संसद के शीतकालीन सत्र के प्रथम कार्य दिवस को ही इस सत्र के दाह संस्कार का श्रीगणेश हो चूका है। विभिन्न सदस्यों के मार्फ़त लोक सभा में स्पीकर के सम्मुख और राज्य सभा में सभापति महोदय के समक्ष लोक महत्व के या समग्र राष्ट्र नीति निर्माण विषयक मुद्दों एवं प्रस्तावों पर होने वाली ततसम्बन्धी बहस-चर्चा के मार्फ़त पारित होने की संभावनाओं को तृणमूल कांग्रेस ने पलीता लगा दिया है। कभी काली छतरी कभी काला शाल -दुशाला ओढ़कर ये गैरजिम्मेदार तृणमूली सांसद और अन्य पूँजीवादी दल न केवल संसद को शर्मशार कर रहे हैं अपितु देश की जनता के सामने नौटंकी कर भी रहे हैं। बसपा ,जदयू ,कांग्रेस और सपा के सांसदों ने और मुलायमसिंह जैसे वरिष्ठों ने भी संसद के पहले दिन ही दिखा दिया कि ये सब चुके हुए कारतूस ही हैं । ये थके -हारे नेता अब देश के समक्ष अपनी राजनैतिक असफलता और मायूसी छिपाने के लिए ऐंसी हास्यापद हरकतें कर रहे हैं। वास्तव में ये गैरजिम्मेदार विपक्षी सांसद सत्ता पक्ष याने 'मोदी सरकार' पर वार नहीं कर रहे हैं। बल्कि अपने-अपने पापों को छिपाने के लिए तथा जनता और मीडिया का ध्यान प्रतिस्थापिन के लिए यह सब बंदर कूँदनी की जा रही है।
ममता बेनर्जी के लुच्चों -लफंगों और बलात्कारियों ने पश्चिम बंगाल का तो कीमा ही बना डाला है। तृणमूल के सांसद विधायक खुले आम गैंग रेप और हत्या की न केवल धमकियाँ दे रहे हैं,बल्कि अधिकांस हत्या -बलात्कार और डकैती में ही लिप्त पाये जा रहे हैं। शारदा चिट फंड षड्यंत्र में तृणमूलियों का गले-गले तक फँसे होना और वर्धवान बम बिस्फोट जैसी देशद्रोही आतंकी घटनाओं में उनकी शिरकत से पूरा देश वाकिफ है। किन्तु केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। केवल जांच का झुनझुना बजाने से ही तृणमूली आगबबूला हो रहे हैं। बंगाल में अब तक तो केवल मार्क्सवादियों का ही कत्लेआम हो रहा था किन्तु अब कुछ भाजपा के लोग भी तृणमूल के गुंडों का शिकार हो रहे हैं। अभी तक तो मोदी जी और संघ परिवार ने वामपंथ को खत्म करने के उद्देश्य से ही ममता के खूब भाव बढाए हैं । उसके चरणों में खूब लोट लगाईं है। किन्तु ममता ने पश्चिम बंगाल में अल्पसंख्यक कार्ड खेलकर हिन्दुत्ववादियों को चुन-चुनकर मारना शुरू कर दिया है। बर्धवान जैसी घटनाएँ ममता के इशारों पर ही हो रहीं हैं। ममता ने मोदी जी को न तो चुनाव में घास डाली है और न ही अब संसद चलने दे रही है। उसने तो इसके विपरीत जाकर बर्धवान काण्ड में केंद्र सरकार को ही कसूरवार ठहरा दिया है। अब तक भाजपा और केंद्र सरकार ने ममता के आरोपों का खंडन भी नहीं किया है। शायद ममता की बात में बाकई दम हो , तभी तो बंगाल में भाजपाइयों और संघियों की पिटाई के वावजूद केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। उलटे तूणमूली ही संसद में कोहराम मचाने की जुर्रत कर रहे हैं !
वेशक यह सब ममता का पाखंडपूर्ण प्रदर्शन है। देश का और खास तौर से पश्चिम बंगाल की जनता का ध्यान अपनी काली करतूतों से हटाने के लिए ममता बेनर्जी संसद में नौटंकी करवा रही है। ममता की ही तरह मुलायम सिंह के सुपुत्र अखिलेश के राज में पूरा यूपी धधक रहा है। विकाश या सुशासन तो बहुत दूर की बात है उत्तरप्रदेश अब ऊधम प्रदेश हो चूका है। अब तो मुलायम परिवार भी टूट की कगार पर है। मुलायम की छोटी बहूरानी तो सपा की गुंडई को खुले आम स्वीकार कर चुकी है। वह मोदी वंदना में लीन हो रही है। क़ानून व्यवस्था नाम की कोई चीज यूपी में तो नहीं है। साम्प्रदायिक उन्माद बढ़ रहा है। वेशक इसका आरोप कभी हिन्दुत्ववादियों पर कभी अल्पसंख्यकों पर मंड दिया जाता है किन्तु असल में यह राज्य प्रशासन की जिम्मेदारी है कि वह क़ानून का राज्य कायम रखे। अखिलेश पूरी तरह नाकम सावित हुए हैं। मुलायम भी यही महसूस कर रहे हैं। यूपी के गन्ना किसानों को भूँखों मरने की नौबत आ चुकी है। उधर अफसरों का , पुलिस का ,दवंगों का और डाकुओं का- यूपी में एक सा रवैया है। वहाँ दलितों पर जुल्म बढे हैं , महिलाओं और बच्चों की स्थति घोर चिंताजनक है। परिवारवाद चरम पर है। जातिवाद सर चढ़कर बोल रहा है। मुलायम के जन्मदिन के लिए रामपुर में या अखिलेश के जन्म दिन के लिए सैफई में जश्न मनाने के बाद अब यूपी में मुलायम परिवार के लिए एमवाय के सिवा कुछ शेष नहीं बचा है । चूँकि यूपी में लोक सभा चुनाव में सपा का पाटिया उलाल हो चूका है और आइन्दा विधान सभा चुनाव में भी सपा का सूपड़ा साफ़ होने जा रहा है। इसीलिये वमुश्किल चुने गए ४-५ सपा सांसद ,अब संसद में मुलायम के नेतत्व में ममतामय हो रहे हैं। वे यूपी से ध्यान हटाने के लिए तृणमूल की हुड़दंग में भी शामिल हो रहे हैं।
इस अवसर पर कांग्रेस ने जो किया वो उसकी बदहाली का सबब हो सकता है,शायद उसे सत्ता में रहने की आदत के कारण विपक्ष की भूमिका का सलीका ही नहीं सूझ रहा है । जदयू और शिवसेना का आचरण भी बेहद फूहड़ और अनैतिक परिलक्षित हो रहा है। शिवसेना का आचरण कुछ वैसा ही है जैसे कि कोई गुस्सेल सास अपनी बहु की बेरुखी से उसे विधवा होने का श्राप दे डाले। क्रोध की पराकष्ठा में उसे ये भी याद नहीं रहता कि बहु से दुश्मनी निभाने के आवेश में वह खुद के बेटे को ही मरने का श्राप दे रही है। शिवसेना की भूमिका इन दिनों देशभक्तिपूर्ण या हिन्दुत्ववादी नहीं बल्कि ब्लेकमेलिंग की है। संसद में वह ममता के सुर में सुर मिलाकर मोदी सरकार की इज्जत को तार-तार कर रही है। इसी तरह जदयू के सांसदों ने बिहार में अपनी डूबती नैया को बचाने के लिए तृणमूल के साथ संसद में कदमताल मिलाया है। उनकी अपनी ही मांझी सरकार केवल ठलुओं का जमावड़ा बनकर रह गई है। मांझी समेत कई मंत्री तो इस लायक भी नहीं हैं कि उन्हें किसी प्राइवेट कम्पनी में चौकीदार का भी काम मिल सके। किन्तु फिर भी ये सभी मिलकर देश की संसद को हाइजेक कर रहे हैं। केवल लेफ्ट याने वामपंथ की भूमिका ही सार्थक और देशभक्तिपूर्ण है। अपनी शानदार वैकल्पिक नीतियों और बेहतरीन कार्यक्रमों के साथ लेफ्ट ने जनता को देश भर में लामबंद करने का अभियान चलाया है। धर्मनिरपेक्षता ,समाजवाद और जनकल्याण कारी लोकतंत्र स्थापित करने के दूरगामी लक्ष्य के साथ ही वर्तमान मोदी सरकार की पूँजीवाद परस्त नीतियों के खिलाफ, हर किस्म की साम्प्रदायिकता के खिलाफ ,न केवल संसद में बल्कि देश की आवाम के बीच विशाल जान आंदोलन के लिए वामपंथ दृढ़प्रतिज्ञ है। भाजपा या मोदी सरकार से नीतिगत विरोध होने और वैचारिक मत भिन्नता होने के वावजूद लेफ्ट ने संसद को कभी भी बाधित नहीं किया। अनावश्यक कोहराम मचाना या बहिर्गमन का नाटक करना पूर्व में भाजपा की आदत रही है अब कांग्रेस तृणमूल तथा सपा इत्यादि भी उसी राह पर चल रहे हैं। देश के करोड़ों मेहनतकशों मजूरों ,किसानों और कर्मचारियों को ही नहीं बल्कि अब तो पढ़े लिखे युवाओं की भी वामपंथ की नीतियों और कार्यक्रमों में दिलचस्पी बढ़ रही है।
श्रीराम तिवारी
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