आदरनीय नरेंद्र भाई मोदी जी नमस्कार !
आप ने चाय बेचते-बेचते हिंदी सीखी ! प्रधान मंत्री बनकर हिन्दी की ताकत का लोहा माना ! आप देश-विदेश में हिंदी में ही भाषण देकर उसका मान बढ़ाते रहते हैं ,इसके लिए धन्यवाद ! कल आप ने 'दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन ' के उद्घाटन सत्र में 'हिंदी जगत' से सवाल किया है कि ' मुझे यदि हिंदी नहीं आती तो मेरा क्या होता ? इसका उत्तर आपको अब तक शायद ही किसी ने दिया हो ! क्योंकि किसी अन्तर्राष्टीय सम्मेलन के प्रमुख अतिथि द्वारा उसी मंच से उनके सवाल के जबाब का प्रावधान नहीं रखा जाता। लेकिन देश का आम आदमी -खास तौर से हिंदी का ककहरा जानने वाला जरूर आपके सवाल का जबाब देना चाहेगा। उसका जबाब यह हो सकता है कि- यदि आपको हिंदी नहीं आती तो आप अभी भी नकली लाल किले से ही भाषण दे रहे होते !
चूँकि आपने चाय बेचते-बेचते हिंदी सीख ली है ,इसलिए आप असली लाल किले से डेढ़ घण्टे तक नीरस -उबाऊ और निरर्थक भाषण पेलने के पात्र हो गए हैं। बयोबृद्धों और छोटे-छोटे बच्चों को कभी रायसीना हिल , कभी लालकिले की प्राचीर के समक्ष -घंटों भूंखे -प्यासे रहकर आपके ये अगम्भीर भाषण झेलना पड़ रहे हैं । दुनिया भर के राष्ट्र अध्यक्षों को और भारत की जनता को भी गाहे -बगाहे ,बार-बार कानफोड़ू 'भाइयो-बहिनो' का तकिया कलाम मय 'लोकलुभावन जुमलों' के सुनना नहीं पड़ता है । शिवराज भैया -जो कभी खुद प्रधान मंत्री के दावेदार हुआ करते थे ,वे अब आप के साथ-साथ अन्य संघियों को भी बार - बार तिलक लगाये जा रहे हैं। आपके हिंदी ज्ञान की ही महिमा है कि अब आपके स्वागत -सत्कार के लिए इतना तामझाम जुटाना पड़ रहा है।
इतना ही नहीं आपके हिंदी ज्ञान से 'बाजार की ताकतों' का खूब भला हो रहा है ! प्याज वाले ,तुवर दाल वाले ही नहीं बल्कि हवाला ,घोटाला,व्यापम,डीमेट और जमाखोर भी आप के हिंदी ज्ञान के समक्ष कृतकृत्य हैं। यदि आपका हिंदी प्रेम और भाषा ज्ञान देश के सूखा पीड़ित किसानों , वेरोजगार युवाओं तथा 'सर्वहारा' वर्ग के किसी काम का नहीं तो इसमें आपका क्या कसूर ? यह तो हिंदी भाषी बहुसंख्यक जनता की गलती है कि कभी महा भृष्ट कांग्रेस और कभी आप जैसे महा हिंदी प्रेमी भाजपाइयों को सत्ता सौंप दिया करती है !
मोदी जी आपको -आपकी मातृभाषा गुजराती का ज्ञान भी कम नहीं है! किन्तु वह ज्ञान आनंदी पटेल को भी है ! वह ज्ञान पटेल-पाटीदारों को भी है। और वह ज्ञान हार्दिक पटेल जैसे लौंढो को भी है! ये सभी लोग अलग-अलग और एक साथ मिलकर आपके 'हिंदी ज्ञान' को चुनौती दे रहे हैं ! उधर यूपी बिहार में भी गाय-भेंस चराने वाले -लालू-माझी पासवान मुलायम जो भोजपुरी या अवधि के अलावा आप के जैसी 'उजबक' हिन्दी जानते है वे सब भी आपके हिंदी ज्ञान को चुनौती दे रहे हैं। आपकी बड़ी-बड़ी चुनावी आम सभाओं को सुनकर और उधर लालू-नीतीश और माझी जैसों की हिंदी सुनकर ही तो पूरा बिहार 'कन्फ्युजया' गया है। आपके तोगड़िया जी , गिरिराजसिंह , आदित्यनाथ ,राजनैतिक साध्वियां और आपके सभी बजरंगी भाई 'गजब' की हिंदी बोल रहे हैं। मोदी जी ! आपने सही फ़रमाया कि ' कोई दो गुजराती भाषी व्यक्ति आपस में झगड़ा नहीं कर सकते ' [अर्थात गुजराती इतनी सभ्य और सुसंस्कृत भाषा है -बधाई ! ] किन्तु उन्हें जब आपस में झगड़ना होता है तो वे हिंदी में झगड़ लेते हैं ! अर्थात हिंदी भाषा की यह सर्वश्रेष्ठ विशेषता है कि वह झगड़ा करने वालों को ' शब्द ,अर्थ ,बाणी और जोश प्रदान करती है। वाह ! मोदी जी वाह ! अब यह हिंदी के विद्वानों की जिम्मेदारी है ,भोपाल में सम्पन्न हो रहे 'विश्व हिंदी सम्मेलन ' की जिम्मेदारी है, कि मोदी जी के इस भाषाई मेटाफर को समझें ! मैं तो ताल ठोककर कहूँगा कि यह महज मोदी जी द्वारा उद्घोषित सटायर या व्यंग्योक्ति नहीं अपितु हिंदी भाषा ,हिंदी साहित्य और हिंदी जाति को ठोस नसीहत दी गयी है ! जब हम कहते हैं कि 'हिंदी तो सिर्फ बाजार के काम की भाषा है ,वह तो इल्म-फिल्म वालों के धंधे की भाषा है ,हिंदी तो राजनीति में चुनाव जीतने की भाषा है ,वह तो प्रधानमंत्री बनवाने की भाषा है ! तो मोदी जी आप ने क्या गलत कहा ? क्या बाकई आज सम्पूर्ण 'हिंदी जाति ' केवल कुकरहाव और सिर्फ झगड़ा करने के काम की नहीं रह गयी ?
श्रीराम तिवारी
आप ने चाय बेचते-बेचते हिंदी सीखी ! प्रधान मंत्री बनकर हिन्दी की ताकत का लोहा माना ! आप देश-विदेश में हिंदी में ही भाषण देकर उसका मान बढ़ाते रहते हैं ,इसके लिए धन्यवाद ! कल आप ने 'दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन ' के उद्घाटन सत्र में 'हिंदी जगत' से सवाल किया है कि ' मुझे यदि हिंदी नहीं आती तो मेरा क्या होता ? इसका उत्तर आपको अब तक शायद ही किसी ने दिया हो ! क्योंकि किसी अन्तर्राष्टीय सम्मेलन के प्रमुख अतिथि द्वारा उसी मंच से उनके सवाल के जबाब का प्रावधान नहीं रखा जाता। लेकिन देश का आम आदमी -खास तौर से हिंदी का ककहरा जानने वाला जरूर आपके सवाल का जबाब देना चाहेगा। उसका जबाब यह हो सकता है कि- यदि आपको हिंदी नहीं आती तो आप अभी भी नकली लाल किले से ही भाषण दे रहे होते !
चूँकि आपने चाय बेचते-बेचते हिंदी सीख ली है ,इसलिए आप असली लाल किले से डेढ़ घण्टे तक नीरस -उबाऊ और निरर्थक भाषण पेलने के पात्र हो गए हैं। बयोबृद्धों और छोटे-छोटे बच्चों को कभी रायसीना हिल , कभी लालकिले की प्राचीर के समक्ष -घंटों भूंखे -प्यासे रहकर आपके ये अगम्भीर भाषण झेलना पड़ रहे हैं । दुनिया भर के राष्ट्र अध्यक्षों को और भारत की जनता को भी गाहे -बगाहे ,बार-बार कानफोड़ू 'भाइयो-बहिनो' का तकिया कलाम मय 'लोकलुभावन जुमलों' के सुनना नहीं पड़ता है । शिवराज भैया -जो कभी खुद प्रधान मंत्री के दावेदार हुआ करते थे ,वे अब आप के साथ-साथ अन्य संघियों को भी बार - बार तिलक लगाये जा रहे हैं। आपके हिंदी ज्ञान की ही महिमा है कि अब आपके स्वागत -सत्कार के लिए इतना तामझाम जुटाना पड़ रहा है।
इतना ही नहीं आपके हिंदी ज्ञान से 'बाजार की ताकतों' का खूब भला हो रहा है ! प्याज वाले ,तुवर दाल वाले ही नहीं बल्कि हवाला ,घोटाला,व्यापम,डीमेट और जमाखोर भी आप के हिंदी ज्ञान के समक्ष कृतकृत्य हैं। यदि आपका हिंदी प्रेम और भाषा ज्ञान देश के सूखा पीड़ित किसानों , वेरोजगार युवाओं तथा 'सर्वहारा' वर्ग के किसी काम का नहीं तो इसमें आपका क्या कसूर ? यह तो हिंदी भाषी बहुसंख्यक जनता की गलती है कि कभी महा भृष्ट कांग्रेस और कभी आप जैसे महा हिंदी प्रेमी भाजपाइयों को सत्ता सौंप दिया करती है !
मोदी जी आपको -आपकी मातृभाषा गुजराती का ज्ञान भी कम नहीं है! किन्तु वह ज्ञान आनंदी पटेल को भी है ! वह ज्ञान पटेल-पाटीदारों को भी है। और वह ज्ञान हार्दिक पटेल जैसे लौंढो को भी है! ये सभी लोग अलग-अलग और एक साथ मिलकर आपके 'हिंदी ज्ञान' को चुनौती दे रहे हैं ! उधर यूपी बिहार में भी गाय-भेंस चराने वाले -लालू-माझी पासवान मुलायम जो भोजपुरी या अवधि के अलावा आप के जैसी 'उजबक' हिन्दी जानते है वे सब भी आपके हिंदी ज्ञान को चुनौती दे रहे हैं। आपकी बड़ी-बड़ी चुनावी आम सभाओं को सुनकर और उधर लालू-नीतीश और माझी जैसों की हिंदी सुनकर ही तो पूरा बिहार 'कन्फ्युजया' गया है। आपके तोगड़िया जी , गिरिराजसिंह , आदित्यनाथ ,राजनैतिक साध्वियां और आपके सभी बजरंगी भाई 'गजब' की हिंदी बोल रहे हैं। मोदी जी ! आपने सही फ़रमाया कि ' कोई दो गुजराती भाषी व्यक्ति आपस में झगड़ा नहीं कर सकते ' [अर्थात गुजराती इतनी सभ्य और सुसंस्कृत भाषा है -बधाई ! ] किन्तु उन्हें जब आपस में झगड़ना होता है तो वे हिंदी में झगड़ लेते हैं ! अर्थात हिंदी भाषा की यह सर्वश्रेष्ठ विशेषता है कि वह झगड़ा करने वालों को ' शब्द ,अर्थ ,बाणी और जोश प्रदान करती है। वाह ! मोदी जी वाह ! अब यह हिंदी के विद्वानों की जिम्मेदारी है ,भोपाल में सम्पन्न हो रहे 'विश्व हिंदी सम्मेलन ' की जिम्मेदारी है, कि मोदी जी के इस भाषाई मेटाफर को समझें ! मैं तो ताल ठोककर कहूँगा कि यह महज मोदी जी द्वारा उद्घोषित सटायर या व्यंग्योक्ति नहीं अपितु हिंदी भाषा ,हिंदी साहित्य और हिंदी जाति को ठोस नसीहत दी गयी है ! जब हम कहते हैं कि 'हिंदी तो सिर्फ बाजार के काम की भाषा है ,वह तो इल्म-फिल्म वालों के धंधे की भाषा है ,हिंदी तो राजनीति में चुनाव जीतने की भाषा है ,वह तो प्रधानमंत्री बनवाने की भाषा है ! तो मोदी जी आप ने क्या गलत कहा ? क्या बाकई आज सम्पूर्ण 'हिंदी जाति ' केवल कुकरहाव और सिर्फ झगड़ा करने के काम की नहीं रह गयी ?
श्रीराम तिवारी
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