शनिवार, 29 जुलाई 2023

आम चुनाव में संगठित विपक्ष

 वतनपरस्त लोगों को केद्र सरकार के निर्देश पर भृस्टाचार के खिलाफ- IT,ED,CBI की सक्रियता का समर्थन करना चाहिए! किंतु देश की प्रबुद्ध पब्लिक यह जानने को बेताब है कि सिर्फ विपक्षी नेताओं के यहां ही छापे क्यों पड़ रहे हैं?विपक्षी सांसदों को ही संसद से सस्पेंड क्यों किया जा रहा है?

एक और आश्चर्य है कि यदि कोई भ्रष्ट कांग्रेसी या विपक्षी दल का नेता दलबदल कर NDA अथवा भाजपा ज्वाइन कर लेता है तो उसे तत्काल पाक साफ मान लिया जाता है!बहुत दिनों से किसी भाजपाई भ्रष्ट नेता के यहां IT,ED,CBI का छापा नहीं पड़ा है! मेरी राय है कि आगामी आम चुनाव से पूर्व कुछ भ्रस्ट भाजपाई नेताओं के यहां छापे डाल दिये जाएं,ताकि यह आरोप गलत सिद्ध हो जाए कि केंद्रीय जांच ऐजेंसियां केवल विपक्ष को निशाना बना रहीं हैं! यदि कुछ समय के लिये भाजपा के एक दो उदंड सांसदों को भी कुछ घंटों के लिए सस्पेंड किया जायेगा ,तो दुनिया में यह संदेश जाएगा कि मोदीजी के राजमें भारतीय लोकतंत्र शिखर पर है,जहां शेर और बकरी एक घाट पानी पीते हैं।
यदि ऐंसा कुछ जतन नही किया तो आम चुनाव में संगठित विपक्ष को दुष्प्रचार करने का मौका मिल जाएगा,कि नियम कायदे- सत्ता प्रतिष्ठान के इशारे पर विपक्षी नेताओं को सताने भर के लिए हैं।वेशक नेशनल हेराल्ड जैसे जूने पुराने म्रतप्राय अखवार और एक सभ्रांत बुजुर्ग बीमार महिला व उसके बच्चों को सताने का परिणाम खतरनाक हो सकता है,मोदीजी की लोकप्रियता भले बनी रहे किंतु सत्ता हाथ से जा सकती है!श्रीराम तिवारी

ओछी मानसिकता के लोग

 मणिपुर की हिंसा के बहाने तमाम हरल्ले विपक्षी दल केंद्र सरकार को घेरने में जुटे रहे,आज किसी ईसाई धर्मगुरु ने मीडिया पर खुलासा किया है कि मणिपुर का यह साम्प्रदायिक संघर्ष नही है, बल्कि यह जनजातियों (मैतेई और कुकी) के बर्चस्व का संघर्ष है।

यही बात कल 27-जुलाई को मैने अपनी एक पोस्ट में कही थी। तब कुछ घटिया लोग इस बहस में RSS को घसीट रहे थे। जबकि यह घटिया आरोप तो मणिपुर के पीड़ितों ने भी नही लगाया। कुछ ओछी मानसिकता के लोग विदेशी ताकतों के मंसूबे पूरे कर रहे हैं। वे मोदीजी पर भी मणिपुर की बीमारी का ठीकरा फोड़ते देखे गये। छि:धिक्कार है।

वामपंथ की विचारधारा असफल हो रही है

 पूंजीवादी अर्थशास्त्री रेकार्डो ने कहा था कि माल (Product) *श्रम काल* में पैदा होता है! तब मार्क्स ने उसमें यह जोड़ा कि मजदूर के काम की गणना श्रम काल में तो जरूर होती है किन्तु माल उसके श्रम काल से नहीं बल्कि उस श्रम काल में व्यय की गई मजदूर की *श्रम शक्ति अर्थात उसकी ऊर्जा*से ही पैदा होता है।

इस तरह मार्क्स को अपनी बात रखने का आधार रेकार्डो ने ही दिया। जबकि हीगेलियन सिद्धांत भाव जगत की द्वंदात्मकता को कार्ल मार्क्स ने भौतिक जगत में रूपांतरित कर सर्वहारा वर्ग के हितों का मार्ग प्रशस्त किया है!
ऐंसा प्रतीत होता है कि आजकल हर देश में नव्य पूंजीवाद समर्थक लॉबी ने मार्क्स के सिद्धांतों को नकार दिया है। यह सच नही है कि मार्क्सवाद अब काल कवलित हो चुका है। दरसल वैश्विक इस्लामिक आतंकवाद से डरकर विभिन्न गैर इस्लामिक सभ्यताओं ने और सम्रद्ध संस्कृतियों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रभुत्व के लिए होने होने वाले आम चुनाव में जातीय मजहबी Urdu करने का अचूक ब्रह्मास्त्र ढूंड निकाला है।
अतः अब रोटी कपड़ा मकान,शिक्षा नही मांगते लोग,बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और अपनी पृथक सांस्कृतिक पहचान के लिये वोटों का टैक्टिकल ध्रुवीकरण करने लगे हैं। तात्पर्य यह है कि वाम पंथ और उसकी विचारधारा उन देशों में असफल हो रही है,जहाँ राष्ट्रीयता और संस्कृति को हिंसक बर्बर आतंकवाद और उनकी आक्रामकता से खतरा है।

धर्म मज़हब की गलत सलत परम्पराओं और अंध विश्वासों पर चोट करनी चाहिए!

 यदि हम हिन्दू हैं तो ईसाई,यहूदी या इस्लाम के बारे में कुछ कहने का कोई हक नहीं! और गैर सनातनी को-याने बौद्ध ईसाई, मुस्लिम को भी सनातन धर्म के बारे में कुछ कहने का हक नहीं!हम जिस धर्म को मानते हैं,उसी धर्म के अच्छे अच्छे सिद्धांत सूत्रों पर पहले खुद अमल करना सीखे़ं! तदुपरांत अपने अपने धर्म मज़हब की गलत सलत परम्पराओं पर और अंध विश्वासों पर चोट करनी चाहिए!

याद रहे सनातन धर्म सदा से है ! सदा फलता फूल रहा है! आगे और भी परवान चढ़ेगा! जब तक चांद सितारे रहेंगे!सनातन धर्म के वारे न्यारे रहेंगे!
*सनातन* का शाब्दिक अर्थ जानते हुए भी इस तरह का अतार्किक मिथ गढ़ना भयंकर भूल है!

शनिवार, 22 जुलाई 2023

सनातन दुर्भाग्य

 भारत का यह सनातन दुर्भाग्य है कि पं. नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री,इंद्राजी के बाद 2014 तक जो भी सत्ता में रहा,उसकी प्रतिबद्धता भारत के प्रति नही बल्कि अपने परिवार और भ्रस्टाचारी ब्युरोक्रेट्स के सृजन में रही है।उनके स्वार्थों की दहलीज पर घोर पतनशील पूँजीवादी व्यवस्था अभिजात्य वर्ग को खूब रास आती रही है!

2014 के पहले भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में जातिबल,धनबल,बाहुबल और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण चरम पर था। मोदी सरकार के सत्ता में आने से पूर्व भारतीय लोकतंत्र के चारों खंबे अंदर से खोखले हो चुके थे। नेता अफसर सब मिलकर भारतीय सभ्यता,संस्क्रति और भारत राष्ट्र की अस्मिता का उपहास कर रहे थे। मोदी सरकार के आगमन तक यह सिलसिला जारी रहा। किंतु इस में कोई दो राय नही कि मोदी सरकार के अथक प्रयासों से ऊपरी स्तर पर भ्रष्टाचार पर कुछ तो अंकुश अवश्य लगा है। आज दुनिया का कोई देश यह दावा नही कर सकता कि उनका राष्ट्र प्रमुख नरेंद्र मोदी से बेहतर है।
शहीद भगतसिंह ने शहादत से कुछ समय पूर्व कहा था कि
"मानव सभ्यता के इतिहास में सबल मनुष्य द्वारा निर्बल मनुष्यका शोषण होता रहेगा। सबल समाज द्वारा निर्बल समाज का शोषण होता रहेगा और सबल राष्ट्र द्वारा निर्बल राष्ट्र के शोषण का सिलसिला जारी रहेगा।"
जितना उक्त आप्तवाक्य सर्वकालिक है उतना ही यहां भाई-भतीजावाद और भृष्ट तत्वों के अनैतिक संरक्षण का इतिहास भी उतना ही पुराना रहा है।
भ्रस्टाचार का यह दस्तूर आजादी और लोकतंत्र से भी पहले से इस भूभाग पर चला आ रहा है। यह सिलसिला तो तुगलकों, खिुलजियों और सल्तनतकाल जमाने से ही चला आ रहा है ,जो मुगलकाल में परवान चढ़ा!अंग्रेजी राज में वही बुलंदियों पर पहुंचा। किंतु 2014 में मोदीजी के प्रधानमंत्री बनते ही सारी आसुरी शक्तियों पर पाला पड़ गया।
सात समंदर पार से योरोपियन और अंग्रेज साहब पधारे तो उन्होंने भी २०० साल तक भारतीय जन जन को 'क्लर्क' के लायक ही समझा। वह भी तब,जब १८५७ की क्रांति असफल हो गई और राजाओं का विद्रोह असफल हुआ! तब महारानी विक्टोरिया हिन्दुस्तान की मलिका बनी, साम्राज्ञी ने देशी धनिकों और कुछ राजाओं को अपनी शाही नौकरी में छोटे छोटे पदों पर 'सेवाओं' की इजाजत दे दी।
यह बात जुदा है कि अंग्रेज अपने स्वार्थ के लिये साइंस और टेक्नालॉजी लाये ! बाद में अंग्रेजों के संविधान और दुनिया भर की मशहूर सर्वहारा क्रांतियों से प्रेरणा लेकर कुछ वकीलों और बॅरिस्टरों ने देश को आजाद कराने का सपना देखा! दादाभाई,नौरौजी,एनीवैसेंट,भीकाजी कामा,राजा महेंद्रप्रताप, रवींद्रनाथ टैगोर,मोती लाल नेहरू तिलक, गोखले, गांधी, नेहरु, पटैल, आजाद,भगतसिंह जैसे महापुरुषों और शहीदों के बलिदान से भारत आजाद हुआ!
किंतु आजादी के कुछ साल बाद कांग्रेस और उसके नेताओं ने तथा देशके चालाक सभ्रांत वर्ग ने पूंजीवादी भ्रस्ट परम्परा को परवान चढ़ाया।
जो कांग्रेस आज विपक्ष में आकर हरिश्चंद्र बन रही है। उसका अतीत बेदाग नही है !एमपी में 5 साल पहले व्यापम के खिलाफ कांग्रेस ने कोई खास आंदोलन नही किया ! हनी मनी ट्रैप कांड में कमलनाथ ने भ्रस्ट अफसरों और अय्यास मंत्रियों को भी बचा लिया!
इसी कांग्रेस के ६० सालाना दौर में आजादी के बाद वर्षों तक देशी पूंजीपतियों -भूस्वामियों और कांग्रेस के नेताओं के खानदानों को ही शिद्द्त से उपकृत किया जाता रहा है। एमपी और छग में द्वारिकाप्रसाद मिश्रा से लेकर शुक्ल बंधूओं तक ,अर्जुनसिंह से लेकर ,प्रकाश चंद सेठी तक , शिव भानु सोलंकी,सुभाष यादव और जोगी से लेकर दिग्विजयसिंह तक कोई भी उस कठिन 'अग्निपरीक्षा' में सफल होने का दावा नहीं कर सकता। जिसके लिए उन्होंने बार-बार संविधान की कसमें खाईं होंगी कि -''बिना राग द्वेष,भय, पक्षपात के अपने कर्तव्य का निर्वहन करूंगा ......." !
अब मोदी युग में वामपंथी दलों को छोड़ बाकी सारे दागी नेता और भ्रस्ट दल आगामी 2024 के चुनाव के मद्देनजर अलाइंस एकता की धुन बजा रहे हैं!एक जमाना था जब दक्षिण पंथ और वामपंथ का स्पष्ट विभाजन वर्ग संघर्ष की आशा जगाता था। किंतु अब पूंजीवाद स्वयं दो खेमों में विभक्त है! जिस भ्रस्ट परंपरा में कांग्रेस ने 50 साल देश को लूटा अब भाजपा और उसके अनुषंगी संगठन भी उसी 'भृष्टाचारी परम्परा' का शिद्द्त से निर्वाह किये जा रहे हैं । फर्क सिर्फ नरेन्द्र मोदी की देशभक्ति और उनकी राष्ट्रनिष्ठा का है ।
यद्यपि दोनों पूंजीवादी अलायंस लगभग बराबर हैं,किंतु कांग्रेस नीत यूपीए अलायंस में वामपंथ के अलावा बाकी सब दल जेल जाने लायक हैं। जबकि NDA में मोदी जी के अलावा बाकी सब ठन ठन गोपाल हैं!अतीत में शासन प्रशासन की जो परम्परा और 'कुलरीति' कांग्रेस ने बनाई है, अभी उसका खात्मा नही हुआ। मोदी जी भी अभी तक कालाधन वापिस नही ला पाए।
ईडी आई टी से भयभीत पूंजीवादी विपक्ष 2024 में मैदान मार दे तो किसी को आश्चर्य नही? अब सवाल किया जा सकता है कि कांग्रेस और भाजपा के भृष्टाचार में फर्क क्या है ? जो लोग कभी कांग्रेस को 'चोर' कहा करते थे वही लोग इन दिनों भाजपा को 'डाकू' कहने में जरा भी नहीं हिचकते। चोर और डाकु में जो भी फर्क है वही कांग्रेस और भाजपा का चारित्रिक अंतर है।
कुछ लोगों को इन दोनों में एक फर्क 'संघ' की हिंदुत्ववादी सकारात्मक मानसिकता का ही दीखता है। जबकि विपक्ष पर टुकड़े टुकड़े गेंग और आतंकवाद का वरद हस्त है।वैसे कांग्रेस ने पचास साल तक पैसे वालों व जमीन्दारों को ही तवज्जो दी है। किन्तु यूपीए के दौर में वाम के प्रभाव में कुछ गरीब परस्त काम भी किये गए। यदि आज आरटीआई ,मनरेगा और मिड डे मील दुनिया में प्रशंसा पा रहे हैं तो उसका कुछ श्रेय तो अवश्य ही वामपंथ को जाता है । लेकिंन जनता को और मीडीयावालों को कांग्रेस और भाजपा से आगे कुछ भी नजर नही आता !श्रीराम तिवारी
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क्योंकि# सभी धर्म मजहब सम्माननीय हैं

 सुनो भाई सुनो! सभी हिंदू भाई बहिनों सुनो ! पाकिस्तान परस्त आतंकियों और हिंदू विरोधी ताकतें का मकसद किसी से छिपा नही है!वे हिंदूओ़ को काफिर मानते हैं! उनके लिये बचपन से सिखाया जाता है कि जब तक इस धरती पर सारा मानव समाज मुस्लिम नही हो जाता तब तक कयामत भी नही होगी,और जब तक कयामत नही होगी,तब तक कब्र में ही तड़पना होगा !

किंतु सरल सीधी अहिंसक हिदू कौम इन षडयंत्रों से गाफिल है! जबकि मुस्लिम.कौम आक्रामक है ! हिंदुओं को चाहिये कि पहले वह अपने धर्म का पालन करे,अपने धर्म ग्रंथों का आदर करें! उनका अध़्यन मनन.करें ! ब्रह्मसूत्रों को पढ़े और समझे!कभी भूल से भी दीन ए इस्लाम मजहब के खिलाफ न लिखे न बोले! क्योंकि# सभी धर्म मजहब सम्माननीय हैं!
आप किसी भी मुस्लिम या हिंदू के समक्ष एक दूसरे की व्यक्तिगत आलोचना तर्क वितर्क कर सकते हैं,किंतु किसी भी धर्म मजहब का मजाक उड़ाने का अधिकार किसी को नही है! अनावश़यक बाद विवाद से मुसलमानें -हिंदूओं का और भारत राष्ट्र का ही नुकसान होता है!"
सब तर्क कुतर्क समाप्त हो जाते हैं अगर हम आप खुद इस तरह की घटनाओं के भुक्तभोगी हों। आप कितने भी संवेदनशील क्यों न हों इस तरह की पीड़ा का अंदाज नहीं लगा सकते। महसूस करना हो तो बस भुक्तभोगी होना होगा। यही सच है। दूर से तो सब सही ही हैं।
इस पोस्ट के प्रेरणा स्त्रोत हैं :-
महान लेखक विचारक-तारिक फतेह कनाडा.
डॉ रिजवान अहमद मुस्लिम स्कालर और समाजशास्त्री.

"पापा ये लो.. ये वाला ज्यादा मीठा है.

 एक छोटा सा बच्चा अपने दोनों हाथों में एक एक एप्पल लेकर खड़ा था

.
उसके पापा ने मुस्कराते हुए कहा कि
"बेटा एक एप्पल मुझे दे दो"
.
इतना सुनते ही उस बच्चे ने एक एप्पल को दांतो से कुतर लिया.
.
उसके पापा कुछ बोल पाते उसके पहले ही उसने अपने दूसरे एप्पल को भी दांतों से कुतर लिया
अपने छोटे से बेटे की इस हरकत को देखकर बाप ठगा सा रह गया और उसके चेहरे पर मुस्कान गायब हो गई थी...😡😢
.
तभी उसके बेटे ने अपने नन्हे हाथ आगे की ओर बढाते हुए पापा को कहा....
"पापा ये लो.. ये वाला ज्यादा मीठा है.
शायद हम कभी कभी पूरी बात जाने बिना निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं..
.किसी ने क्या खूब लिखा है:
"नजर का आपरेशन
तो सम्भव है,
पर नजरिये का नही..!"
फर्क सिर्फ सोच का
होता है.....
वरना , वही सीढ़ियां ऊपर भी जाती है ,और नीचे भी आती है!

जिंदगी के सब काम सिर्फ-

 जिंदगी के सब काम सिर्फ-

दुआओं के सहारे नहीं चलते।
बैटरी चार्ज न हो तो मोबाईल,
कम्प्यूटर कुछ भी नहीं चलते।।
लिखने के लिए और भी गम हैं,
जमाने भर के ढेरों जिंदगी में!
इसलिए हम कसमें वादे प्यार-
बफा पर ज्यादा नहीं लिखते!!
हर तरफ विरोध की सियासत
से सुर्खुरू हो रहे लोग इन दिनों!
हम इस सिलसिले को दुनिया की,
अवाम के पक्ष में नहीं समझते !!
जाने क्यों इस दौर में नाराज हैं,
धरती,आसमान चाँद और सूरज!
बड़े बेगैरत हैं वे जो अपने कौल,
करार और धुरी पर नही टिकते!!
:-Shriram Tiwari
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You and Anil Chopra

भारत में राष्ट्रीय चेतना का संकट:-

सैकड़ों साल की गुलामी के पदचिह्नों से निजात पाने के लिए और अपने अस्तित्व की रक्षार्थ भारत में हर वर्ग संघर्ष कर रहा है! न केवल जनता बल्कि सरकारों का और राजनैतिक दलों का मिजाज बदल रहा है!भाजपा अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिये निरंतर संघर्षरत है,कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिये संघर्षरत है! वामपंथ किसानों मजूरों के हितसाधन हेतु संघर्षरत है! क्षेत्रीय दल अपने-अपने नेता के माध्यम से निहित स्वार्थों के लिये संघर्षरत हैं!

किंतु भारत रा्ष्ट्र की एकता अखंडता और राष्ट्रीय चेतना के लिये किसी के पास समय नही है!हर किसी को कुछ न कुछ चाहिये, राष्ट्र को कुछ देना कोई नही चाहता! सबका नारा एक है _मांग हमारी पूरी हो।चाहे जो मज़बूरी हो!
भारत में संवैधानिक राष्ट्रवाद की चेतना के बरक्स पहली शर्त है कि देशमें भृष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था हो!, यदि कोई मुख्यमंत्री,पार्टी नेता खुद खनन माफिया आरटीओ, टोल टैक्स नाके से रिश्वत लेता है तो भले ही वो किसी स्वघोषित राष्ट्रवादी दल से ही क्यों न हो,जब तक ऐसे लोगों को पद से हटाया नही जाता तब तक समानता पर आधारित पक्षपातविहींन सुशासनतंत्र हो ही नहीं सकता!
यदि इसे संभव बनाना है तो राष्ट्रवादी जनता मूक दर्शक या केवल वोटर मात्र होकर चुप न रहे!वर्तमान धनतंत्र की जगह,शासन-प्रशासन में जन-भागीदारी का व्यवहारिक लोकतंत्र हो। इसके बिना भारत में धर्मनिर्पेक्ष समाजवादी गणतांत्रिक राष्ट्रवादकी स्थापना संभव नहीं !
'राष्ट्रवादी' चेतना के बगैर न तो पूँजीवादी लोकतंत्र की बुराइयाँ खत्म होगीं,और न ही किसी तरह की आर्थिक-सामाजिक बुराई और असमानता का खात्मा संभव है। मौजूदा दौर के निजाम और उसकी नीतियों से किसी तरह की मानवीय या समाजवादी क्रांति के होने की भी कोई उम्मीद नहीं है।
इतिहास बताता है कि दुनिया के तमाम असभ्य यायावर आक्रमणकारी और लालची मजहबी -बर्बर हत्यारे भारत को लूटने में सफल ही इसलिए हुए, क्योंकि यहाँ यूरोप की तर्ज का 'राष्ट्रवाद' नहीं था,अरबों की तरह मजहबी उन्माद नही था और मध्य एशियाई कबीलाई दरिंदों की तरह भारतीय भूभाग के मूल निवासियों में धनदौलत और युवतियों को अपहरण से बचाने की परंपरा नही थी
उनकी रक्षा के लिए या तो 'भगवान' का भरोसा था या भगवान के प्रतिनिधि के रूप में इस धरती पर राजा -महाराजा जनता के तरणतारण थे ! किसान-मजूर -कारीगर के रूप में जनता की भूमिका केवल 'राज्य की सेवा'करना था। जिन्हे यह कामधाम पसंद नहीं थी वे ''अजगर करे न चाकरी ,पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए सबके दाता राम।। ''गा -गा कर विदेशी आक्रांताओं के जुल्म -सितम को आमंत्रित करते रहे !
राष्ट्रवाद ,समाजवाद,धर्मनिरपेक्षता और क्रांति जैसे शब्दों का महत्व उस देश की जनता उस सामन्ती दौर में कैसे जान सकती थी ?जिस देश की अत्याधुनिक तकनीकी दक्ष ,एंड्रॉयड फोनधारी आधुनिक युवा पीढ़ी 'गूगल सर्च 'का सहारा लेकर भी इन शब्दों की सटीक परिभाषा नहीं लिख पाती। :-श्रीराम तिवारी

सोमवार, 17 जुलाई 2023

धूर्त-बदमास तत्व चैन से नहीं जीने देते।

 भारतीय संविधान, विशाल जन समूह और दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र,सर्वाधिक सस्ता लेबर और अध्यात्म की दुनिया में सर्वाधिक संपन्न राष्ट्र भारतके बारे में आपके मन में क्या है?

अक्सर देखा गया है कि इमारती लकड़ी के लिए जंगल में सबसे पहले सीधे -सुडौल और सुदर्शन पेड़ को ही काटा जाता है। उबड़- खाबड़ -आड़े-टेड़े पेड़ों की तरफ तो लकड़ी काटने वाला नजर उठाकर भी नहीं देखता । भारतीय मानव समाज में भी सीधे -सरल नर-नारियों की कुछ यही दशा है। शराफ़त और कायदे से जीवन यापन करने वाले व्यक्ति को शासन-प्रशासन में बैठे लोग- वर्गीय समाज के धूर्त-बदमास तत्व चैन से नहीं जीने देते।
भारत में विधि और क़ानून पर भरोसा करने वाले को विधि का सम्मान करने वाले को 'चुगद' याने बौड़म समझा जाता है। बदमाश तत्व सबसे पहले इन्हे ही शिकार बनाते हैं। यह अमानवीय -असामाजिक बीमारी सारे 'सभ्य' संसार में व्याप्त है। किंतु भारत इस बीमारी के गर्त में आकंठ डूबा हुआ है। भारतीय निरीह जनता दुनिया में सर्वाधिक आक्रान्त है।यहाँ की लोकशाही का वैसे तो दुनिया में बड़ा नाम है किन्तु अंदरूनी स्थति बहुत भयावह और निष्ठुर है। लाख मोदी जी दावे करें, किंतु क्या मजाल है कि बिना रिश्वत, बिना पौए के किसी का कोई सरकारी काम बन जाए?

स्वर्णिम इतिहास को झुटलाया नही जा सकता

 इतिहास जो भुलाया नहीं जा सकता.....!!

भारत के गिने चुने लोगों को ही बांग्ला देश मुक्ति संग्राम और भारत की स्वर्णिम विजय के बारे में मालूम है! क्योंकि मध्यम वर्गीय आधुनिक युवा पीढ़ी को मोबाइल,कम्प्यूटर से फुरसत नही और बेरोजगारों की तो अपने लिये दो वक्त की रोजी रोटी जुटाने में ही जवानी खप गई,इतिहास क्या खाक पढ़ेंगे! अभी भी जी डी बख्शी जैसे मुखर रणबांकुरे जिंदा हैं,जो 1971 में हुई भारत विजय की यादों को संजोये हुए हैं!
वो साल था 1971 और महीना था नवंबर !
"अगर भारत पाकिस्तान के मामले में उसकी नाक में उंगली करेगा तो अमेरिका अपनी आंख नहीं फेर लेगा, भारत को सबक सिखाया जाएगा ।"
—रिचर्ड निक्सन (तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति)
"भारत अमेरिका को दोस्त मानता है, बॉस नहीं । भारत अपनी किस्मत खुद लिखने में सक्षम है, हम जानते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार प्रत्येक के साथ कैसे व्यवहार करना है?"
—श्रीमती इंदिरा गांधी (तत्कालीन प्रधानमंत्री, भारत)
◾▪भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ठीक यही शब्द व्हाइट हाउस में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के साथ बैठकर, उनकी आंखों से आंख मिलाकर बिना पलक झपकाए व्यक्त किये थे । (इस ब्योरे को अपनी आत्मकथा में अमेरिका के तत्कालीन NSA और सेक्रेटरी ऑफ स्टेट हेनरी किसिंजर ने दर्ज़ किया है)! वह दिन था, जब भारत-US संयुक्त मीडिया संबोधन को रद्द कर इंदिरा गांधी ने अपने ही अनोखे अंदाज में व्हाइट हाउस से चली गईं थी । किसिंजर ने इंदिरा गांधी को उनकी कार में छोड़ते हुए कहा था, "मैडम प्रधानमंत्री, आप को नहीं लगता है कि आप को राष्ट्रपति के साथ थोड़ा और धैर्य के साथ काम लेना चाहिए था ।"
इंदिरा गांधी ने उत्तर दिया, "धन्यवाद, श्रीमान सचिव, आपके बहुमूल्य सुझाव के लिए । एक विकासशील देश होने के नाते, हमारी रीढ़ सीधी है और सभी अत्याचारों से लड़ने के लिए पर्याप्त इच्छाशक्ति और संसाधन भी है । हम साबित करेंगे कि वे दिन लद गए जब हजारों मील दूर बैठी कोई शक्ति किसी भी राष्ट्र पर शासन कर सकती थी और अक्सर उसे नियंत्रित कर सकती है....।"
◾▪जैसे ही उनका एयर इंडिया बोइंग वापसी में दिल्ली के पालम रनवे पर उतरा, इंदिरा गांधी ने विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को तुरंत अपने आवास पर बुलाया । बंद दरवाजों के पीछे एक घंटे की चर्चा के बाद वाजपेयी जल्दी-जल्दी लौटते दिखे । इसके बाद यह ज्ञात हुआ कि वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे ।
BBC के डोनाल्ड पॉल ने वाजपेयी से सवाल पूछा, "इंदिरा जी आपको एक कट्टर आलोचक के रूप में मानती हैं । इसके बावजूद, क्या आप को नहीं लगता कि आप संयुक्त राष्ट्र में बोलते हुए मौजूदा सरकार के रुख़ के पक्ष में होंगे?" वाजपेयी ने प्रतिक्रिया दी, "एक गुलाब एक बगीचे को सजाता है और बगीचे को सजाने का काम लिली भी करती है । सभी इस विचार से घिरे हुए हैं कि वे व्यक्तिगत रूप से सबसे सुंदर हैं । जब उद्यान संकट में पड़ता है, तो सभी को उसकी रक्षा करनी होती है । मैं आज बगीचे को बचाने आया हूंँ । जिसे दुनिया में भारतीय लोकतंत्र कहा जाता है।"
◾▪परिणामी इतिहास हम सभी जानते हैं । अमेरिका ने पाकिस्तान को 270 प्रसिद्ध पैटर्न टैंक भेजे । उन्होंने विश्व मीडिया को यह दिखाने के लिए बुलाया कि ये टैंक विशेष तकनीक के तहत बनाए गए थे और इस प्रकार अविनाशी हैं । इरादा बहुत साफ था । यह बाकी दुनिया के लिए एक चेतावनी संकेत था कि कोई भी भारत की मदद न करे । अमेरिका यहीं नहीं रुका, उसने भारत को तेल की आपूर्ति करने वाली एकमात्र अमेरिकी कंपनी बर्मा-शेल को बंद करने के लिए कहा । उन्हें अमेरिका द्वारा भारत के साथ अब और व्यापार बंद करने के लिए सख्ती से कहा गया था ।
उसके बाद भारत का इतिहास केवल गौरव और सम्मान का इतिहास है! इंदिरा गांधी की तीक्ष्ण कूटनीति ने सुनिश्चित किया कि तत्काल सोवियत संघ से संधि की जाए और न केवल तेल बल्कि हथियार भी सोवियत संघ से ही खरीदे जाएं!
सोवियत संघ ने पूरा साथ दिया संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत के पक्ष में 15 दिनों के अंदर तीन बार वीटो लगाया!
72 घंटे तक चली प्रारंभिक लड़ाई में सोवियत टैंकों की मदद से भारती़य सेना के रणबाँकुरों ने अमेरिका के 270 पैटर्न टैंकों को नष्ट कर दिया ! नष्ट किए गए टैंकों को प्रदर्शन के लिए भारत लाया गया,जो प्रदर्शन के लिये राजस्थान के गर्म रेगिस्तान में आज भी गवाह के रूप में खड़े हैं !
इस युद्ध में न केवल पाकिस्तान खंडित हुआ ,न केवल बांगलादेश बना बल्कि अमेरिका का गौरव भी खंडित हुआ!अठारह दिनों तक चले युद्ध की परिणति, पाकिस्तान से 1 लाख युद्धबंदी बनाये गए ! बांग्ला देश के नायक शेख मुजीबुर रहमान लाहौर जेल से रिहा हुए ।
मार्च का महीना था,इंदिरा गांधी ने भारतीय संसद में बांग्लादेश को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता दी । वाजपेयी ने इंदिरा गांधी को 'देवी दुर्गा' कहकर संबोधित किया....।
इन घटनाओं के नतीजे इस प्रकार है❗
▪भारत की अपनी तेल कंपनी अर्थात इंडियन ऑयल अस्तित्व में आया ।
▪भारत ने दुनिया की नजरों में खुद को ताकतवर राष्ट्र के रूप में सिद्ध किया ।
▪भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) का नेतृत्व किया और इसका नेतृत्व निर्विवाद था ।
~ हालांकि ये सारी घटनाएं लोग भूल गए हैं! किंतु स्वर्णिम इतिहास को झुटलाया नही जा सकता!उसे आगे वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने की जिम्मेदारी उनकी है जो सच्चे वतनपरस्त हैं!

पत्नी के हाथ से बने खाने की तारीफ करो

 एक दिन मल्होत्रा जी निर्मल बाबा के पास गये और बाबा को नमन करते हुए अर्ज किया:- "बाबा कृपा नहीं हो रही है"!

निर्मल बाबा;; कभी अपनी पत्नी के हाथ से बने खाने की तारीफ की है?
मल्होत्रा;;जी नहीं!
बाबा;; अपनी पत्नी के हाथ से बने खाने की तारीफ करो, कृपा हो बरसेगी!
घर आते ही मल्होत्रा जी नें आलू के परांठे की जमकर तारीफ की "आज तो खाने का आनन्द आ गया है 20 साल में पहली बार"!!
पत्नी ने आँखें तरेरकर कहा - "20 साल में तुम्हे खाने का मजा नहीं आया और आज पड़ोसन वासी पराँठे दे गयी तो आनंद आ गया"?? छि:
मल्होत्रा जी सदमें हैं,*जय निर्मल बाबा की*
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