बुधवार, 2 सितंबर 2015



कामरेड ! बादल को लाल सलाम !

आपने मेरा सद्द लिखित आलेख "अंसारी साहब आपने राधाकृष्णन और अब्दुल कलाम से कुछ नहीं सीखा ' पढ़ा !  कमेन्ट्स  के लिए शुक्रिया ! आपने मेरे आलेख की तुलना  पाञ्चजन्य  की वैचारिकी से करते हुए जो उपहास किया है वह भी मैं समझता हूँ !लगता है आपने सिर्फ शीर्षक पढ़कर ही यह सस्ती टिप्पणी की है , अन्यथा आप जैसा सर्वगुणसम्पन्न ,सर्वश्रेष्ठ क्रांतिकारी ऐंसी ओछी टिप्पणी  कर ही नहीं  सकता  !

          कामरेड - पाञ्चजन्य तो मैंने कभी देखा भी नहीं ,पढ़ने का तो सवाल ही नहीं। लेकिन  सुना है कि  आरएसएस वालों का कोई पाक्षिक या वीकली जैसा कुछ कूड़ा -कबाड़ा है।  हम तो वही पढ़ते हैं जो आप  जैसे क्रांतिकारी साथी  लिखते हैं।  प्रस्तुत आलेख की  भाषा ,सारवस्तु या रिपोर्टिंग में 'पाञ्चजन्य ' से यदि कुछ साम्य  है भी तो  सवाल यह  उठ सकता है कि  इस साम्य की नौबत क्यों आयी ? क्या  सच कहने का अधिकार केवल 'पाञ्चजन्य' का ही है ? क्या मैंने  बाकई  अपने आलेख में ऐंसा कुछ लिखा है जो झूंठ ,फरेब या जघन्य   है ? क्या इसमें ऐसा कुछ है जो  किसी किस्म की प्रतिगामी सोच को प्रतिबिम्बित  करता है ? मेरे आलेख का एक वाक्य भी यदि असत्य है या कि  वैज्ञानिक समाजवाद की तार्किकता के प्रतिकूल है ?  तो वेशक मैं उस गलती को दुरुस्त करूंगा।  हालाँकि यह आलेख 'पार्टी लाइन ' की अपेक्षानुसार नहीं लिखा गया  है ! हर समय  ,हर विषय पर पार्टी लाइन से ही लिखा जाए  यह तो बहुत अच्छी बात है ,किन्तु यह सदा सम्भव  भी नहीं है। न केवल इस विमर्श में अपितु मेरे अन्य  आलेखों में भी  मैंने  वर्तमान दौर की जमीनी सच्चाइयों के आधार पर ही लिखा है।मैं  केवल तथ्यों के आधार पर  ही  लिखने की कोशिश करता हूँ।  यह भी  प्रयास रहता  है कि जो हमारे  'हमसोच ' नहीं हैं उन तक भी पार्टी की  बात  पहुंचे। इसके लिए जरूरी है कि  कथ्य में केवल विचारधारा ही नहीं  बल्कि  सचाई भी हो !  ऐंसे लोग भारतीय समाज में बहतेरे हैं जो वामपंथी या कम्युनिस्ट नहीं हैं ,और वे लोग   बेईमान एवं अंध - सम्प्रदायिक भी नहीं हैं। ऐंसे भी बहुत  से होंगे  जो आरएसएस से संबध्द नहीं हैं और बिना   पाञ्चजन्य   पढ़े ही वही सोचते हैं जो आरएसएस वाले  ही सोच सकते हैं।  तो  क्या आप उनके सीने पर भी सम्प्रदायिकता का तमगा ठोक  दोगे ? इसमें वेचारे आम -हिन्दू का दोष क्या है ? क्या २ और २ चार कहने का अधिकृत पेटेंट सिर्फ आरएसएस के पास ही है ?  हम यह क्यों  मान  लें कि  भारतीय संस्कृति,इतिहास और  सभ्यता के तमाम विमर्श केवल 'संघनिष्ठ ' ही हो सकते  हैं ? क्या  सच बयान करना या बहुसंख्यक वर्ग की भावनाओं की फ़िक्र करना  हमारा कर्तव्य नहीं है ?  क्या केवल आरएसएस  ही बहुसंख्यक कौम का ठेकेदार है ? क्या बहुसंख्यक समाज की अनदेखी करने वाले  की आरती उतारी जाएगी  ?  क्या बाकई  इस देश  में  कभी  सिखों,कभी ईसाइयों ,कभी जैनों और कभी  मुसलमानों के साथ ही अन्याय हो  रहा है ?  हम तो  यह मानते हैं कि बाकई  इस व्यवस्था में सभी वर्ग के कमजोरों पर  बहुत अत्याचार हो रहे हैं !  हमें  यह भी  सिखाया  गया है कि हम एक धर्मनिरपेक्ष और वर्गविहीन -शोषणविहीन समाजवादी समाज  को स्थापित करना चाहते हैं।

किन्तु जब   कोई वर्तमान शोषक शासक वर्ग का  एक खास पुर्जा -जब  एक कौम विशेष  का खैरख्वाह बनता हो ,तो क्या उसका आपके द्वारा समर्थन करना  क्रांतिकारी  आचरण  है ?  क्या वह  बाल ठाकरे और महेन्द्रसिंह टिकेत  जैसा ही व्यक्ति नहीं है ? दरअसल  हामिद  अंसारी और  आरएसएस वाले दोनों ही एक जैसे हैं। मैंने विगत  १५ महीने में सैकड़ों आलेख मोदी  सरकार और आरएसएस के खिलाफ लिखे हैं ,वे  सभी मेरे ब्लॉग   www.janwadi.BlogSpot .com  पर अभी भी  यथावत हैं। जबकि हम सभी ने  हामिद  अंसारी जैसे लोगों की कथनी-करनी को हमेशा नजर अंदाज  ही किया है।  आप अच्छी तरह जानते हैं कि न केवल अल्पसंख्यक वर्ग के लिए  बल्कि   सभी जाति ,मजहब व धर्म -पंथ के कमजोर लोग भी  उस  सदाशयता की जद  में आना चाहिए जो  - जनाब  अंसारी साहिब ने  केवल मुस्लिम  अल्पसंख्यक  वर्ग के लिए  जाहिर की है !क्या यह मगरमच्छ के आंसू बहाने  जैसा आचरण  नहीं है ?   उनकी  मजहबी -दिखावटी हरकत को उजागर किया जाना वैसे ही गलत होगा जैसे की हिन्दुत्वादी कतारों के  ढपोरशंखियों की अवहेलना  अवहेलना करना। इसी  अवधारणा  पर  आधारित  मैंने वह आलेख लिखा  है ,जो आपको 'पाञ्चजन्य' की शैली में परिलक्षित हुआ  है।

 कांग्रेस ने अपने स्वार्थ के लिए जिन सज्जन  को उपराष्ट्रपति बनाया वो मोदी सरकार की  विनाशकारी दिग्भर्मित -आर्थिक नीतियों पर  तो कभी  कुछ नहीं बोलते ,क्योंकि  वे 'संविधानिक' पद पर बैठे हैं। किन्तु बात जब अपने  मुस्लिम अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को सहलाने की  आती है तो  जनाब अंसारी साहब संविधान की ऐंसी की तैसी करने में ज़रा भी नहीं चूकते। वैसे भी  मेरा तो मोदी सरकार  पर  भी  आरोप है कि उन्होंने भी अब  तक  केवल  बहुसंख्यक  हिन्दुओं को   मूर्ख  ही बनाया है।  उनके वोट हथियाने  के लिए  चुनावों में जो भगवा  या   हिन्दुत्ववादी एजेंडा  प्रस्तुत किया गया था ,उसके लिए  मोदी सरकार ने  विगत १५ माह में ऐंसा  क्या किया जो  उनके 'हिन्दुत्ववादी एजेंडे ' को पूरा करता हो !  बहुसंख्यक  हिन्दू समाज  को यह  जताने के लिए  कि  केवल उनकी भावनाओं की कीमत पर राज्यसत्ता हासिल की जाती  रहेगी। हम  आरएसएस  को ,मोदी सरकार  को बेनकाब करते हुए  हिन्दू बहुसंख्यक वर्ग  की भगवा मानसिकता को तो  दर्जनों बार कोस चुके  हैं। किन्तु  जनाब हामिद  अंसारी  के सोच के  बारे में पहली बार ही कुछ लिखा है। फिर भी  यदि मेरे आलेख में कोई एक वाक्य या कोई एक शब्द भी ऐंसा हो जो  क्रांतिकारी सिद्धांतों और आदर्शों के खिलाफ हो ,तो उसे दुरुस्त  करने  हेतु  मेरा मार्ग दर्शन करें !

                             क्रांतिकारी अभिवादन सहित ,


                                 आपका साथी -श्रीराम तिवारी
                                                                         

       

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