मजहब धर्म के वेश में ,पनप रहे ठग -भृष्ट।
महिमा बढ़ी पाखंड की , बढ़ा रही जग कष्ट।।
बढ़ा रही जग कष्ट , खिलाफत की चिंगारी।
कहने को जेहाद , तेल पर कब्जे की तैयारी।।
हुआ जगत बदनाम ,सोच आतंकी करतब।
हैं जी के जंजाल , धरम पंथ और मजहब।।
=====++++===========+++=======
मजहब -धर्म का ही करें ,आतंकी उपभोग ।
सत्ता की जूँठन चरें , बाजारू ठग लोग।।
जाति कुटिल विमर्श में , जो जन गए भटकाय ।
जुमला राष्ट्र विकास का , उनको कहाँ सुहाय।।
जो पशुचारा खा चुके ,महा भृष्ट अवतार।
उन्ही की हांडी काठ की ,चढ़ती बारम्बार।।
श्रीराम तिवारी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें