बुरा बक्त किसी का बतलाकर नहीं आता।
किया गया कुछ भी किसी का बेकार नहीं जाता।।
दूध के फट जाने पर दुखी हो जाते हैं नादान ,
शायद उन्हें रसगुल्ला बनाना नहीं आता।
खुदा क्यों देता है उसको खुदाई इतनी ,
जिसको अपने सिवा कुछ भी नजर नहीं आता।।
माना कि बहारों का असर है फिजाओं में ,
फिर भी गुलों से यारी निभाना नहीं आता।
वेशक उन्हें किसी से कोई गिला शिकवा न हो ,
लेकिन अपनों को मनाना भी तो उन्हें नहीं आता ।।
खुदा की रहमत से बुलंदियों पर है उनका मुकाम,
डर है कि उन्हें जमीं पर पाँव ज़माना नहीं आता।
वो क्या खाक कला -साहित्य-संगीत-सृजन ,
जिसे मजलूमों के आंसू पोंछना भी नहीं आता।।
श्रीराम तिवारी
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