विदेशी दलालों को बेचीं जाने बाली है .नई आर्थिक नीति के निहतार्थ यही हैं कि सब कुछ निजी कर दो लेकिन भारत कि जनता है कि सरकारी में ही आस्था लिए डटी हुई है .२८ जुलाई -२००८ को यु पी ए प्रथम कि सरकार से जब १-२-३-एटमी करार के विरोध में लेफ्ट ने समर्थन वापिस लिया था तब ,तब नोटों कि ताकत से समर्थन जुटाने वाले हमारे विद्द्वान प्रधान मंत्रीजी ने भवातिरेक में कहा था -अब कोई अड़चन नहीं ,वाम का कांटा दूर हो गया ...अब सब कुछ बदल डालूँगा ..... अब सब कुछ बेच दूंगा ....देशी विदेशी पूंजीपतियों को सप्रेम भेंट कर दूंगा ....क्यों कि अमिरीकी लाबी ने ठानी है ...नेहरु चाचा कि हर एक निशानी मिटानी है .यही कारण है कि जब भूंख से बिलखते गरीबों को मुफ्त अनाज {जो गोदामों में सड़ रहा है }देने कि सुप्रीम कोर्ट ने सलाह दी तो केद्र सरकार ने सलाह को हवा में उड़ा दिया और अब न्याय पालिका को नसीहत दी जा रही है कि हद में रहो ...खेर देश कि जनता का भरोसा अभी भी सार्वजनिक उपक्रमों पर बना हुआ है यही एक राहत कि बात है ...
      आज भी बीमा क्षेत्र में ८० % एल आई सी पर ही भारतीयों को भरोसा है .६० %लोगों को राष्ट्रीयकृत बैंकों के काम काज पर भरोसा है और इसी तरह बेसिक दूरभाष   -ब्राडबेंड -लीज्ड सर्किट इत्यादि में ८० %लोगों को भारत संचार निगम लिमिटेड पर भरोसा है .सिर्फ मोबाइल में निजी क्षेत्र इसीलिये आगे बढ़ गया क्योंकि १९९९ में ही मोबाइल क्षेत्र के लाइसेंस सिर्फ निजी क्षेत्र को दिए गए थे ,क्योकि इसी में भारी रिश्वत और पार्टी फंड कि गुंजाइश थी बी एस एन एल ई यु ने ,वर्तमान दौर के सूचना और संचार माध्यमों ने ,सुप्रीम कोर्ट ने  ,सुब्रमन्यम स्वामी ने ,प्रशांत भूषन ने अलख जगाई थी कि देश कि संचार व्यवस्था  को बर्बाद किया जा रहा है ,भारी भ्रष्टाचार कि भी लेफ्ट ने कई बार चेतावनी दी थी .मजेदार बात ये भी है कि जो भाजपा और एन डी ए भी २-g ,स्पेक्ट्रम मामले में और विभाग को तीन टुकड़े करके बेचने के मामले में  गुनाहगार है उसी ने  देश कि संसद नहीं चलने दी .इसे कहते हैं चोरी और सेना जोरी .कांग्रेस ने  तो मानों गठबंधन सरकार चलाने कि एवज में देश को ही खतरे में डाल दिया है और न केवल खतरे में अपितु पवित्र भारत भूमि को भ्रुष्टाचार कि गटर गंगा में ही डुबो दिया है ...देश कि जनता को सार्वजानिक क्षेत्र कि चिंता करने  कि फुर्सत नहीं क्योंकि उसे-बाबाओं ने, गुरु घंटालों ने , जात -धरम .क्रिकेट,मंदिर -मस्जिद भाषा और भ्रुष्टाचार कि बीमारियों से अशक्त बना डाला है .अब इससे से पहले कि कोई विराट जन आन्दोलन खडा हो ,पूंजीवादी निजामों द्वारा कुछ नई तिकड़म  बिठाये जाने के उपक्रम किये जाने वाले हैं किन्तु ये तय है कि देश के सार्वजानिक उपक्रमों को सरकारी या जनता के नियंत्रण से छीनकर निजी हाथों में दिए जाने से तश्वीर और बदरंग होती चली जायेगी .टेलिकॉम सेक्टर में सेवाएं तभी तक सस्तीं हैं जब तक सरकारी और सार्वजनिक उपक्रमों कि बाजार में उपस्थिति है जिस दिन बी एस एन एल या एम् टी एन एल नहीं रहेगा तब निजी क्षेत्र कि दरें क्या होंगी ?इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि जब १९९९ से २००५ तक मोबाइल क्षेत्र में सिर्फ निजी आपरेटर थे तो वे ने केवेल आउटगोइंग बल्कि इन कमिंग कालों के प्रति मिनिट १० से १६ रुपया तक वसूल करते थे .यही बात बैंक बीमा एल पी जी स्टील ,सीमेंट ,कोयला या बिजली क्षेत्र में दृष्टव्य है .इसीलिये सार्वजनिक क्षेत्र को बचाने के लिए उसके कर्मचारियों को भी अपनी कार्य शैली में बदलाव लाना होगा .जनता को भी इन उपक्रमों की हिफाजत इस रूप में करना चाहिए कि ये स्वतंत्र भारत के वास्तविक पूजास्थल हैं .जैसा कि पंडित नेहरु ने १९५६ में संसद में कहा था .
     
    श्रीराम तिवारी
   




       
        

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी सभी बातें एकदम सही हैं.परन्तु आम जनता यह सब कहाँ सोचती है उसे तो भ्रामक धर्म के जंजाल में उलझा कर रखा गया है ,इसी कारण मैं अपने क्रन्तिस्वर पर भ्रामक धार्मिकता एवं भ्रामक भारतीयता पर लगातार प्रहार कर रहा हूँ.मैं आशा करता हूँ की आपके और हमारे प्रयास व्यर्थ नहीं जायेंगे और अंततः हम कामयाब होंगे.लाल सलाम.

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