हंसी ठिठोली मसखरी , सदा न होती नीक।
मरघट बीच ठहाका , लगता नहीं है ठीक।। ]
क्या भविष्य है देश का , कोई जाने नाहिं ।
मंत्री अपने भविष्य का ,हाथ दिखाने जाहिं ।।
मचा रहे हल्ला वही , कालेधन का खूब।
जिनकी विश्वसनीयता , तेजी से रही डूब।।
सब लाकर खाली हुए ,खूब बटी खैरात।
कालाधन स्विस बैंक से ,गायब रातों रात।।
सत्तासीन नेताओं ने , किये गजब उत्पात ।
चोर मचाये शोर जब , क्यों न होगा घात ।।
छोटी -छोटी मछलियाँ ,होती रहीं शिकार।
मगरमच्छ बेखौफ हैं , शासक जिनके यार।।
श्रीराम तिवारी
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