आज पश्चिमी चम्पारण [बिहार] के ऐतिहासिक मैदान के मंच से राहुल गांधी ने आम सभा को सम्बोधित करते हुए जबरदस्त भाषण दिया। राहुल ने बड़ी चतुराई से अपने बिहारी 'महागठबंधन' के डोमिनेंट लीडर्स - नीतीश और लालू को इस मंच पर नहीं आने दिया। बदनाम लालू के साथ राहुल मंच साझा नहीं करते यह तो स्वाभाविक था, किन्तु नीतीश का बायकाट राहुल ने किया या नीतीश ने राहुल का बायकॉट किया यह कुछ समझ में नहीं आया। क्या यह राहुल का और कांग्रेस का 'सभ्रांत 'व्यवहार है ,जो पिछड़ों के साथ एक मंच साझा करने से छुइ-मुई हो जाएगा? क्या बिहार की जनता को 'महागठबंधन' के इन प्याजी छिलकों में कोई रूचि हो सकती है ?क्या यह 'नौ कनवजिया तेरह चूल्हे' वाला दकियानूसीपन नहीं है ?
वेशक आम सभा में राहुल का भाषण काबिले तारीफ़ रहा। उनके भाषण में महात्मा गांधी का अपरिग्रह चमक रहा था। उनके भाषण में नरेंद्र मोदी की चाय से लेकर दस लखिया शूट की भी धुलाई होती रही। राहुल गांधी ने मोदी जी और गांधी जी की तुलना करके नरेंद्र मोदी को ' परिग्रही और प्रमादी' भी सावित कर दिया । राहुल के भाषण में स्वाधीनता संग्राम का ओज भी था। वे किसानों,मजदूरों और युवाओं का बार-बार उल्लेख कर रहे थे। लगा कि यदि वे ईमानदारी से इसी लाइन को आगे बढ़ाते रहे तो न केवल उनका बल्कि कांग्रेस का भविष्य भी उज्जवल है। चूँकि कांग्रेस के भविष्य से भारत का भविष्य भी जुड़ा है ,इसलिए राहुल की इस वैचारिक क्रांति - उन्नति की भूरि-भूरि प्रशंशा जानी चाहिए।
किन्तु सवाल फिर वही दुहराया जा रहा है कि राहुल का ये क्रांतिकारी भाषण असली है या महज चुनावी लफ्फाजी ? क्योंकि राहुल को ये भी याद नहीं कि मोदी जी नया कुछ नहीं कर रहे वे तो राहुल की मम्मी द्वारा देश पर थोपे गए एक बुर्जुवा अफसरशाह -डॉ मनमोहनसिंह की बदनाम आर्थिक नीतियों को ही झाड़-पोंछकर फिर से भारत की छाती पर मढ़ रहे हैं। इन नीतियों के खिलाफ तो शायद राहुल आज भी नहीं हैं। और शक की गुंजाइश तब पैदा होती है जब यूपीए-वन [२००४ से २००९ तक]और यूपीए-टू [२००९ से २०१४] तक राहुल गांधी ने इस तरह के न तो कोई बयान दिए। और न ही उन्होंने कभी मजदूर-किसान का कहीं जिक्र किया। अब राहुल जो कुछ भी कह रहे हैं वो सब सच है ,किन्तु जब कांग्रेस का बिहार में उठावना चल रहा हो ,तब मंगल गीत गाना कहाँ तक उचित है ?
क्या यह सच नहीं कि भारत के ८० % युवा अब 'गांधी-गांधी' नहीं बल्कि 'मोदी-मोदी' के नारे लगा रहे हैं। काश कि राहुल ने यूपीए के १० सालाना दौर में ये सब कहा होता जो वे अब संसद से लकेर चंपारण तक कहे जा रहे हैं। अब तो सिर्फ यही कहा जा सकता है की " का वर्षा जब कृषि सुखानी " या "अब पछताए होत क्या ,चिड़िया चुग गयी खेत " राहुल जी को उनके अच्छे भाषण के लिए बधाई ! किन्तु अभी तो दिन 'नसीब वालों 'के हैं ,अभी राहुल या कांग्रेस का बक्त नहीं है ! 'आप' या केजरीवाल रुपी काठ की हांडी दिल्ली में बाइचांस एक बार अवश्य चढ़ गयी किन्तु आइन्दा 'रहिमन हांडी काठ की ,चढ़े अं दूजी बार !राहुल गांधी जब तक अपनी वैकल्पिक नीतियों का खुलासा नहीं करते तब तक पूरे भारत में कांग्रेस की दुर्दशा ही होनी है। मोदी जी की व्यक्तिगत आलोचना के बजाय उनकी आर्थिक नीतियों और देश में व्याप्त भृष्टाचार पर राहुल गांधी क्यों नहीं बोलते ? कहीं ऐंसा तो नहीं कि राहुल को अपनी ही पार्टी के भृष्टाचार और 'कुनीतियों' का दर्पण दिखने लग जाए ?
श्रीराम तिवारी
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