शोक सभाओं में खुशी के गीत गाये जा रहे हैं वो।
ताज्जुब है फिर भी महफ़िल में छाये जा रहे हैं वो।।
तकाजे क्या हैं दुनिया के ,मुरादें क्या हैं लोगों की ?
सबसे बेखबर अपनी ही धुन बजाये जा रहे हैं वो।।
न जाने किस सफर पर चल पड़ा है कारवां उनका ,
जिधर भी जाते हैं महज शख्सियत दिखला रहे हैं वो।
बड़े मासूम हैं उनके मुरीद हैं बेखबर हैं दुनिया से ,
जिन्हें भरम है कि हमारी गुथ्थियाँ सुलझा रहे हैं वो।।
जरा सी ही तमन्ना है कि तवारीख में जिक्र हो मेरा ,
हर महफ़िल में निंदा रस दरिया बहाये जा रहे हैं वो।
हवाओं का रुख देख पंछी भी बदल लेते हैं ठिकाना ,
मानव इतिहास के खंडहरों में ही चहचहा रहे हैं वो।।
श्रीराम तिवारी
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