भारत का यह सनातन दुर्भाग्य है कि पं. नेहरु, लाल बहादुर शास्त्री,इंद्राजी के बाद 2014 तक जो भी सत्ता में रहा,उसकी प्रतिबद्धता भारत के प्रति नही बल्कि अपने परिवार और भ्रस्टाचारी ब्युरोक्रेट्स के सृजन में रही है।उनके स्वार्थों की दहलीज पर घोर पतनशील पूँजीवादी व्यवस्था अभिजात्य वर्ग को खूब रास आती रही है!
2014 के पहले भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति में जातिबल,धनबल,बाहुबल और अल्पसंख्यक तुष्टिकरण चरम पर था। मोदी सरकार के सत्ता में आने से पूर्व भारतीय लोकतंत्र के चारों खंबे अंदर से खोखले हो चुके थे। नेता अफसर सब मिलकर भारतीय सभ्यता,संस्क्रति और भारत राष्ट्र की अस्मिता का उपहास कर रहे थे। मोदी सरकार के आगमन तक यह सिलसिला जारी रहा। किंतु इस में कोई दो राय नही कि मोदी सरकार के अथक प्रयासों से ऊपरी स्तर पर भ्रष्टाचार पर कुछ तो अंकुश अवश्य लगा है। आज दुनिया का कोई देश यह दावा नही कर सकता कि उनका राष्ट्र प्रमुख नरेंद्र मोदी से बेहतर है।
शहीद भगतसिंह ने शहादत से कुछ समय पूर्व कहा था कि
"मानव सभ्यता के इतिहास में सबल मनुष्य द्वारा निर्बल मनुष्यका शोषण होता रहेगा। सबल समाज द्वारा निर्बल समाज का शोषण होता रहेगा और सबल राष्ट्र द्वारा निर्बल राष्ट्र के शोषण का सिलसिला जारी रहेगा।"
जितना उक्त आप्तवाक्य सर्वकालिक है उतना ही यहां भाई-भतीजावाद और भृष्ट तत्वों के अनैतिक संरक्षण का इतिहास भी उतना ही पुराना रहा है।
भ्रस्टाचार का यह दस्तूर आजादी और लोकतंत्र से भी पहले से इस भूभाग पर चला आ रहा है। यह सिलसिला तो तुगलकों, खिुलजियों और सल्तनतकाल जमाने से ही चला आ रहा है ,जो मुगलकाल में परवान चढ़ा!अंग्रेजी राज में वही बुलंदियों पर पहुंचा। किंतु 2014 में मोदीजी के प्रधानमंत्री बनते ही सारी आसुरी शक्तियों पर पाला पड़ गया।
सात समंदर पार से योरोपियन और अंग्रेज साहब पधारे तो उन्होंने भी २०० साल तक भारतीय जन जन को 'क्लर्क' के लायक ही समझा। वह भी तब,जब १८५७ की क्रांति असफल हो गई और राजाओं का विद्रोह असफल हुआ! तब महारानी विक्टोरिया हिन्दुस्तान की मलिका बनी, साम्राज्ञी ने देशी धनिकों और कुछ राजाओं को अपनी शाही नौकरी में छोटे छोटे पदों पर 'सेवाओं' की इजाजत दे दी।
यह बात जुदा है कि अंग्रेज अपने स्वार्थ के लिये साइंस और टेक्नालॉजी लाये ! बाद में अंग्रेजों के संविधान और दुनिया भर की मशहूर सर्वहारा क्रांतियों से प्रेरणा लेकर कुछ वकीलों और बॅरिस्टरों ने देश को आजाद कराने का सपना देखा! दादाभाई,नौरौजी,एनीवैसेंट,भीकाजी कामा,राजा महेंद्रप्रताप, रवींद्रनाथ टैगोर,मोती लाल नेहरू तिलक, गोखले, गांधी, नेहरु, पटैल, आजाद,भगतसिंह जैसे महापुरुषों और शहीदों के बलिदान से भारत आजाद हुआ!
किंतु आजादी के कुछ साल बाद कांग्रेस और उसके नेताओं ने तथा देशके चालाक सभ्रांत वर्ग ने पूंजीवादी भ्रस्ट परम्परा को परवान चढ़ाया।
जो कांग्रेस आज विपक्ष में आकर हरिश्चंद्र बन रही है। उसका अतीत बेदाग नही है !एमपी में 5 साल पहले व्यापम के खिलाफ कांग्रेस ने कोई खास आंदोलन नही किया ! हनी मनी ट्रैप कांड में कमलनाथ ने भ्रस्ट अफसरों और अय्यास मंत्रियों को भी बचा लिया!
इसी कांग्रेस के ६० सालाना दौर में आजादी के बाद वर्षों तक देशी पूंजीपतियों -भूस्वामियों और कांग्रेस के नेताओं के खानदानों को ही शिद्द्त से उपकृत किया जाता रहा है। एमपी और छग में द्वारिकाप्रसाद मिश्रा से लेकर शुक्ल बंधूओं तक ,अर्जुनसिंह से लेकर ,प्रकाश चंद सेठी तक , शिव भानु सोलंकी,सुभाष यादव और जोगी से लेकर दिग्विजयसिंह तक कोई भी उस कठिन 'अग्निपरीक्षा' में सफल होने का दावा नहीं कर सकता। जिसके लिए उन्होंने बार-बार संविधान की कसमें खाईं होंगी कि -''बिना राग द्वेष,भय, पक्षपात के अपने कर्तव्य का निर्वहन करूंगा ......." !
अब मोदी युग में वामपंथी दलों को छोड़ बाकी सारे दागी नेता और भ्रस्ट दल आगामी 2024 के चुनाव के मद्देनजर अलाइंस एकता की धुन बजा रहे हैं!एक जमाना था जब दक्षिण पंथ और वामपंथ का स्पष्ट विभाजन वर्ग संघर्ष की आशा जगाता था। किंतु अब पूंजीवाद स्वयं दो खेमों में विभक्त है! जिस भ्रस्ट परंपरा में कांग्रेस ने 50 साल देश को लूटा अब भाजपा और उसके अनुषंगी संगठन भी उसी 'भृष्टाचारी परम्परा' का शिद्द्त से निर्वाह किये जा रहे हैं । फर्क सिर्फ नरेन्द्र मोदी की देशभक्ति और उनकी राष्ट्रनिष्ठा का है ।
यद्यपि दोनों पूंजीवादी अलायंस लगभग बराबर हैं,किंतु कांग्रेस नीत यूपीए अलायंस में वामपंथ के अलावा बाकी सब दल जेल जाने लायक हैं। जबकि NDA में मोदी जी के अलावा बाकी सब ठन ठन गोपाल हैं!अतीत में शासन प्रशासन की जो परम्परा और 'कुलरीति' कांग्रेस ने बनाई है, अभी उसका खात्मा नही हुआ। मोदी जी भी अभी तक कालाधन वापिस नही ला पाए।
ईडी आई टी से भयभीत पूंजीवादी विपक्ष 2024 में मैदान मार दे तो किसी को आश्चर्य नही? अब सवाल किया जा सकता है कि कांग्रेस और भाजपा के भृष्टाचार में फर्क क्या है ? जो लोग कभी कांग्रेस को 'चोर' कहा करते थे वही लोग इन दिनों भाजपा को 'डाकू' कहने में जरा भी नहीं हिचकते। चोर और डाकु में जो भी फर्क है वही कांग्रेस और भाजपा का चारित्रिक अंतर है।
कुछ लोगों को इन दोनों में एक फर्क 'संघ' की हिंदुत्ववादी सकारात्मक मानसिकता का ही दीखता है। जबकि विपक्ष पर टुकड़े टुकड़े गेंग और आतंकवाद का वरद हस्त है।वैसे कांग्रेस ने पचास साल तक पैसे वालों व जमीन्दारों को ही तवज्जो दी है। किन्तु यूपीए के दौर में वाम के प्रभाव में कुछ गरीब परस्त काम भी किये गए। यदि आज आरटीआई ,मनरेगा और मिड डे मील दुनिया में प्रशंसा पा रहे हैं तो उसका कुछ श्रेय तो अवश्य ही वामपंथ को जाता है । लेकिंन जनता को और मीडीयावालों को कांग्रेस और भाजपा से आगे कुछ भी नजर नही आता !श्रीराम तिवारी
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