सैकड़ों साल की गुलामी के पदचिह्नों से निजात पाने के लिए और अपने अस्तित्व की रक्षार्थ भारत में हर वर्ग संघर्ष कर रहा है! न केवल जनता बल्कि सरकारों का और राजनैतिक दलों का मिजाज बदल रहा है!भाजपा अपनी सत्ता बरकरार रखने के लिये निरंतर संघर्षरत है,कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिये संघर्षरत है! वामपंथ किसानों मजूरों के हितसाधन हेतु संघर्षरत है! क्षेत्रीय दल अपने-अपने नेता के माध्यम से निहित स्वार्थों के लिये संघर्षरत हैं!
भारत में संवैधानिक राष्ट्रवाद की चेतना के बरक्स पहली शर्त है कि देशमें भृष्टाचार मुक्त शासन व्यवस्था हो!, यदि कोई मुख्यमंत्री,पार्टी नेता खुद खनन माफिया आरटीओ, टोल टैक्स नाके से रिश्वत लेता है तो भले ही वो किसी स्वघोषित राष्ट्रवादी दल से ही क्यों न हो,जब तक ऐसे लोगों को पद से हटाया नही जाता तब तक समानता पर आधारित पक्षपातविहींन सुशासनतंत्र हो ही नहीं सकता!
यदि इसे संभव बनाना है तो राष्ट्रवादी जनता मूक दर्शक या केवल वोटर मात्र होकर चुप न रहे!वर्तमान धनतंत्र की जगह,शासन-प्रशासन में जन-भागीदारी का व्यवहारिक लोकतंत्र हो। इसके बिना भारत में धर्मनिर्पेक्ष समाजवादी गणतांत्रिक राष्ट्रवादकी स्थापना संभव नहीं !
'राष्ट्रवादी' चेतना के बगैर न तो पूँजीवादी लोकतंत्र की बुराइयाँ खत्म होगीं,और न ही किसी तरह की आर्थिक-सामाजिक बुराई और असमानता का खात्मा संभव है। मौजूदा दौर के निजाम और उसकी नीतियों से किसी तरह की मानवीय या समाजवादी क्रांति के होने की भी कोई उम्मीद नहीं है।
इतिहास बताता है कि दुनिया के तमाम असभ्य यायावर आक्रमणकारी और लालची मजहबी -बर्बर हत्यारे भारत को लूटने में सफल ही इसलिए हुए, क्योंकि यहाँ यूरोप की तर्ज का 'राष्ट्रवाद' नहीं था,अरबों की तरह मजहबी उन्माद नही था और मध्य एशियाई कबीलाई दरिंदों की तरह भारतीय भूभाग के मूल निवासियों में धनदौलत और युवतियों को अपहरण से बचाने की परंपरा नही थी
उनकी रक्षा के लिए या तो 'भगवान' का भरोसा था या भगवान के प्रतिनिधि के रूप में इस धरती पर राजा -महाराजा जनता के तरणतारण थे ! किसान-मजूर -कारीगर के रूप में जनता की भूमिका केवल 'राज्य की सेवा'करना था। जिन्हे यह कामधाम पसंद नहीं थी वे ''अजगर करे न चाकरी ,पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए सबके दाता राम।। ''गा -गा कर विदेशी आक्रांताओं के जुल्म -सितम को आमंत्रित करते रहे !
राष्ट्रवाद ,समाजवाद,धर्मनिरपेक्षता और क्रांति जैसे शब्दों का महत्व उस देश की जनता उस सामन्ती दौर में कैसे जान सकती थी ?जिस देश की अत्याधुनिक तकनीकी दक्ष ,एंड्रॉयड फोनधारी आधुनिक युवा पीढ़ी 'गूगल सर्च 'का सहारा लेकर भी इन शब्दों की सटीक परिभाषा नहीं लिख पाती। :-श्रीराम तिवारी
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