मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

घर-आँगन में वसंत बहार हो.........

      शब्द  गीत  छंद में , प्रबंध लालित्य में ,
     नियति नटी की , मधुर झंकार  हो .
     साधना  समष्टि की , चेतना अभीष्ट की ,
    विरही -मिलन  संयोग श्रंगार हो ..
    सुबह अलसाई सी ,शाम हरषाई सी .
    घर आँगन में वसंत बहार हो ..
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    लेखनी की मार  हो ,नौ रस धार हो
    रति संग ऋतू  की मदन मनुहार हो
     कभी चलें व्यंग्य बाण, मनसिज नेन बाण ,
     हस परिहास की प्रणय पुकार हो ..
     वन उपवन फूले अमुआ पै बौर झूले ,
      फूल रहे बगिया में जूही कचनार हो ..
                श्रीराम तिवारी
    
       

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