गुरुवार, 13 नवंबर 2014

सरदार पटेल बनाम पंडित नेहरू का तुलनात्मक विमर्श देशभक्तिपूर्ण नहीं है।

    

    नदियों-झरनों का कल-कल संगीत ,पंछिओं -पखेरुओं का कलरव गान ,प्राकृतिक सौंदर्य बोध का रसास्वादन करने के लिए न केवल ज्ञानेन्द्रयों की बल्कि  ह्रदय की सुग्राह्यता  भी अत्यंत आवश्यक है.शास्त्रीय संगीत का आनंद  उन्ही को प्राप्त हो सकता है जो सरगम की समझ  के साथ -साथ  ह्रदय की विशालता को धारण किया   करते हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू के अवदान को वही समझ सकते हैं जिन्हे न केवल स्वाधीनता  संग्राम का सही इतिहास मालूम है ,बल्कि जिनके  दिलों  में अपने शहीदों और पूर्वजों के प्रति आदर सम्मान का भाव है। वेशक   पंडित नेहरू   के कारण ही आज भारत  जैसा विराट मुल्क  दुनिया का सबसे शानदार लोकतंत्र है।
                                                                  पंडित नेहरू की विचारधारा और कार्यशैली से असहमत उनके समकालीन प्रतिश्पर्धियों ने भी  उनकी महानता का  लोहा माना है।  पंडित नेहरू की लोकतान्त्रिक आस्था का एक बेहतरीन उदाहरण यही है कि ,उनके सबसे बड़े आलोचक -ईएमएस नम्बूदरीपाद , हरकिशन सिंह सुरजीत ,श्रीपाद अमृत डांगे ,ऐ के गोपालन , सुभाषचन्द्र  बोस  ,जैनेन्द्र,लोहिया ,श्यामाप्रसाद मुखर्जी ,दीनदयाल उपाध्याय ,अटल बिहारी बाजपेई और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर  भी यह अस्वीकार नहीं कर  सके कि  नेहरू ने हमेशा लोकतांत्रिक -धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणतंत्र भारत के निर्माण की ही कामना की है।  वेशक पंडित नेहरू न तो लेनिन बन सके और न ही माओ  बन पाये , किंतु वे जैसे भी थे  उनकी उस महानता का दुनिया में  कोई  सानी नहीं  है।  भारत भी न तो सोवियत संघ बन  सका और न ही चीन। किन्तु भारत फिर भी  दुनिया में बेजोड़ लोकतांत्रिक -धर्मनिरपेक्ष  राष्ट्र तो है।  पंडित नेहरू  इस महान  देश के  प्रथम  प्रधानमंत्री थे।  क्या यह  उत्तरदायित्व उन्हें किसी ने खैरात में दिया था ?यदि  भारत अपने प्रजातांत्रिक मूल्यों के लिए ,अपने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के लिए संसार में  आज सबसे अधिक सम्मानीय है।  तो क्या यह अंग्रेजो की बदौलत है ? क्या यह किसी साम्प्रदायिक संगठन की बदौलत है ?
                                                            कुछ लोगों को पंडित नेहरू के व्यक्तित्व से बेजा शिकायत है कि  वे हिन्दुराष्ट्र के लिए समर्पित  क्यों नहीं  रहे । ऐंसे लोगों को चाहिए कि भारत की,विश्व की  और भारत के पड़ोस की सामाजिक -राजनैतिक  पृष्ठभूमि का सिंहावलोकन करें। यदि इन्हे लगता है कि  यह संभव है तो 'मत चूके   चौहान '.  वैसे भी अभी तो संघ परिवार की बीसों घी में हैं। मोदी जी प्रधानमंत्री हैं। संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त है। कर सको तो करके   दिखाओ ! दम  है तो  लाल किले पर 'गरुड़ध्वज' फहराकर  दिखाओ  ! नेहरू पर  या किसी और प्रगतिशील  -धर्मनिपेक्ष नेता पर तोहमत लगाना आसान है किन्तु करके दिखाओ तो जाने !
                                                            कुछ लोगों को शिकायत है कि पंडित नेहरू ने लेडी माउन्टवेटन से प्यार क्यों किया ?  सवाल किया जा सकता है कि जिस ब्रटिश साम्राज्य के ऐयाश शासकों ने गुलाम भारत की   माता -बहिनों -अबला -सबला  अनगिनत -नारियों    का  २०० साल तक देह शोषण किया है। यदि  उसी ब्रटिश साम्राज्य   के प्रतिनिधि - वायसराय की  गोरी मेम  पंडित  नेहरू   के पीछे पड़  गयी  तो इसमें उनका क्या  कसूर ?   क्या यह भारत की समस्या है ?जिन लोगों ने  सोसल मीडिया पर कट-पेस्ट की कला से आपराधिक कृत्य किया है, क्या  लेडी माउन्टवेटन उन  लफंगों की अम्मा लगती है।  क्या इन  कृतघ्न लुच्चों को मालूम है कि  यह पंडित नेहरू ही थे जिन्होंने  आजाद हिन्द फौज के सेनानियों की  खातिर काला कोट पहनकर उनका मुकदद्मा लड़ा था।  उन्ही नेहरू की वजह से ही गुलामी के  उस दौर में भी  जब सारे  भारतीय उपमहाद्वीप में  ये  नारा लगता था  कि :-

  लाल किले से आई आवाज !    सहगल ढिल्लन शाहनवाज    !

 ये गगनभेदी  नारे ब्रिटिश साम्राज्य  को हिलाने में  सक्षम थे। किन्तु   इन दिनों  भारत में कुछ  लोगों को गोडसे की सवारी आने लगी  है,   उन्हें  लगता है काश सरदार पटेल  ही भारत के  प्रथम प्रधानमंत्री होते ! वेशक सरदार पटेल भी इस योग्य थे।  किन्तु उससे क्या ? भारत के प्रधानमंत्री तो चरणसिंह और देवेगौड़ा भी बन चुके हैं।इन लोगों ने क्या भेला  उखाड़ लिया ? सरदार होते तो क्या कर लेते ? कामरेड ज्योति वसु को सीपीएम ने प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया , कोई भी  कह सकता है कि  काश वे प्रधानमंत्री होते ! मैं तो  डंके की चोट कहता हूँ कि  जो भी हुआ -पीएम बना वही माकूल था। भारत की यही नियति थी।  आज जो सत्ता में हैं  उनको देखकर कांग्रेसी सोचे होंगे कि  काश राहुल गांधी प्रधानमंत्री होते ! वामपंथी सोचते होंगे कि  काश कोई कम्युनिस्ट इस देश का प्रधानमंत्री होता ! कैसे  होता  ? होना तो नरेंद्र मोदी को था ,इसलिए वे हैं। इसमें काश ! ये होता  !  काश वो होता से कुछ नहीं होता ! मैं ये भी नहीं कहूँगा कि  यह ईश्वर की मर्जी है।  जिस तरह अभी-अभी हुआ कि  भारत का मीडिया ,भारत के पूंजीपति और  कांग्रेस की असफलता ने ही तय कर दिया  कि मोदी जी  ही प्रधानमंत्री होगे तो वे हैं।इसी तरह स्वतंत्र भारत के ततकालीन नेताओं ,पूंजीपतियों  और कांग्रेस ने भी कुछ इसी तरह  पंडित नेहरू को अपना नेता चुना होगा । ये सभी याद रखें कि  ' पंडित नेहरू   की आलोचना करने  की  औकात किसी की नहीं है ,जो कर रहे हैं वे भी जान लें कि  उनके पूर्वजों में भी नहीं थी।
                  पंडित नेहरू भारत के महानतम रत्न थे ,उनके  पिता इतने अमीर थे की आज के अम्बानी ,अडानी, मित्तल जैसे  लोग कहीं नहीं टिकते।   फिर भी उन्होंने सब कुछ देश के स्वाधीनता संग्राम को अर्पित कर दिया  .  कुछ अज्ञानी और अनभिज्ञ लोग   सरदार  पटेल बनाम  पंडित नेहरू का तुलनात्मक  विमर्श  पैदा कर  कर रहे हैं जो कि  देशभक्तिपूर्ण कदापि नहीं है। काश  जहाँ हिमालय है वहाँ आल्पस होता ! काश जहाँ गंगा है वहां गोदावरी या मिसीसिपी होती। काश  .... ! यह सिलसिला तो अजर अमर है ! फिर भी आज तो पंडित नेहरू याने "नेहरू चाचा '  का हैप्पी बर्थ डे है।  बधाई !
                                               
            श्रीराम तिवारी    

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें