बुधवार, 30 सितंबर 2015

हैं जी के जंजाल , सभी धर्म पंथ व मजहब !




   मजहब धर्म के वेश में ,पनप रहे ठग -भृष्ट।

   महिमा  बढ़ी पाखंड की , बढ़ा  रही जग कष्ट।।

   बढ़ा रही  जग कष्ट , खिलाफत की चिंगारी।

   कहने को  जेहाद , तेल पर कब्जे की तैयारी।।

   हुआ जगत बदनाम ,सोच  आतंकी करतब।

   हैं जी के  जंजाल , धरम  पंथ और मजहब।।

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    मजहब -धर्म   का  ही करें ,आतंकी उपभोग ।

    सत्ता की जूँठन चरें , बाजारू ठग  लोग।।

    जाति कुटिल  विमर्श में  , जो जन गए भटकाय ।

    जुमला  राष्ट्र विकास का  , उनको कहाँ सुहाय।।

     जो  पशुचारा खा चुके ,महा भृष्ट अवतार।

     उन्ही की हांडी काठ की ,चढ़ती बारम्बार।।        


 श्रीराम तिवारी

            

                                                             

             

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