काश ये कहावत सच होती कि 'खुदा गंजों को नाखून नहीं देता' . काश ये सच होता कि 'नंगों के नौ गृह बलवान होते हैं' . काश ये भी सच होता कि 'समय ,सत्ता और समझ खुशकिस्मत को ही मिला करती है ' . काश 'संघ ' प्रमुख श्री मोहनराव भागवत का यह आप्त वाक्य भी केवल सियासी जुमला होता कि ' देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी तो अभिमन्यु' हैं। काश कि यह महज एक राजनैतिक बाध्यता से प्रेरित वयान होता ! चूँकि मोदी जी की पीठ पर अम्बानियों -अडानियों का हाथ है। इसके साथ- साथ मोदी जी के सिर पर 'संघ' का मजबूत हाथ है। चूँकि कार्पोरेट सेक्टर ने तो मोदी जी को अपना वैश्विक ब्रांड एम्बेसेडर बना डाला है। चूँकि संघ के मन में मोदी की हैसियत अभिमन्यु से ज्यादा नहीं है इसलिए देश की आवाम को समझना होगा कि स्थिति कितनी भयावह और डरावनी हो चुकी है। वेशक महाभारत में 'अभिमन्यु' एक लाजबाब वीरता और साहस का प्रतीक है। पाण्डवों को युद्ध में विजय के लिए न केवल अभिमन्यु ,न केवल बब्रुवाहन ,न केवल घटोतकच्छ बल्कि और भी लाखों बलिदान दरपेश हुए थे। क्या नरेंद्र भाई मोदी को अभिमन्यु बनाकर 'संघ ' किसी महाविजय के लिए कृतसंकल्पित हो रहा है। तब संघ के अर्जुन ,भीम कौन हैं ? राजसूय यज्ञ काअसली 'होत्र' और भारत सम्राट युधिष्ठर कौन हैं ? निसंदेह श्रीकृष्ण तो भागवत जी हैं। लेकिन उनकी इस घोर नैराश्य पूर्ण उद्घोष्णा से कि मोदी जी तो किसी चक्रव्यूह का चारा मात्र हैं ,जो कि संकटापन्न सप्त महारथियों द्वारा घेरे जा चुके हैं। भागवत जी के इस निरूपण से वेशक उन लोगों को ठेस पहुंची होगी जो मोदी जी को ही अंर्जुन मान बैठे थे। वे लोग क्या मूर्ख हैं जो मोदी जी को ही अर्जुन समझ बैठे हैं ?
श्रीराम तिवारी
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