मंगलवार, 25 नवंबर 2014

मगरमच्छ बेखौफ हैं , शासक जिनके यार !



   हंसी ठिठोली मसखरी , सदा न   होती नीक।

   मरघट  बीच ठहाका ,   लगता  नहीं है  ठीक।। ]


   क्या भविष्य है देश का , कोई जाने नाहिं  ।

   मंत्री अपने भविष्य  का ,हाथ दिखाने जाहिं   ।।


    मचा रहे हल्ला वही  , कालेधन का खूब।

    जिनकी  विश्वसनीयता ,  तेजी से  रही  डूब।।


     सब लाकर  खाली हुए ,खूब बटी  खैरात।

    कालाधन  स्विस बैंक से ,गायब रातों रात।।


   सत्तासीन नेताओं ने , किये गजब उत्पात ।

   चोर मचाये शोर  जब  , क्यों न होगा घात ।।


    छोटी -छोटी मछलियाँ ,होती रहीं  शिकार।

    मगरमच्छ बेखौफ हैं , शासक जिनके  यार।।


                श्रीराम तिवारी


 

  

  

  

     ,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें