आमतौर पर किसी व्यक्ति वस्तु या सुखद कालखंड के अवसान पर मातम मनाने की अघोषित परम्परा न जाने कब से चली आ रही है ,किन्तु यह वैयक्तिक ,भौगोलिक , सामाजिक , आर्थिक ,गुणवत्ता और मात्रात्म्कता से अभिप्रेरित होती हुई भी सर्वव्यापी और सर्वकालिक परम्परा है .मान लीजिये कि किसी को ठण्ड में आनंद मिलता है तो किसी को बारिस में ,अब ठण्ड वाले को शरद -शिशिर -हेमंत -वसंत के अवसान का दुःख तो होगा ही किन्तु जिस अस्थमा के मरीज ने ये चार महीने बड़ी मुश्किल से गुजारे हों ;वो इस शीतकाल के अवसान पर शोकाकुल क्यों होगा ? जिस किसी को ऍफ़ एम् रेडियो या वैकल्पिक संचार साधनों को अजमाने का शौक है उसे बी बी सी कि हिंदी-सेवा के अवसान से क्या लेना देना ?
कुछ साल पहले में अपने पैतृक गाँव पिडारुआ{सागर} मध्य प्रदेश ,गया था .तब गाँव में बिजली नहीं थी .यह गाँव तीन ओर से भयानक घने जंगलों से घिरा है ,सिर्फ इसके पश्चिम में खेती कि जमीनों का अनंत विस्तार है ,जो बुंदेलखंड और मालवा के किनारों को स्पर्श करता है .इस इलाके में भयंकर जंगली जानवर और खूंखार डाकू अब भी पाए जाते हैं .यहाँ हर १० मील की दूरी पर पुराने किले चीख -चीख कर कह रहेँ कि-बुंदेले हर बोलों कि ........यहीं पर पुराने किले कि तलहटी में एक शाम मेरी मुलाकात बी बी सी से हुई थी .में तब सीधी से सीधा सागर होते हुए गाँव पहुंचा था.मेरी पहली पद स्थापना सीधी में ही हुई थी ,मुझे नियमित रेडिओ खबरें सुनने कि लत सी पड़ गई थी .गाँव में तब दो-तीन शौकीन नव -सभ्रांत किसान पुत्रों के यहाँ रेडिओ आ चुके थे .मुझे किले कि तलहटी में कुंदनलाल रैकुवार के पास ले जाया गया .
कुंदनलाल जन्मांध थे ,व्रेललिपि इत्यादि का तब इतना प्रचार-प्रसार नहीं हुआ था और गाँवों तक उसकी पहुँच तो आज भी नहीं है सो कुंदनलाल जी जिन्हें लोग आदर से{?} सूरदास भी पुकारा करते थे ;नितांत निरक्षर थे .उनसे राम-राम होने के बाद रेडिओ पर खबरों कि हमने ख्वाइश जताई .उन्होंने हाथ से रेडिओ को टटोलकर आन किया और हमसे पूंछा कि कौनसा चेनल लगाना है ?हमने कहा कि कोई भी लगा दो ,न हो तो आल इंडिया या रेडिओ सीलोन ही लगा दो .उन्होंने बी बी सी लन्दन लगा दिया .
मैंने बचपन में ही गाँव छोड़ दिया था सो वर्षों बाद जब यह देखा कि एक नेत्रविहीन व्यक्ति न केवल अपनी वैयक्तिक दिनचर्या सुचारू ढंग से चलाता है अपितु शहरी चकाचौंध के बारे में सब कुछ जानता है .जब मुझे पता लगा कि भारत कि राजनैतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक द्वंदात्मकता के बारे में वो मुझसे कई गुना और भी बहुत सी बातें जानता है ,तो मैं हर्षातिरेक से उसका मुरीद हो गया, उत्सुकतावश ही मैंने कुंदन से पूंछा कि अच्छा बताओ चीन का सबसे शक्तिशाली नेता कौन है ? उसने कहा देंग सियाव पिंग मैंने पूंछा सेंटर आफ इंडियन ट्रेड यूनियन का महासचिव कौन ?जबाब था वी टी रणदिवे .मेने सोचा कि कोई ऐसा सवाल पूंछू जिसका ये जबाब न दे सके और फिर इस पर अपनी बौद्धिक श्रेष्ठता साबित कर चलता बनूँ .मैंने पूंछा कि.अच्छा कुंदन बताओ दक्षिण पूर्व कि दिशा का नाम क्या है ?उसने कहा आग्नेय ......और फटाफट ईशान ,वायव्य ,नैरुत की भी लोकेशन बता दी .
कुंदन के ज्ञानअर्जन में हो सकता है कि उसकी श्रवण इन्द्रयाँ का कमाल ही हो जो सामान्य इंसानों से ज्यादा गतिशील हो सकतीं हैं किन्तु कुंदन ने अपनी बोधगम्यता का पूरा श्रेय ईमानदारी से रेडिओ को दिया.जब मैं चलने लगा तो उसने एक सुझाव भी दिया कि बी बी सी सुना करो -सही खबरें देता है ....
इस घटना को लगभग ३५ साल हो चुकें है ,तब से आज तक मैंने भी यही पाया कि बी बी सी हिंदी सेवा ने अपनी विश्वशनीयता को कभी भी दाव पर नहीं लगाया.चाहे इंदिरा जी कि हत्या की खबर हो,चाहे राम-जन्म भूमि -बाबरी -मस्जिद मामला हो, चाहे गोर्वाचेव काअपहरण हो और चाहे भारत -पाकिस्तान परमाणु परीक्षण हो -हमने जब तक बी बी सी से पुष्टि नहीं की , इन खबरों को अफवाह ही माना .बी बी सी की प्रतिष्ठा समाचारों के क्षेत्र में उसके प्रतिसपर्धियों को भी एक आदर्श थी .रेडिओ के स्वर्णिम युग में भी जब आकाशवाणी का ढर्रा नितांत वनावती और चलताऊ उबाऊ किस्म का हुआ करता था तब बी बी सी सम्वाददाता सुदूर गाँवों में ,पहाड़ों पर ,युद्ध क्षेत्रं में जाकर आँखों देखा हाल प्रेषित कराने में आनंदित होता था .आज जो विभिन्न न्यूज चेनल के संवाददाता ,फोटोग्राफर घटना स्थल पर जाकर लोगों की भीड़ से सवाल करते हैं ,सम्बंधित अधिकारीयों ,राजनीतिज्ञों से उनका पक्ष रखने को कहते हैं ये सभी उपक्रम बी बी सी ने सालों पहले ईजाद किये थे और मीडिया की विश्वसनीयता को स्थापित करने के प्रयास किये हैं .अब यह भरोसे मंद सूचना माध्यम आगामी ३१ मार्च को खामोश हो जाएगा ...सदा सदा के लिए .
११ मई १९४० को बी बी सी की हिंदी सेवा प्रारंभ हुई थी.बहुत बाद में इसकी सिग्नेचर ट्यून हिंदी फिल्म पहचान से ली गई थी .विगत ७० सालों में बी बी सी हिंदी सेवा ने अनेक महत्वपूर्ण घटनाओं को कवर किया है .चाहे वह १९७१ का भारत -पाक युद्ध हो ,आपातकाल हो ,जनता पार्टी की सरकार हो , संसद पर हमला हो,तमाम एतिहासिक घटनाओं को उनके वास्तविक रूप में जनता के सामने प्रस्तुत करने में बी बी सी की कोई सानी नहीं .
१९६७ से १९७९ तक विनोद पाण्डे हिंदी खबरें पढ़ा करते थे बकौल उनके -बी बी सी पर किसी किस्म का दबाव नहीं चला .उसकी तटस्थता , विश्वसनीयता ही उसकी पूँजी थी .मार्क टली, रत्नाकर भारती ,सतीश जेकब और आकाश सोनी इत्यादि नामचीन व्यक्तियों ने इसमें बेहतरीन सेवाएं दीं हैं .
बी बी सी हिंदी सेवा के अवसान से उत्तर भारतीय और खास तौर से हिंदी जगत को जो अपूरणीय क्षति होने वाली है उसका बी बी सी के हिंदी श्रोताओं को ही नहीं बल्कि -हिंदी कवियों ,साहित्यकारों और संस्कृति कर्मियों को बेहद अफ़सोस होगा .
श्रीराम तिवारी
बिलकुल सही लिखा है आपने.उनके अर्थ-शास्त्र ने उत्तर-भारतीयों को विश्वस्त समाचारों से विरत होने का अवसर ला दिया है.
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