शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

समसामयिक दोहे -श्रीराम तिवारी




   भारतीय गणतंत्र  को , राज्य यक्ष्मा रोग।

   राजनीति में घुस  गए ,घटिया शातिर लोग।। 


  जाति वर्ण मजहब धरम , आँच गहन गंभीर।

  जो इनको ठंडा  करे  ,सच्चा  संत  कबीर।।


 जाति  ही  'स्टार' है, कहते लालू भाय।

अब बिल्ली हज को चली ,नौ सौ चूहे खाय।। 


बढ़ते व्यय के बजट की , नयी आर्थिक नीति ।

ऋण पर ऋण  लेते रहो ,यह  विनाश  की रीति   ।।


आदमखोर पूँजी हुयी ,आवारा बदनाम।

चोर -मुनाफाखोर  की ,मदद करें हुक्काम।।


लोक लुभावन घोषणा ,जुमले लालीपाप।

अमर शहीद भी  स्वर्ग में  ,  करते श्चाताप।।


आनन-फानन हो रहे ,राष्ट्र रत्न नीलाम।

शोर  बहुत 'बाजार' में  ,भौंचक्की आवाम।।


लोकतंत्र की पीठ पर ,लदा  माफिया राज।

कोई काम होता नहीं ,बिना  कमीशन आज।।


मल्टीनेशनल संग कर रहे ,नेताजी अनुबध।

कुटिल निवेशकों के लिए ,तोड़ दिए तट बंध।।


पूँजी मिले विदेश से ,किसी तरह ततकाल।

भले किसान  बर्बाद हों ,खेती हो बदहाल।।


नयी आर्थिक नीति अब ,करती नया सवाल।

मुद्रा के बाजार में ,रुपया क्यों  बदहाल।।  

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