मिस्र में जो चल रहा है वो कुछ भी नामित हो किन्तु इसे क्रांति का नाम देना उचित नहीं होगा.विगत १० दिनों की राजनैतिक गतिविधियों का निचोड़ ये है की मिस्र का वर्तमान जानान्दोलन नितांत दिशाहीन और गृहयुद्ध पोषक है .इतने दिन मुबारक विरोधी सड़कों पर चिल्ल पों मचाते रहे किन्तु हुस्नी मुबारक ने संयम से काम लिया ;किन्तु जब देश से बाहर की अंतर्राष्ट्रीय ताकतों ने अपने मोहरे मिस्र की सरजमीं पर उतारने शुरू किये तो मुबारक समर्थक आवाम का धैर्य चुकने लगा और कल २ फरवरी को वे भारी तादाद में हुस्नी मुबारक के समर्थन में न केवल काहिरा बल्कि पूरे देश में सड़कों पर उतर आये , न केवल सड़कों पर उतर आये अपितु सेना के बैरीकेट्स तोड़कर तहरीर स्कायर पर जमा हो गए और नारा लगाया -लॉन्ग लीव हुस्नी मुबारक .स्थिरता सम्बन्धी हुस्नी मुबारक के कमिटमेंट पर वे यकीनी तौर पर आश्वस्त हैं अब इस विप्लवी माहौल को गृहयुद्ध नहीं तो क्या क्रांति कहेंगे ?
हुस्नी मुबारक की जगह शायद मोहम्मद अलबरदेई आ जाएँ ,या शायद कोई फौजी बन्दा सत्ता पर काबिज हो जाये किन्तु मिस्र की जनता की वास्तविक तकलीफें -महंगाई ,वेरोजगारी और उत्पीडन -कम होने की कोई गारंटी नहीं है ,ये विश्वव्यापी आर्थिक संकट का दौर है किसी एक व्यक्ति की जगह दूसरे को राष्ट्राध्यक्ष भर बना देने से व्यस्थाएं नहीं बदला करतीं .व्यवस्था परिवर्तन के लिए क्रन्तिकारी आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक है .इस तरह के दिशाहीन विचारहीन ,व्यक्तिपरक आन्दोलन अपनी ऊष्मा बरकार रखने में ही असफल होते रहे हैं ,क्योंकि इस आन्दोलन के पास वैज्ञानिक तरीके से समाज ,राजनीत या आर्थिक दुरावस्था से निपटने का कौशल नहीं होता .
हुस्नी मुबारक ही एकमात्र अरेवियन हैं जिन पर इजरायल को यकीन है और इसीलिये वे अमेरिका के भी विश्वाशपात्र है .अलबरदेई होंगे तो वे भी उसी घात के हैं .जहाँ तक फौजों का सवाल है तो यह जगजाहिर है की इस भूतल पर जितने भी फौजी शासक हैं या विगत ५० सालों में हुए हैं- वे सभी अमेरिकी धुन पर नाचने बाले कालबेलिए भर रहे हैं फिर मिस्र की जनता का यह वर्तमान विप्लवी उपसंहार कहाँ समाप्त होगा ?
वैसे भी हुस्नी मुबारक की उम्र ढल चुकी है वे ३० साल से सत्ता पर काबिज हैं ;किन्तु मिश्र की जनता जिस लोकतंत्र की मांग कर रही है वो तो एलेक्ट्रोरल की राह ही आ पायेगा .हुस्नी कह भी रहे हैं की आगामी आम चुनाव में मैं खड़ा नहीं होऊंगा और मौजूदा संविधान के तहत सत्ता परिवर्तन का आवाम को मार्ग भी प्रशस्तकर्ता हूँ ;किन्तु लोग हैं कि मुबारक को गद्दी छोड़ने का आह्वान कर रहे हैं .यह लगातार १० दिन तक चलने से तंग आकार अभी तक जो चुप थे और हुस्नी से खुश थे वे भी मैदान में आ गए और इस तरह एक प्रतिष्ठित राष्ट्र फिर से दो रहे पर खड़ा है .मिश्र कि जनता एक दुखांत अध्याय कि ओर अग्रसर है .
मिस्र के अंदरूनी संघर्ष से पूर्व फ़्रांस ,ट्यूनीसिया ,तुर्की तथा दुनिया के अनेक भू-भागों में वर्तमान वैश्विक आर्थिक संकट की धमक महसूस की गई और अब तो भारत भी इस की चपेट में आने वाला है .भारत सरकार ने पेट्रोल डीजल के दाम विगत वर्ष में २-३ बार बढ़ाये हैं अब ओपेक ने जब १०० डालर प्रति वेरल कच्चा तेल कर दिया तो महंगाई का आलम नाकाबिल-ए बर्दास्त हो जायेगा .तब भारत की जनता भी सडको पर उमड़ पड़ेगी और फिर एक अदद कोई दूसरा दल या व्यक्ति सत्तासीन हो जायेगा और मंहगाई -बेरोजगारी -कुव्यवस्था -भृष्टाचार ज्यों के त्यों बरकरार रहेंगे क्योंकि पूंजीवादी अर्थ-व्यवस्था में मुनाफा केंद्र में होता है और इंसानियत ,भूंख ,न्याय सभी हासिये पर होते हैं .बिना वैज्ञानिक तौर तरीके से व्यवस्था परिवर्तन एक प्रपंच मात्र है जो शक्तिशाली प्रभु वर्ग के हित संवर्धन की कुंजी है .इसमें नाहक ही आम जनता और खासतौर से निर्धनजन स्वाहा होते रहते हैं .मिस्र या इजिप्ट में यही सब हो रहा है .वहाँ एक सकारात्मक क्रांती की अभी कोई संभावना नहीं .
श्रीराम तिवारी
हुस्नी मुबारक की जगह शायद मोहम्मद अलबरदेई आ जाएँ ,या शायद कोई फौजी बन्दा सत्ता पर काबिज हो जाये किन्तु मिस्र की जनता की वास्तविक तकलीफें -महंगाई ,वेरोजगारी और उत्पीडन -कम होने की कोई गारंटी नहीं है ,ये विश्वव्यापी आर्थिक संकट का दौर है किसी एक व्यक्ति की जगह दूसरे को राष्ट्राध्यक्ष भर बना देने से व्यस्थाएं नहीं बदला करतीं .व्यवस्था परिवर्तन के लिए क्रन्तिकारी आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक है .इस तरह के दिशाहीन विचारहीन ,व्यक्तिपरक आन्दोलन अपनी ऊष्मा बरकार रखने में ही असफल होते रहे हैं ,क्योंकि इस आन्दोलन के पास वैज्ञानिक तरीके से समाज ,राजनीत या आर्थिक दुरावस्था से निपटने का कौशल नहीं होता .
हुस्नी मुबारक ही एकमात्र अरेवियन हैं जिन पर इजरायल को यकीन है और इसीलिये वे अमेरिका के भी विश्वाशपात्र है .अलबरदेई होंगे तो वे भी उसी घात के हैं .जहाँ तक फौजों का सवाल है तो यह जगजाहिर है की इस भूतल पर जितने भी फौजी शासक हैं या विगत ५० सालों में हुए हैं- वे सभी अमेरिकी धुन पर नाचने बाले कालबेलिए भर रहे हैं फिर मिस्र की जनता का यह वर्तमान विप्लवी उपसंहार कहाँ समाप्त होगा ?
वैसे भी हुस्नी मुबारक की उम्र ढल चुकी है वे ३० साल से सत्ता पर काबिज हैं ;किन्तु मिश्र की जनता जिस लोकतंत्र की मांग कर रही है वो तो एलेक्ट्रोरल की राह ही आ पायेगा .हुस्नी कह भी रहे हैं की आगामी आम चुनाव में मैं खड़ा नहीं होऊंगा और मौजूदा संविधान के तहत सत्ता परिवर्तन का आवाम को मार्ग भी प्रशस्तकर्ता हूँ ;किन्तु लोग हैं कि मुबारक को गद्दी छोड़ने का आह्वान कर रहे हैं .यह लगातार १० दिन तक चलने से तंग आकार अभी तक जो चुप थे और हुस्नी से खुश थे वे भी मैदान में आ गए और इस तरह एक प्रतिष्ठित राष्ट्र फिर से दो रहे पर खड़ा है .मिश्र कि जनता एक दुखांत अध्याय कि ओर अग्रसर है .
मिस्र के अंदरूनी संघर्ष से पूर्व फ़्रांस ,ट्यूनीसिया ,तुर्की तथा दुनिया के अनेक भू-भागों में वर्तमान वैश्विक आर्थिक संकट की धमक महसूस की गई और अब तो भारत भी इस की चपेट में आने वाला है .भारत सरकार ने पेट्रोल डीजल के दाम विगत वर्ष में २-३ बार बढ़ाये हैं अब ओपेक ने जब १०० डालर प्रति वेरल कच्चा तेल कर दिया तो महंगाई का आलम नाकाबिल-ए बर्दास्त हो जायेगा .तब भारत की जनता भी सडको पर उमड़ पड़ेगी और फिर एक अदद कोई दूसरा दल या व्यक्ति सत्तासीन हो जायेगा और मंहगाई -बेरोजगारी -कुव्यवस्था -भृष्टाचार ज्यों के त्यों बरकरार रहेंगे क्योंकि पूंजीवादी अर्थ-व्यवस्था में मुनाफा केंद्र में होता है और इंसानियत ,भूंख ,न्याय सभी हासिये पर होते हैं .बिना वैज्ञानिक तौर तरीके से व्यवस्था परिवर्तन एक प्रपंच मात्र है जो शक्तिशाली प्रभु वर्ग के हित संवर्धन की कुंजी है .इसमें नाहक ही आम जनता और खासतौर से निर्धनजन स्वाहा होते रहते हैं .मिस्र या इजिप्ट में यही सब हो रहा है .वहाँ एक सकारात्मक क्रांती की अभी कोई संभावना नहीं .
श्रीराम तिवारी
लेखक के विचार समझ से परे है, जबकि मिस्र, अमेरिका के कथित 'आतंक के खिलाफ युद्ध' की एक बहुत ही बड़ी कड़ी बना रहा है. मुबारक हुस्नी दुनिया भर से सी आई ए द्वारा अपहरण कर के लाए जाने वाले बंदियों को रखने का ठिकाना बना रहा था ताकि ख़ुफ़िया एजिंसियों द्वारा चलाई जा रही जेलों में उन्हें यातनाएँ दी जा सके. इन करतूतों ने उजागर कर दिया की मुबारक हुस्नी अमेरिका के साथ किस हद तक मिलीभगत कर के चल रहा था. Ramlal Gothwal
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