संचार क्रांति का विमर्श :-
[१] यह युग उत्तर -आधुनिक , तकनीकी उत्कर्ष ।
'फेक -वर्चुअल' पर टिका , जग व्यवहार विमर्श ।।
[२] गूगल ट्विटर फेसबुक , इंटरनेट संचार।
सर्च इंजन में छुपा है , आभासी संसार।।
[३] गजब क्रांति संचार की ,कम्प्यूटर उथ्थान ।
मोबाईल सिम बन गई , व्यक्ति की पहचान ।।
[४] नेता मंत्री संतरी , जाने गुणा न भाग ।
आतंकी तक सीख गए ,डिजिटल एनालॉग।।
[ ५ ] पुलिस तंत्र को भेदकर, सक्रिय हैं हैकर्ष।
हाई टेक अपराध भी , होने लगे सहर्ष।।
[६ ] खास हुआ कागज कलम , ब्रॉड बेंड अब आम।
लेपटॉप पर लिख रहे , दोहे कवि 'श्रीराम'।
कालेधन का विमर्श :-
[ १ ] यूपीए के दौर में , भृष्ट भये धनवान।
अर्थनीति मनमोहनी ,आत्मघात सामान ।।
[ २ ] रेल-तेल -कोयला -खनिज ,कॉमनवेल्थ के गेम।
कांग्रेस को खा गए, टू जी थ्री जी स्कैम।।
[३ ] खूब तरक्की कर चुके , नेता और दलाल ।
अर्थतंत्र को लील गए ,काले धन के लाल ।।
[ ४ ] हो हल्ला अण्णा किया , रामदेव तकरीर ।
सुब्रमण्यम स्वामी की भी , चली नहीं तदवीर ।।
[ ५ ] प्रशांत भूषण याचिका , रंग लाई कुछ लाल।
न्याय पालिका से डरे , काले धनिक दलाल ।।
[६] रातोंरात खाली हुए , स्विस बैंक अकाउंट।
धेला मिला ने देश को , ब्लैक मनी अमाउंट। ।
[७ ] अर्थनीति दौर की घृत ले पियो उधार ।
चार्वाक दर्शन बना , फिर से नव आचार ।।
[८ ] उसी तर्ज चलने लगी , नव मोदी सरकार।
पूँजी के विनिवेश की , इनको भी दरकार।।
[ ९] बी जेपी को मिल गया ,धनी -मनी का साथ।
मोदी जी की पीठ पर ,अम्बानी का हाथ।।
[ १० ] अमेरिकी जिस नीति ने , किया मुल्क हलकान।
अरुण जेटली कर रहे , उसका ही गुणगान ।।
[ ११] हानि होती देश की , लाभ कमाएँ कमीन ।
एडम स्मिथ कीन्स का , है सिद्धांत नवीन ।।
[ १२] नयी आर्थिक नीति की ,महिमा बड़ी अजीब।
दस-बीस धनवान भये, कोटिक हुए गरीब।।
[१३ ] नव्य उदारीकरण है , निजीकरण की जान।
पब्लिक प्रायवेट पार्टनर ,पी पी पी पहचान।।
[१४ ] होटल हो या खेत हो, फैक्टरी - खलिहान।
मुफ़लिस बच्चों का कहाँ , होता है कल्याण।।
[१५ ] देश बनें उनके लिए , जिनकी बखत विशेष।
निर्धन का होता नहीं , कोई अपना देश।।
श्रीराम तिवारी
लोकतंत्र का विमर्श :-
[१ ] प्रजातंत्र की कृपा से , भृष्ट हुए बलवान।
अब तो शोषक भी करें , इसका ही गुणगान।।
[२ ] कैसे कहें मजबूत हैं , लोकतंत्र की नीव ।
अल्पमती शासन करे, बहुमत है निर्जीव ।।
[३ ] कौम -जाति के चौधरी , ठस नौटंकीबाज ।
राजनीति के मंच से , गरजत हैं लफ़्फ़ाज़।।
[४ ] शोषण - उत्पीड़न -जुलुम , सिस्टम भृष्ट कमजोर।
व्हिसिल व्लोवर मीडिया , चौकस है चहुँ ओर ।।
[ ५ ] सीमाओं पर दिख रहे , घातक दुष्परिणाम ।
रंचमात्र रुकते नहीं , कालेधन के काम।।
[६ ] भृष्टाचारी तंत्र ने , पैदा किया जूनून।
रिश्वत को पर लग गये ,विफल दंड क़ानून ।।
[७ ] नयी आर्थिक नीति की ,महिमा बड़ी अजीब।
दस-बीस धनवान भये, बेबस वतन गरीब।।
[८ ] नव्य उदार वैश्वीकरण , निजीकरण बलवान।
पब्लिक प्रायवेट पार्टनर ,पी पी पी पहचान।।
[९ ] होटल हो या खेत हो, फैक्टरी - खलिहान।
मुफ़लिस बच्चों का कहीं ,हुआ नहीं कल्याण।।
[१० ] देश बनें उनके लिए , जिनकी बखत विशेष।
निर्धन का होता कहाँ , कोई अपना देश ।।
[११ ] हानि होती देश की , लाभ कमाएँ कमीन ।
एडम स्मिथ -कीन्स के , ये सिद्धांत नवीन ।।
मोदी उद्भव का विमर्श :-
खूब चली मोदी लहर , रहा संघ सिरमौर।
राजनीति में थम चुका ,गठबंधन का दौर।।
भूतपूर्व पीएम थे , इजरायल के एक।
शिमोन पेरेज जी ,कह गए सच्ची एक।।
निंदा या तारीफ नहीं ,झूंठ न समझे कोय।
मोदी में उनको दिखे ,नेहरू गांधी दोय।।
जो बगिया मनमोहिनी , वैश्विक पूंजीवाद ।
मोदी जी भी दे रहे ,उसी को पानी खाद।।
बीजेपी को मिल गया ,धनी -मनी का साथ।
मोदी जी की पीठ पर ,अम्बानी का हाथ।।
लिए गजब की लालसा , नए उत्साहीलाल।
पूँजी मिले विदेश से , किसी तरह फिलहाल ।।
कोटि जतन मिन्नत करी , अमित -समिट मनुहार।
रेड- टेप ढीले-किये , खोले सकल बाजार ।।
आनन फानन कर दिया ,एमएनसी को काल ।
डॉलर लेकर आये न , फिर भी गोरेलाल।।
बढ़ते व्यय के बजट की ,अविचारित यह नीति।
ऋण लेकर घी पी चलो , चार्वाक की रीत ।।
निजी क्षेत्र के कर कमल, राष्ट्र रत्न नीलाम।
ओने-पौने बिक गए , बीमा टेलीकॉम।।
जब तक रहे विपक्ष में ,रहा स्वदेशी याद।
आज विदेशी का वही , करते जिंदाबाद।।
श्रीराम तिवारी
टी वी दर्शकों का विमर्श :-
भारत के दर्शक सभी ,हो जाते उद्दाम।
विराट जब छक्का जड़े ,मुक्का मेरीकॉम।। \
यदि क्रिकेट के खेल में , होय पाक की हार।
भारत में बिन तिथि के , मन जाता -त्यौहार।।
सास बहु के सीरियल , कुटिल कषाय कुलीन ।
ज्ञानी-ध्यानी हो रहे ,निज स्वारथ में लीन ।।
टीवी पर देता रहा ,स्वर्ग प्राप्ति की टिप्स।
व्यभिचारी वो आजकल ,हुआ जेल में फिक्स ।।
श्रीराम तिवारी
सीमाओं पर झगड़े के दोहे :-
[ १ ] ताकत बढ़ गई चीन की ,दुनिया में बेजोड़।
भारत भी करने लगा ,कुछ-कुछ उससे होड़।।
[ २ ] अतिक्रमण सीमाओं पर ,हुआ हजारों बार।
अब तक कुछ न निकल सका ,बातचीत का सार।।
[३ ] पश्चिम की सीमाओं पर , नाहक ठनी है रार।
दहशतगर्दी बन चुके ,पाकिस्तान का भार।।
[ ४ ] काश्मीर में मच रही ,फ़ोकट की तकरार।
फौजी पाकिस्तान के , छिपकर करते बार।।
[५ ] बेकारी से तंग हो ,युवा बिकें वे भाव
दहशतगर्दी बन गई ,मानवता का घाव।।
[ ६ ] धरती अम्बर सिन्धु सब ,भारत के अनुकूल।
किन्तु दुश्मन दे रहे।, भारत को त्रयशूल।।
[७ ] भारत के इस दौर का ,यही असल इतिहास।
झगड़ों की जड़ छोड़ गए ,कुछ अंग्रेज भी खास।।
[8 ] जनता इस महाद्वीप की , सहज एक परिवार।
सम्प्रदाय -जातीयता ,कर रही बंटाढार।।
श्रीराम तिवारी
आरक्षण के दोहे ;-
आरक्षण अवलम्ब बिना ,बाबा भीम महान।।
संपादित वे कर गए ,भारत का संविधान ।।
आजीवन भुगती कठिन ,जाति -वर्ण की पीर।
बिन आरक्षण क़ानून के , हुआ दवंग कबीर।।
आरक्षण की वैशाखियाँ , नहीं वतन के जोग ।
भारत जन को बन गयी ,यह संक्रामक रोग ।।
मल्टीनेशनल दे रहे , योग्य सवर्ण को जॉब।
निर्धन का होता नहीं , कहीं भी पूरा ख़्वाब।।
जात-पाँति के नाम पर, नेता बने अमीर ।
नाचे-कूंदे बंदरिया , खाएँ मदारी खीर।।
अण्ड -गण्ड जिनको नहीं , अफसर बने प्रचण्ड ।
आरक्षण की कृपा से , कौवे कागभुशुण्ड ।।
सबल सवर्ण दलित दोउ , हृदयहीन खुदगर्ज।
निर्बलजन पर थोपते , बेकारी का मर्ज।।
रिश्वतखोर - मक्कार -ठग , ये हैं नीच निदान ।
ऊँची जात वो ही असल , मेहनतकश इंसान ।।
सकल जाति सब धरम के ,होते मनुज समान।
शोषक नीची जाति है ,उच्च मजूर किसान।।
[१] यह युग उत्तर -आधुनिक , तकनीकी उत्कर्ष ।
'फेक -वर्चुअल' पर टिका , जग व्यवहार विमर्श ।।
[२] गूगल ट्विटर फेसबुक , इंटरनेट संचार।
सर्च इंजन में छुपा है , आभासी संसार।।
[३] गजब क्रांति संचार की ,कम्प्यूटर उथ्थान ।
मोबाईल सिम बन गई , व्यक्ति की पहचान ।।
[४] नेता मंत्री संतरी , जाने गुणा न भाग ।
आतंकी तक सीख गए ,डिजिटल एनालॉग।।
[ ५ ] पुलिस तंत्र को भेदकर, सक्रिय हैं हैकर्ष।
हाई टेक अपराध भी , होने लगे सहर्ष।।
[६ ] खास हुआ कागज कलम , ब्रॉड बेंड अब आम।
लेपटॉप पर लिख रहे , दोहे कवि 'श्रीराम'।
कालेधन का विमर्श :-
[ १ ] यूपीए के दौर में , भृष्ट भये धनवान।
अर्थनीति मनमोहनी ,आत्मघात सामान ।।
[ २ ] रेल-तेल -कोयला -खनिज ,कॉमनवेल्थ के गेम।
कांग्रेस को खा गए, टू जी थ्री जी स्कैम।।
[३ ] खूब तरक्की कर चुके , नेता और दलाल ।
अर्थतंत्र को लील गए ,काले धन के लाल ।।
[ ४ ] हो हल्ला अण्णा किया , रामदेव तकरीर ।
सुब्रमण्यम स्वामी की भी , चली नहीं तदवीर ।।
[ ५ ] प्रशांत भूषण याचिका , रंग लाई कुछ लाल।
न्याय पालिका से डरे , काले धनिक दलाल ।।
[६] रातोंरात खाली हुए , स्विस बैंक अकाउंट।
धेला मिला ने देश को , ब्लैक मनी अमाउंट। ।
[७ ] अर्थनीति दौर की घृत ले पियो उधार ।
चार्वाक दर्शन बना , फिर से नव आचार ।।
[८ ] उसी तर्ज चलने लगी , नव मोदी सरकार।
पूँजी के विनिवेश की , इनको भी दरकार।।
[ ९] बी जेपी को मिल गया ,धनी -मनी का साथ।
मोदी जी की पीठ पर ,अम्बानी का हाथ।।
[ १० ] अमेरिकी जिस नीति ने , किया मुल्क हलकान।
अरुण जेटली कर रहे , उसका ही गुणगान ।।
[ ११] हानि होती देश की , लाभ कमाएँ कमीन ।
एडम स्मिथ कीन्स का , है सिद्धांत नवीन ।।
[ १२] नयी आर्थिक नीति की ,महिमा बड़ी अजीब।
दस-बीस धनवान भये, कोटिक हुए गरीब।।
[१३ ] नव्य उदारीकरण है , निजीकरण की जान।
पब्लिक प्रायवेट पार्टनर ,पी पी पी पहचान।।
[१४ ] होटल हो या खेत हो, फैक्टरी - खलिहान।
मुफ़लिस बच्चों का कहाँ , होता है कल्याण।।
[१५ ] देश बनें उनके लिए , जिनकी बखत विशेष।
निर्धन का होता नहीं , कोई अपना देश।।
श्रीराम तिवारी
लोकतंत्र का विमर्श :-
[१ ] प्रजातंत्र की कृपा से , भृष्ट हुए बलवान।
अब तो शोषक भी करें , इसका ही गुणगान।।
[२ ] कैसे कहें मजबूत हैं , लोकतंत्र की नीव ।
अल्पमती शासन करे, बहुमत है निर्जीव ।।
[३ ] कौम -जाति के चौधरी , ठस नौटंकीबाज ।
राजनीति के मंच से , गरजत हैं लफ़्फ़ाज़।।
[४ ] शोषण - उत्पीड़न -जुलुम , सिस्टम भृष्ट कमजोर।
व्हिसिल व्लोवर मीडिया , चौकस है चहुँ ओर ।।
[ ५ ] सीमाओं पर दिख रहे , घातक दुष्परिणाम ।
रंचमात्र रुकते नहीं , कालेधन के काम।।
[६ ] भृष्टाचारी तंत्र ने , पैदा किया जूनून।
रिश्वत को पर लग गये ,विफल दंड क़ानून ।।
[७ ] नयी आर्थिक नीति की ,महिमा बड़ी अजीब।
दस-बीस धनवान भये, बेबस वतन गरीब।।
[८ ] नव्य उदार वैश्वीकरण , निजीकरण बलवान।
पब्लिक प्रायवेट पार्टनर ,पी पी पी पहचान।।
[९ ] होटल हो या खेत हो, फैक्टरी - खलिहान।
मुफ़लिस बच्चों का कहीं ,हुआ नहीं कल्याण।।
[१० ] देश बनें उनके लिए , जिनकी बखत विशेष।
निर्धन का होता कहाँ , कोई अपना देश ।।
[११ ] हानि होती देश की , लाभ कमाएँ कमीन ।
एडम स्मिथ -कीन्स के , ये सिद्धांत नवीन ।।
मोदी उद्भव का विमर्श :-
खूब चली मोदी लहर , रहा संघ सिरमौर।
राजनीति में थम चुका ,गठबंधन का दौर।।
भूतपूर्व पीएम थे , इजरायल के एक।
शिमोन पेरेज जी ,कह गए सच्ची एक।।
निंदा या तारीफ नहीं ,झूंठ न समझे कोय।
मोदी में उनको दिखे ,नेहरू गांधी दोय।।
जो बगिया मनमोहिनी , वैश्विक पूंजीवाद ।
मोदी जी भी दे रहे ,उसी को पानी खाद।।
बीजेपी को मिल गया ,धनी -मनी का साथ।
मोदी जी की पीठ पर ,अम्बानी का हाथ।।
लिए गजब की लालसा , नए उत्साहीलाल।
पूँजी मिले विदेश से , किसी तरह फिलहाल ।।
कोटि जतन मिन्नत करी , अमित -समिट मनुहार।
रेड- टेप ढीले-किये , खोले सकल बाजार ।।
आनन फानन कर दिया ,एमएनसी को काल ।
डॉलर लेकर आये न , फिर भी गोरेलाल।।
बढ़ते व्यय के बजट की ,अविचारित यह नीति।
ऋण लेकर घी पी चलो , चार्वाक की रीत ।।
निजी क्षेत्र के कर कमल, राष्ट्र रत्न नीलाम।
ओने-पौने बिक गए , बीमा टेलीकॉम।।
जब तक रहे विपक्ष में ,रहा स्वदेशी याद।
आज विदेशी का वही , करते जिंदाबाद।।
श्रीराम तिवारी
टी वी दर्शकों का विमर्श :-
भारत के दर्शक सभी ,हो जाते उद्दाम।
विराट जब छक्का जड़े ,मुक्का मेरीकॉम।। \
यदि क्रिकेट के खेल में , होय पाक की हार।
भारत में बिन तिथि के , मन जाता -त्यौहार।।
सास बहु के सीरियल , कुटिल कषाय कुलीन ।
ज्ञानी-ध्यानी हो रहे ,निज स्वारथ में लीन ।।
टीवी पर देता रहा ,स्वर्ग प्राप्ति की टिप्स।
व्यभिचारी वो आजकल ,हुआ जेल में फिक्स ।।
श्रीराम तिवारी
सीमाओं पर झगड़े के दोहे :-
[ १ ] ताकत बढ़ गई चीन की ,दुनिया में बेजोड़।
भारत भी करने लगा ,कुछ-कुछ उससे होड़।।
[ २ ] अतिक्रमण सीमाओं पर ,हुआ हजारों बार।
अब तक कुछ न निकल सका ,बातचीत का सार।।
[३ ] पश्चिम की सीमाओं पर , नाहक ठनी है रार।
दहशतगर्दी बन चुके ,पाकिस्तान का भार।।
[ ४ ] काश्मीर में मच रही ,फ़ोकट की तकरार।
फौजी पाकिस्तान के , छिपकर करते बार।।
[५ ] बेकारी से तंग हो ,युवा बिकें वे भाव
दहशतगर्दी बन गई ,मानवता का घाव।।
[ ६ ] धरती अम्बर सिन्धु सब ,भारत के अनुकूल।
किन्तु दुश्मन दे रहे।, भारत को त्रयशूल।।
[७ ] भारत के इस दौर का ,यही असल इतिहास।
झगड़ों की जड़ छोड़ गए ,कुछ अंग्रेज भी खास।।
[8 ] जनता इस महाद्वीप की , सहज एक परिवार।
सम्प्रदाय -जातीयता ,कर रही बंटाढार।।
श्रीराम तिवारी
आरक्षण के दोहे ;-
आरक्षण अवलम्ब बिना ,बाबा भीम महान।।
संपादित वे कर गए ,भारत का संविधान ।।
आजीवन भुगती कठिन ,जाति -वर्ण की पीर।
बिन आरक्षण क़ानून के , हुआ दवंग कबीर।।
आरक्षण की वैशाखियाँ , नहीं वतन के जोग ।
भारत जन को बन गयी ,यह संक्रामक रोग ।।
मल्टीनेशनल दे रहे , योग्य सवर्ण को जॉब।
निर्धन का होता नहीं , कहीं भी पूरा ख़्वाब।।
जात-पाँति के नाम पर, नेता बने अमीर ।
नाचे-कूंदे बंदरिया , खाएँ मदारी खीर।।
अण्ड -गण्ड जिनको नहीं , अफसर बने प्रचण्ड ।
आरक्षण की कृपा से , कौवे कागभुशुण्ड ।।
सबल सवर्ण दलित दोउ , हृदयहीन खुदगर्ज।
निर्बलजन पर थोपते , बेकारी का मर्ज।।
रिश्वतखोर - मक्कार -ठग , ये हैं नीच निदान ।
ऊँची जात वो ही असल , मेहनतकश इंसान ।।
सकल जाति सब धरम के ,होते मनुज समान।
शोषक नीची जाति है ,उच्च मजूर किसान।।
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