रविवार, 6 फ़रवरी 2011

कोओं के कोसने से ढोर नहीं मरते ...चोर चोर चिल्लाने से चोरी नहीं रुकती.....

        विश्व व्यापी आर्थिक संकट के आंशिक असर और देशज कुव्यवस्थाओं ने आधुनिकतम सूचना एवं संचार माध्यमों के राष्मिरथों पर सवार होकर सारी दुनिया को बैचेन कर रखा है .बढ़ती हुई महंगाई , वेरोजगारी , भृष्टाचार ,असमानता और शोषण -दमन -उत्पीडन  के संत्रासों ने दुनिया भर की वैज्ञानिक खोजों ,भौतिक उपलब्धियों और तमाम राजनैतिक व्य्वाश्थाओं पर भी प्रश्न चिन्ह लगा दिए हैं .मौजूदा समस्याओं को अतीत में भी उनके तत्कालीन स्वरूपों में यथावत देखा जा सकता है . इनसे निज़ात पाने की सकारात्मक कोशिशें भी होती रहीं हैं .इसके लिए कई बार नेत्रत्व परिवर्तन भी किये गए हैं ;अब भी उसी की पुनावृत्ति का शोर कतिपय दूध के धुले  लोग मचा रहे हैं ;बाबा रामदेव जैसे गैर राजनैतिक लोग जरा ज्यादा ही जल्दबाजी में हैं .वे तो भारत में इजिप्ट जैसी स्थिति की कामना कर रहे हैं ;उनका राष्ट्रवाद न केवल उटोपिया भर है अपितु कोरी शाब्दिक लफ्फाजी के दम पर देश में गृह युद्ध छिड़ जाने की भविश्यबानी भी ये गैर जिम्मेदार लोग बेखटके कर रहे हैं .
         जब -जब केवल नेत्रत्व परिवर्तन की वैयक्तिक अथवा जन-आकांक्षी कोशिशें हुईं तब तब केवल खाया पिया आठ आना और गिलास फोड़ा बारह आना ही सावित हुआ है ,कई मर्तवा इस तरह के बदलाव की मूर्खता पूर्ण कोशिश में अनेक सभ्यताएं मर मिट गईं और राष्टों को गुलाम होना पड़ा .भारत में पहले पृथ्वीराज चौहान को हटाने के फेर में तत्कालीन विरोधी सामंतों ने जब जैचंद का साथ दिया तो नतीजा विश्व विदित है .इसी तरह जब इब्राहीम लोदी को हटाने के लिए विरोधी बाबर के पास उज्बेगिस्तान तक गए तो मुग़ल आये और सेकड़ों सालों तक भारत के साथ सिर्फ अन्याय ही किया .वे अपने पूर्व वर्ती हिन्दू सामंतों से भी ज्यादा क्रूर सावित हुए .मुगलों को हटाने के फेर में मीर कासिम ने जिन अंग्रेजों की मदद की वे किस रूप में मुग़ल शाशकों से बेहतर थे ? मुग़ल कम से कम लूट का माल देश से बाहर तो नहीं ले गए .अंग्रेज तो पूरा देश १९० साल तक लूट लूट कर इंग्लेंड ले जाते रहे .उसी का नतीजा है की आज भी दो तिहाई भारत भुखमरी के लिए अभिशप्त है .आजादी के बाद भी आम तौर पर जनता का अनुभव यही रहा कि जब जब नेत्रत्व परिवर्तन हुआ तो महंगाई ,बेरोजगारी .असमानता और भ्रष्टाचार ने दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की ही है .कुछ अपवादों को छोड़ दें जो कि सैद्धांतिक और वैचारिक विकल्प के साथ सत्ता में कभी कभार कुछ वक्त के लिए आ पाए थे और देश कि जनता को उसके कल्याणकारी दायित्व से परिचित कराया. . इनके आलावा जनता ने यही कहा कि क्या नागनाथ ? क्या सांपनाथ?
           आजकल योग गुरु बाबा रामदेव जी जरा ज्यादा ही नेत्रत्व  परिवर्तन पर जोर दे रहे हैं . इसमें कोई संदेह नहीं कि जिन सवालों को वे उठा रहे हैं वे प्रासंगिक हैं किन्तु इन्ही सवालों को विगत कई वर्षों से लेफ्ट ने भी उठाया है . उनसे भी ज्यादा उग्र तरीके से नक्सलवादियों ने उठा रखा है .इसी तरह देश कि न्याय पालिका और मीडिया का बहुत बड़ा हिस्सा भी इन सनातन समस्याओं -भृष्टाचार , देश -विदेश में कालाधन ,महंगाई .असमानता को लेकर लगातार अपनी ओर से यथा संभव देश हितैषी दृष्टीकोन से संनिद्ध रहा है .इसी तरह सर्व श्री पी साईंनाथ  ,प्रवीर पुर्स्काय्स्थ ,आन्ना हजारे स्वामी अग्निवेश ,सुब्रमन्यम स्वामी तथा प्रसिद्द वकील प्रशांत  भूषन से लेकर धुर दक्षिण पंथी आचरण वाले संगठनो तक ने इस विषय पर आलोचनाओं को हवा दी है ;किन्तु भृष्ट पतनशील व्यवस्था का बाल बांका नहीं हुआ . उलटे मर्ज़ बढ़ता ही गया  ज्यों -ज्यों दवा कि ...मेरा मंतव्य यह कतई नहीं की ज्वलंत सवालों को उठाया ही न जाये या व्यवस्था को सकारात्मक दिशा में न ले जाया जाये .मेरा मानना है की विना वैकल्पिक नीतियों और कार्यक्रमों के विना किसी बेहतर राजनेतिक संगठन के किसी एक अकेले व्यक्ति के आह्वान पर या दुनिया के किसी अन्य देश के घटना क्रम से प्रेरित होकर भारत में कुछ भी परिवरतन -क्रांति ,प्रतिक्रान्ति नहीं होने वाली केवल भ्रान्ति होने का अंदेशा भर है .क्रांति से मेरा अभिप्राय सकारात्मक क्रन्तिकारी परिवर्तन से है ,प्रतिक्रान्ति से मेरा मतलब अधोगामी परिवर्तनों से है और भ्रांती का अर्थ वही है जो इजिप्ट में तथा सम्पूर्ण अरब जगत में होने का अंदेसा है भ्रान्ति याने आपस में लड़ो और देशी विदेशी शाशकों को सर पर बिठाओ ,गुलामी का इंतजाम करो . पूंजीवाद का हुक्का पानी भरो .भारत में ये भ्रान्ति अब कभी भी सफल नहीं होने वाली .वैसे ही जैसे की अमेरिका प्रणीत आर्थिक मंदी की दाल भारत में तो  नहीं गल सकी ;भले ही आधी दुनिया का वंताधार कर  दिया हो .भारत के पास ऐसा अद्भुत कुकर है कि उसमें भाप जमा नहीं हो पाती ;उसमें सेफ्टी वाल्व का प्रावधान है जिससे जनाक्रोश रुपी भाप रिसती रहती है .
       बेशक भारत में बेहद काली कमाई का नंबर दो का पैसा है ,विदेशी बैंकों में बीसियों लाख करोड़ जमा हैं ,जान लेवा महंगाई है ,शोषण -दमन  है फिर भी आधा अधूरा ही सही दुनिया में सबसे बेहतर लोकतंत्र होने से जनता का गुस्सा कुकर फोड़ नहीं हो पाता.यहाँ नियमित चुनाव होते हैं ,सरकारें बदलती हैं .आपातकाल की काली अवधि को छोड़कर शेष वर्षों में आदर्शोन्मुखी लोकतान्त्रिक शाशन प्रशासन देने का उसके चारों स्तंभों ने भरपूर प्रयास किया है .हमने ऐसी व्यवस्था और संविधान वनाया है की आइन्दा इस देश में तानाशाही को कोई स्थान नहीं .यहाँ मिस्र की तरह कोई फौजी निजाम नहीं कि लोग अपना सब कुछ छोड़ कर किसी बाबा के बहकावे में रायसीना हिल को घेरने पहुँच जाएँ .भारत में दुनिया कि सर्व श्रेष्ठ न्य्याय पालिका है ,शानदार मीडिया है ,शानदार नागरिक आजादी है
ये सब ट्युनिसिया ,मिस्र ,सौदी अरब ,पाकिस्तान और जोर्डन में नहीं हैं तो वगावत होगी ही .हमारे यहाँ अन्न -धन तथा प्राकृतिक संपदा का विशाल भण्डार है ,कमी सिर्फ आर्थिक सामाजिक समानता कि है सो यदि कोई वंदा चाहता है कि देश में मुनाफाखोरी ,मिलावट और रिस्वर्खोरी वंद हो तो वो राष्ट्रीय पार्टियों में से किसी को भी इस शर्त पर ज्वाइन कर सकता है कि भाई मेरे पवित्र उद्देश्य में यदि तुम सहभागी हो तो में तुम्हें आगामी लोकसभा या विधान सभा के चुनाव में जितवाने में सहयोग करूँगा ,लेकिन यदि वो कहे कि भारत कि स्थिति मिस्र जैसी  है ,प्रधानमंत्री का नार्को टेस्ट कराओ तो में कहूँगा कि बाबाजी आप अपना मानसिक टेस्ट कराओ .हमारा प्रधानमंत्री कुछ भी हो हुस्नी मुबारक के जैसा तानाशाह और चोट्टा नहीं है और यदि होता तो बाबाजी आप इतने पैसे वाले या इतने बडबोले भी नहीं हो पाते .यदि भारत में सरकार के खिलाफ किसी वर्ग या समूह कि नाराजगी होती है तो यहाँ के लोग अपना गुस्सा रेल कि पटरियों पर  रोड पर बसें जलाकर ,आत्म ह्त्या करके समाप्त कर देते हैं.धरना प्रदर्शन
करने में हम सबसे आगे हैं ,हम इजिप्ट कि तरह तीस साल तो क्या तीस महीने नहीं रुक सकते .इस तरह हम भारतीय अपनी आक्रोश रुपी भाप को विभिन्न सेफ्टी वाल्वों से विसर्जित करते रहते हैं .यह सही है कि भारतीय लोकतंत्र के प्राण पूंजीपतियों -भूस्वामियों की तिजोरियों में कैद हैं अथ बाबा वैरागियों से निवेदन है कि भारत में मिस्र जैसे हिंसक तांडव कि कामना के बजाय अपने पूँजीपति चेले चपाटों को दुर्वासाई रूप दिखाएँ और यदि भारतीयता से भारत से जरा भी लगाव हो तो 'अहिंसा 'को कभी विस्मृत न होने दें .वैसे भी हर विचार का एक समय होता है ;और जब समय आ जाता है तो कोई भी विचार या क्रांति किसी व्यक्ति विशेष का इंतज़ार नहीं करती .अरब देशों में संभवत उस बदलाव रुपी विचार का वक्त आ पहुंचा है .इसीलिये वहां उसे कोई नहीं रोक सकता ;

          कांग्रेस ,भाजपा ,माकपा ,भाकपा के अलावा किसी भी अन्य व्यक्ति या राजनैतिक दल के पास कोई वैकल्पिक आर्थिक -वैदेशिक या सत्ता सञ्चालन के कार्यक्रम अथवा नीतियां नहीं हैं .ये ४-५ राष्ट्रीय दल ही देश कि और देश कि जनता कि वास्तविक नब्ज पर हाथ रखे हुए हैं  इन्ही के धुर्वीकरण से कभी एन डी ए तो कभी यु पी ए को सत्ता में जिम्मेदारी मिलती है .इन्ही कि बदौलत देश में किसी भी' भ्रान्ति 'की गुंजाईश नहीं है ये जिम्मेदार राजनीतिग्य अछ्ही तरह से अपनी भूमिका का निर्वाह करें इसकी जिम्मेदारी जनता कि है अब जमाना जनता का है -यथा जनता ...तथा नेता अथवा सरकार ......
           श्रीराम तिवारी
        

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