रविवार, 30 नवंबर 2014

वे लोग क्या मूर्ख हैं जो मोदी जी को ही अर्जुन समझ बैठे हैं ?


     काश ये  कहावत  सच होती कि  'खुदा  गंजों को नाखून नहीं देता' . काश ये सच होता कि 'नंगों के नौ गृह बलवान होते हैं' . काश ये भी सच होता कि 'समय ,सत्ता और समझ  खुशकिस्मत को ही मिला करती  है ' . काश  'संघ '  प्रमुख  श्री मोहनराव भागवत का यह आप्त वाक्य  भी केवल सियासी जुमला होता  कि ' देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र भाई मोदी  तो अभिमन्यु' हैं। काश कि  यह   महज एक राजनैतिक बाध्यता  से प्रेरित वयान होता  !   चूँकि मोदी जी की पीठ पर अम्बानियों -अडानियों  का  हाथ है। इसके साथ- साथ  मोदी जी के सिर  पर 'संघ' का मजबूत हाथ है।  चूँकि   कार्पोरेट सेक्टर ने तो मोदी जी को अपना  वैश्विक ब्रांड एम्बेसेडर बना डाला है।   चूँकि  संघ के मन में  मोदी की हैसियत अभिमन्यु से ज्यादा नहीं  है इसलिए देश की आवाम  को समझना होगा कि   स्थिति कितनी भयावह और  डरावनी  हो चुकी है।  वेशक महाभारत में 'अभिमन्यु' एक लाजबाब वीरता और साहस  का प्रतीक है। पाण्डवों  को युद्ध में  विजय के लिए न केवल अभिमन्यु ,न केवल बब्रुवाहन ,न केवल घटोतकच्छ बल्कि और भी लाखों बलिदान दरपेश हुए थे। क्या नरेंद्र भाई मोदी  को अभिमन्यु बनाकर 'संघ '   किसी महाविजय के लिए कृतसंकल्पित हो रहा है। तब संघ के अर्जुन ,भीम कौन हैं ?  राजसूय यज्ञ काअसली  'होत्र' और भारत सम्राट  युधिष्ठर कौन हैं ?  निसंदेह  श्रीकृष्ण तो भागवत जी हैं। लेकिन उनकी इस  घोर नैराश्य पूर्ण उद्घोष्णा  से  कि  मोदी जी तो किसी चक्रव्यूह का चारा मात्र हैं ,जो कि संकटापन्न  सप्त महारथियों द्वारा घेरे जा चुके हैं। भागवत जी के  इस निरूपण से वेशक  उन लोगों को  ठेस पहुंची होगी जो मोदी  जी को ही अंर्जुन मान बैठे थे।  वे लोग क्या मूर्ख हैं जो मोदी जी को ही अर्जुन समझ बैठे हैं ?

                                  श्रीराम तिवारी 

गुरुवार, 27 नवंबर 2014

निसंदेह जनता और मीडिया का ध्यान प्रतिस्थापिन के लिए ही यह सब बंदर कूँदनी की जा रही है।



    संसद के   शीतकालीन सत्र  के प्रथम कार्य दिवस  को  ही इस सत्र के  दाह  संस्कार  का श्रीगणेश हो चूका  है। विभिन्न सदस्यों के मार्फ़त लोक सभा   में स्पीकर के  सम्मुख  और राज्य सभा में सभापति महोदय के  समक्ष लोक महत्व   के या समग्र  राष्ट्र नीति  निर्माण विषयक  मुद्दों एवं प्रस्तावों पर होने  वाली ततसम्बन्धी  बहस-चर्चा के मार्फ़त  पारित होने की संभावनाओं को तृणमूल कांग्रेस ने पलीता लगा दिया है। कभी काली छतरी कभी काला शाल -दुशाला  ओढ़कर ये गैरजिम्मेदार  तृणमूली सांसद और अन्य पूँजीवादी दल  न केवल संसद को शर्मशार कर रहे हैं अपितु देश की जनता  के सामने नौटंकी कर  भी रहे हैं। बसपा ,जदयू ,कांग्रेस और सपा के सांसदों ने और मुलायमसिंह जैसे वरिष्ठों ने  भी संसद के पहले दिन ही दिखा दिया कि  ये सब चुके हुए कारतूस ही हैं । ये थके -हारे नेता अब   देश के समक्ष अपनी राजनैतिक असफलता और मायूसी  छिपाने के लिए   ऐंसी  हास्यापद  हरकतें कर रहे हैं।  वास्तव में ये गैरजिम्मेदार विपक्षी सांसद  सत्ता पक्ष याने 'मोदी सरकार' पर वार  नहीं कर रहे हैं। बल्कि अपने-अपने पापों को छिपाने  के लिए तथा  जनता और मीडिया का ध्यान  प्रतिस्थापिन  के लिए यह सब बंदर कूँदनी  की जा रही है।
                 ममता बेनर्जी  के  लुच्चों -लफंगों  और बलात्कारियों ने पश्चिम बंगाल का  तो कीमा  ही बना डाला है। तृणमूल के सांसद विधायक खुले आम गैंग रेप और  हत्या  की न केवल धमकियाँ  दे रहे हैं,बल्कि अधिकांस  हत्या -बलात्कार और डकैती में ही लिप्त  पाये जा रहे हैं। शारदा चिट फंड षड्यंत्र  में तृणमूलियों का गले-गले तक फँसे  होना और वर्धवान बम बिस्फोट जैसी देशद्रोही आतंकी घटनाओं में उनकी शिरकत से पूरा देश वाकिफ है। किन्तु केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है। केवल जांच का झुनझुना बजाने से ही तृणमूली आगबबूला हो रहे हैं। बंगाल में अब तक तो केवल मार्क्सवादियों का ही कत्लेआम हो रहा था  किन्तु अब  कुछ भाजपा के लोग भी तृणमूल के गुंडों का शिकार हो रहे हैं। अभी तक तो मोदी जी  और संघ परिवार ने  वामपंथ को खत्म करने के उद्देश्य से  ही  ममता के खूब भाव बढाए  हैं । उसके  चरणों में खूब लोट लगाईं  है। किन्तु ममता ने पश्चिम बंगाल में  अल्पसंख्यक कार्ड खेलकर हिन्दुत्ववादियों को चुन-चुनकर मारना शुरू कर दिया है। बर्धवान जैसी घटनाएँ ममता के इशारों पर ही हो रहीं हैं। ममता ने मोदी जी को  न तो चुनाव में घास डाली  है और न ही अब संसद चलने दे रही है। उसने तो  इसके विपरीत जाकर बर्धवान काण्ड में केंद्र सरकार  को ही कसूरवार ठहरा दिया है। अब  तक भाजपा और केंद्र सरकार ने ममता के आरोपों का खंडन  भी नहीं किया है।  शायद ममता की बात में बाकई दम  हो , तभी तो  बंगाल में भाजपाइयों और संघियों की पिटाई के वावजूद केंद्र सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी  है। उलटे तूणमूली ही  संसद में  कोहराम मचाने की जुर्रत कर रहे हैं !
                  वेशक यह सब ममता  का पाखंडपूर्ण प्रदर्शन है।  देश का और  खास  तौर  से पश्चिम बंगाल की जनता का ध्यान अपनी काली करतूतों से  हटाने के लिए ममता बेनर्जी संसद में नौटंकी करवा  रही है। ममता की  ही तरह मुलायम सिंह के सुपुत्र अखिलेश के राज में पूरा यूपी धधक  रहा है। विकाश या सुशासन तो बहुत दूर की बात है  उत्तरप्रदेश अब  ऊधम प्रदेश हो चूका है। अब तो मुलायम  परिवार भी टूट की कगार पर है। मुलायम की छोटी बहूरानी  तो  सपा  की गुंडई  को खुले आम स्वीकार कर चुकी है। वह मोदी वंदना में लीन  हो रही है। क़ानून व्यवस्था   नाम की कोई चीज यूपी में तो नहीं है।  साम्प्रदायिक उन्माद बढ़ रहा है। वेशक इसका आरोप कभी हिन्दुत्ववादियों पर कभी अल्पसंख्यकों पर मंड  दिया जाता है किन्तु असल में यह राज्य प्रशासन की जिम्मेदारी है कि  वह क़ानून का राज्य कायम रखे। अखिलेश पूरी तरह नाकम सावित हुए हैं। मुलायम भी यही महसूस कर रहे हैं। यूपी के गन्ना  किसानों  को भूँखों  मरने की नौबत आ चुकी है। उधर  अफसरों  का , पुलिस का ,दवंगों का  और डाकुओं का- यूपी में एक सा रवैया  है।  वहाँ दलितों पर जुल्म बढे हैं , महिलाओं  और बच्चों की स्थति घोर चिंताजनक है। परिवारवाद चरम पर है। जातिवाद सर चढ़कर बोल रहा है। मुलायम के जन्मदिन  के लिए रामपुर में  या अखिलेश के जन्म दिन के लिए  सैफई में जश्न  मनाने के बाद  अब यूपी में मुलायम परिवार के लिए एमवाय के सिवा कुछ शेष नहीं  बचा है । चूँकि  यूपी में लोक सभा चुनाव में सपा का पाटिया उलाल हो चूका है  और आइन्दा विधान सभा चुनाव में  भी सपा का  सूपड़ा साफ़ होने जा रहा  है। इसीलिये  वमुश्किल चुने गए  ४-५   सपा सांसद ,अब संसद में  मुलायम के नेतत्व में  ममतामय हो रहे हैं। वे यूपी से ध्यान हटाने के लिए तृणमूल की हुड़दंग में भी शामिल हो रहे हैं।
                        इस अवसर पर कांग्रेस ने जो किया वो उसकी बदहाली का सबब हो सकता है,शायद उसे सत्ता में रहने की आदत के  कारण  विपक्ष की भूमिका का सलीका  ही नहीं  सूझ   रहा है ।  जदयू और शिवसेना का आचरण भी बेहद फूहड़ और अनैतिक  परिलक्षित हो रहा है।  शिवसेना का आचरण कुछ वैसा ही है  जैसे कि   कोई गुस्सेल सास अपनी बहु  की बेरुखी से  उसे विधवा होने का श्राप दे डाले। क्रोध की पराकष्ठा में उसे ये भी याद नहीं रहता कि  बहु से दुश्मनी निभाने  के आवेश में वह खुद के बेटे को  ही मरने का श्राप दे रही है। शिवसेना  की भूमिका इन दिनों देशभक्तिपूर्ण  या हिन्दुत्ववादी नहीं बल्कि  ब्लेकमेलिंग की है। संसद में वह ममता के सुर में सुर मिलाकर मोदी सरकार  की इज्जत को तार-तार कर रही है।  इसी तरह जदयू के सांसदों ने   बिहार में अपनी डूबती नैया को बचाने के लिए तृणमूल के साथ संसद में कदमताल  मिलाया है। उनकी  अपनी ही मांझी  सरकार केवल ठलुओं का जमावड़ा बनकर रह गई है।  मांझी समेत कई मंत्री तो इस लायक भी नहीं हैं कि  उन्हें किसी प्राइवेट कम्पनी में चौकीदार का  भी काम  मिल सके।  किन्तु फिर भी ये सभी मिलकर देश की संसद को हाइजेक कर रहे हैं। केवल लेफ्ट याने वामपंथ की भूमिका ही सार्थक और देशभक्तिपूर्ण है। अपनी शानदार वैकल्पिक नीतियों और बेहतरीन कार्यक्रमों के साथ लेफ्ट ने जनता को देश भर में लामबंद करने का अभियान चलाया है। धर्मनिरपेक्षता ,समाजवाद और जनकल्याण कारी  लोकतंत्र स्थापित करने के दूरगामी लक्ष्य के साथ ही वर्तमान मोदी सरकार  की पूँजीवाद  परस्त नीतियों के खिलाफ, हर किस्म की साम्प्रदायिकता के खिलाफ ,न केवल संसद में बल्कि देश की आवाम के बीच विशाल जान आंदोलन के लिए वामपंथ दृढ़प्रतिज्ञ है। भाजपा या मोदी सरकार से  नीतिगत विरोध होने और वैचारिक मत भिन्नता होने के वावजूद लेफ्ट ने संसद को कभी भी  बाधित नहीं किया। अनावश्यक कोहराम मचाना या बहिर्गमन का नाटक  करना पूर्व में भाजपा की आदत रही है अब कांग्रेस  तृणमूल तथा सपा इत्यादि भी उसी राह पर चल रहे हैं।  देश के  करोड़ों  मेहनतकशों  मजूरों ,किसानों और कर्मचारियों  को ही नहीं बल्कि अब तो पढ़े लिखे युवाओं  की   भी वामपंथ की नीतियों और कार्यक्रमों  में दिलचस्पी बढ़ रही है।

                          श्रीराम तिवारी    

अंधश्रद्धा महा पापनी , है जी का जंजाल !




       महिमा आसाराम की , रामपाल सतलोक ।

       धर्मान्धता की गटर में , नहा चुके वे- रोक  ।।


    त्रिचरापल्ली में  मगन  ,स्वामी प्रेमानंद  ।

    वैश्यावृत्ति में फंसा  ,  स्वामी  भीमानंद।।


   ऐक्ट्रेस  संग  जो  रहा ,ब्रह्मानंद में लीन।

   नित्यानंद   वो हरामी  ,  सबसे बड़ा कमींन ।।


  चंद्रा स्वामी  तांत्रिक , राजनीतिज्ञ  दलाल  ।

  स्वामी रामदेव   भी  ,  हो  रहा मालामाल  ।।


    सभी धरम -मजहबों  में , छिपे  गुरु  घंटाल।

    अंधश्रद्धा  महा पापनी   ,  है जी का जंजाल ।। 


                     श्रीराम तिवारी 







 

बुधवार, 26 नवंबर 2014

यदि इस दक्षेश सम्मलेन का यही एजेंडा था -तो देश को विश्वाश में क्यों नहीं लिया गया ?

 इससे पहले कि  काठमांडू में सम्पन्न दक्षेस शिखर सम्मेलन  में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाक प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच जो  कुछ भी अघटित घटा , उस पर देश की संसद और आवाम दोनों चिंतन करें     देश के बुद्धिजीवियों और कूटनीतिज्ञों को  भी इस  संदर्भ  में अपना मंतव्य प्रस्तुत करना चाहिए। क्या  इस शिखर  सम्मेलन  का सार तत्व यही अज्ञानता और अहंकार की पराकाष्ठा है।क्या सारा दोष पाकिस्तान के मत्थे  मढ़  देने से दुनिया हमें 'हंस' और उसे कौआ समझ लेगी ? वैसे भी  नवाज भाई जान या  पाकिस्तान के लिए इसमें कुछ भी अप्रत्याशित नहीं है।  परवेज मुसर्रफ भी  आगरा में अटलजी को चूना  लगाकर ,मटन  बिरयानी खाकर चला गया था।बातचीत की असफलता का ठीकरा आडवाणी के सर फोड़ गया था। नवाज शरीफ तो वेचारा वहाँ  की फौज ,साम्प्रदायिक कटट्रपंथियों -कठमुल्लाओं   और आईएसआई  का गुलाम है।  किन्तु नरेंद्र भाई मोदी  तो ' भूतो न भविष्यति ' हैं न ! उन्हें सदैव स्मरण होना चाहिए कि  वे एक ऐंसे  मुल्क के  प्रधानमंत्री हैं जो रूप -आकर ,गरिमा ,लोकतंत्र और आर्थिक -सामरिक प्रभुता में पाकिस्तान से १० गुना ताकतवर है।  अकेले अडानी -अम्बानी ही पाकिस्तान को खरीदकर  मोदी जी की जेब में डाल  सकते हैं।  चूँकि  मोदी जी सिर्फ भाजपा के ,या सिर्फ  पूँजीपतियों  के ही नहीं , उन ३० % मतदाताओं के  भी   नहीं  हैं जिनकी बदौलत  संसद में  ३८३ कमल खिले  हैं।  बल्कि मोदी जी तो  १२५ करोड़ भारतीयों  के महान गौरवशाली  प्रधानमंत्री  हैं।  वे हमारे  महा प्रतापी   बेजोड़ - प्रचंड शक्तिशाली  प्रधानमंत्री  हैं।  सवाल ये है कि  इन्हें नवाज शरीफ या पाकिस्तान को राह पर लाने या   रिश्ते ठीक करने  से किसने रोका ?   काठमांडू में रिश्ते मजबूत हुए या तार-तार ये तो वक्त ही बताएगा किन्तु  कुछ आशंकाएं तो जरूर हैं जिनका  समाधान दोनों मुल्कों की आवाम को चाहिए।  दोनों देशों के विदेश मंत्रालयों और सरकारों को मालूम है कि  वे अपना पड़ोस कभी बदल  नहीं सकेंगे। किन्तु वे अपनी सोच बदलकर रिश्तों  की कड़ुआहट कम  कर सकते हैं। इसलिए उनकी खिदमत में पेश है :-

 रहीम बाबा कह गए हैं -

                                 रूठे  स्वजन  मनाइये , जो रूठें सौ बार।

                               रहिमन पुनि-पुनि पोइए ,टूटे  मुक्ता  हार।।  [भारत-पाक दोनों के लिए ]



   कबीर बाबा कह गए हैं -

                                       जब  तूँ  था तब मैं नहीं ,अब तूँ  है मैं  नाहिं।

                                       प्रेम गली अति सँकरी ,जा में दो न समाय।। [ नवाज शरीफ के लिए ]

 आतंकवाद और दोस्ती दोनों एक साथ नहीं रह सकती  .  . . . . !



 गोस्वामी तुलसीदास बाबा कह गए हैं -

                                                       दोउ को होहिं एक समय भुआला।

                                                         हँसहु  ठठाय  फुलावहु  गाला।। [सिर्फ मोदी जी के लिए ]

   अपना वैयक्तिक  वर्चस्ववादी एजेंडा  और भारत का राष्ट्रीय  एजेंडा  एक साथ मत चलाइये … ।

  मोदी जी  विगत १६ मई -२०१४ से पूर्व सिंह गर्जना कर रहे थे कि  हम सत्ता में आयंगे तो पाकिस्तान को ,चीन  को ठीक कर देंगे। जो भारत की ओर  गलत निगाहें डालते रहते हैं हम उन्हें ठीक कर देंगे । हम आतंकियों को नेस्तनाबूद का र्देंगे। हम कालाधन वापिस लाएंगे और उन चोट्टों  के नाम भी  उजागर करेंगे। हम  देश के गल्लाचोरों को -मुनाफाखोरों को ,रिश्वत खोरों को  फाँसी  पर चढ़ा देंगे।  हम  मनमोहनसिंह की तरह  निष्क्रिय   नहीं बनें रहेंगे ।इसी  तरह सुशासन और विकाश के  चुनावी उत्तेजक भाषण सुनकर भारत की युवा आवाम ने न केवल तालियाँ  बजाई बल्कि ऐतिहासिक प्रचंड बहुमत  देकर  मोदी को सर्वशक्तिमान बना दिया। कालाधन का क्या हुआ  पता नहीं ?   महंगाई  , बेकारी  , हत्या  ,बलात्कार  कितने कम हुए पता नहीं। वर्तमान सत्तासीन नेतत्व के 'बोल बचन' से क्या हासिल हुआ  वो तो सबको दिख रहा है. किन्तु पाकिस्तान और चीन कितने  डरे पता नहीं। वर्तमान परिदृश्य में  हालात  इतने बुरे होंगे  इसका भी किसी को अंदाजा नहीं रहा होगा ।  दो पडोसी प्रधानमंत्री  एक दूसरे  से नजरें ही नहीं मिलायंगे  यह किसी ने शायद ही सोचा होगा !   शीत  युद्ध के दौरान  अमेरिका और सोवियत संघ -तत्कालीन दोनों महाशक्तियों  में भी इस कदर अबोला या संवादहीनता का दृश्य कभी देखने -सुनने में नहीं आया।  इंदिराजी और मुजीब के नेतत्व में जब पाकिस्तान खंडित हुआ तो  भी जुल्फीकार अली भुट्टो और इंदिराजी के  मध्य  ऐतिहासिक शिमला समझौता सम्पन्न  हुआ। इस तरह का ३६ का आंकड़ा कभी नहीं देखा गया।
                                  वेशक  इस असहज स्थति के लिए  पाकिस्तान तब भी ९९% कसूरवार हुआ करता था ।  किन्तु फिर  भी   बातचीत और मेल मिलाप को  रोककर स्थति को इस मुकाम तक नहीं आने दिया गया। इस दौर के  सत्तासीन नेता   चुनावी भाषणों में  बेल का दूध  निकालने का वादा या दावा कर बैठे हैं । क्या भाजपा और संघ परिवार के इन नेताओं को नहीं मालूम था कि  पाकिस्तान के अड़ियल रवैये के कारण  ही १५ अगस्त  - १९४७   से १६ मई -२०१४ तक ,यहाँ तक की अटलबिहारी की एनडीए सरकार के कार्यकाल  तक  भारत  की यही नियति थी कि  उसे पाकिस्तान के फौजी जनरलों से जूझना पड़ा। मोदी जी आप तो पाकिस्तान के चुने हुए  नुमाइंदों  से भी संगत नहीं बिठा पा रहे हो !   यदि  आप का कथन है कि  हम क्या करें ? पाकिस्तान ही गुनहगार है. तो यह कौन  सा नया आविष्कार है ? पाकिस्तान   में तो अब आंशिक  जम्हूरियत  भी है. किन्तु   इससे पहले तो वहाँ  अधिकांस फौजी निजाम ही रहा  है । यदि  यही  बहाना करना था जो काठमांडू में किया   तो डॉ मनमोहनसिंह ही  क्या बुरे थे ?  आपसे  तो वे ही ठीक  हैं   क्योंकि   लोग उनसे ईर्षा या द्वेष   नहीं  करते । वेशक उनकी आर्थिक नीतियाँ  देश के  मेहनतकशों के खिलाफ  रहीं हैं किन्तु   फिर भी वे बड़बोले लफ़्फ़ाज़  तो अबश्य नहीं हैं। डॉ मनमोहनसिंह के समक्ष  दुनिया का हर राष्ट्र अध्यक्ष  इज्जत  से पेश आता  है । वेशक डॉ मनमोहनसिंह की आर्थिक नीतियों से देश  में भृष्टाचार बढ़ा और अमीरों की तरक्की ज्यादा हुई है। लेकिन  मोदी जी  तो  इस  आर्थिक नीति  की पूँजीवादी कलाकारी में  तो  मनमोहन सिंह के  भी  उस्ताद निकले  हैं  . वेशक मोदी जी राजनयिक गाम्भीर्य और कूटनीति में महाफिस्सड्डी  साबित हुए  हैं । क्या यह उनकी   उत्तरदायित्व हीनता नहीं है कि  आज सबके सब पडोसी आँखें तरेर रहें हैं ?  क्या इसलिए देश की आवाम ने 'मोदी-मोदी' का सिंहनाद किया था  कि  सबसे बोलचाल बंद कर  दो ? क्या यह नितांत वैयक्तिक अहंकार की उद्घोषणा नहीं है ?  क्या   दो सनातन  पड़ोसियों  के  प्रधानमंत्रियों द्वारा  हाथ  नहीं मिलाने या नजर नहीं मिलाने  के लिए हम ख़ुशी का इजहार करें ?
                            यदि इस दक्षेश  सम्मलेन का  यही एजेंडा था तो देश को विश्वाश में क्यों नहीं लिया गया  ?  क्या यह केंद्रीय मंत्रिमंडल और भाजपा का पारित प्रस्ताव था ?  क्या यह  मोदी की तात्कालिक बाध्यता  थी ? वेशक तात्कालिक बाध्यता के लिए नवाज शरीफ १०० % कसूरवार  हो सकते हैं.  किन्तु तब तो मोदीजी और उनकी पार्टी को सारे देश  से उस  झूँठ  के लिए ,उस दम्भ और बड़बोलेपन के लिए , माफ़ी मांगनी   चाहिए  , जिसमे  उन्होंने पाकिस्तान को सबक सिखाने का  वादा किया  है । क्या पाकिस्तान को नसीहत मिल गयी है  ? क्या दाऊद मिल गया है ?क्या मुंबई बम कांड के दोषी फांसी पर चढ़ चुके हैं ?  क्या पाकिस्तान अब पाक-साफ़ हो गया है ? यदि नहीं तो ,काठमांडू में जो हुआ   क्या वह  देश की आवाम को मंजूर है ? यदि हाँ तो  यह आशा की जानी चाहिुए कि  आइन्दा किसी  आतंकी  बारदात ,सीमाओं पर गोलीबारी  या देश के अंदर   सम्प्रदायिक बल्बे  में पाकिस्तान  का कोई उल्लेख नहीं होना चाहिए। यदि यह संभव नहीं तो स्वीकार कीजिये कि  भारत पाकिस्तान के संबंधों को  सामान्य बनाने  में आप असफल रहे हैं। आपसे बेहतर नीतियाँ  नेहरू,इंदिरा या अटलजी के पास थीं।   इन्होने डींगे नहीं हाँकी  कुछ करके ही  दिखाया  है।

                                       श्रीराम तिवारी
                           
                       

मंगलवार, 25 नवंबर 2014



     जम्मू और कश्मीर में  आइन्दा कोई भी पार्टी  जीते या हारे।

    लेकिन इस चुनाव  में तो हो चुके हैं,लोकतंत्र के वारे -न्यारे।।

    भले ही दहशतगर्दों -अलगाववादियों की  है पाकिस्तान से यारी ।

    किन्तु इन सब पर  कश्मीरियत और जम्हूरियत ही  है  भारी।।

     निष्पक्ष  मतदान के लिए  केंद्रीय चुनाव आयोग को बधाई।

   जम्मू और कश्मीर  की आवाम  ने शानदार भूमिका  निभाई।।

              :- श्रीराम तिवारी 

मगरमच्छ बेखौफ हैं , शासक जिनके यार !



   हंसी ठिठोली मसखरी , सदा न   होती नीक।

   मरघट  बीच ठहाका ,   लगता  नहीं है  ठीक।। ]


   क्या भविष्य है देश का , कोई जाने नाहिं  ।

   मंत्री अपने भविष्य  का ,हाथ दिखाने जाहिं   ।।


    मचा रहे हल्ला वही  , कालेधन का खूब।

    जिनकी  विश्वसनीयता ,  तेजी से  रही  डूब।।


     सब लाकर  खाली हुए ,खूब बटी  खैरात।

    कालाधन  स्विस बैंक से ,गायब रातों रात।।


   सत्तासीन नेताओं ने , किये गजब उत्पात ।

   चोर मचाये शोर  जब  , क्यों न होगा घात ।।


    छोटी -छोटी मछलियाँ ,होती रहीं  शिकार।

    मगरमच्छ बेखौफ हैं , शासक जिनके  यार।।


                श्रीराम तिवारी


 

  

  

  

     ,

शुक्रवार, 21 नवंबर 2014

जब तक यह भृष्ट समाज व्यवस्था कायम है , अंधश्रद्धालु धर्मान्धताके पोखर में डुबकी लगाते रहेंगे !

कुछ साल पहले  जब  गुजरात के अक्षरधाम मंदिर सहित   अन्य मजहबों के धर्म गुरुओं की रासलीलाओं  की सीडी  बाजार में आई तो    धर्म-मजहब से जुड़े असमाजिक तत्वों की काली करतूत  और अंध श्रद्धा से सम्पृक्त  धर्मान्ध -मानव समूह  का भेड़िया धसान पथ संचलन जग जाहिर हो गया । वाकई साइंस ने और आधुनिक सूचना संचार  क्रांति  ने  एक काम तो मानवता के लिए जरूर  बेहतर किया है कि  अब वे गुनहगार भी वेपर्दा हो रहे हैं,जो धर्म-मजहब के स्वयंभू ठेकदार बन बैठे हैं।  जिन पर न केवल अंध श्रद्धालुओं को बल्कि राज्य सत्ता को भी बड़ा नाज  हुआ करता है । धार्मिक पाखंडवाद और गुरु घंटालों के प्रति अंधश्रद्धा  का इस आधुनिक साईंस  युग में  जीवित रहना एक चमत्कार ही है। वर्ना  इसी उन्नत तकनीकि  ने  ही तो कांची कामकोटी पीठधीश्वर स्वामी जयेंद्र सरस्वती जैसे बड़े-बड़े दिग्गजों की पोल खोलकर उन   को  भी शर्मशार किया है। नेताओं के स्ट्रिंग आपरेशन हुए तो   राजनैतिक भृष्टाचार ,रिश्वतखोरी , व्यापम भंडाफोड़ ,नेताओं का कदाचार तथा काले धन इत्यादि  के विमर्श का गूलर फुट गया। यह सब सोसल मीडिया में , डिजिटल -इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ही नहीं सर्च इंजन के मार्फ़त   विश्व व्यापी हो चला है। इसी  तरह धार्मिक अंधश्रद्धा और  पाखंड में ,पूजा स्थलों में तथा साम्प्रदायिक उन्माद  के केन्द्रो में भी जो अमानवीय आचरण व्याप्त है वो भी उन्नत तकनीक की बदौलत   अब  शिद्दत से उजागर हो रहा है।रामपाल जैसे ढोंगियों को जेल के सींकचों तक ले जाने में इस आधुनिक टेक्नॉलॉजी का अभूतपूर्व योगदान है। राजनैतिक संरक्षण की  हेराफेरी भी अब छुप नहीं सकती।

                                                लगभग साल भर पहले  इंदौर के अपने आलीशान  विशालकाय आश्रम में छुपा  कुख्यात  -बलात्कारी संत  'बापू' उर्फ़  कथावाचक - आसाराम'  जब जोधपुर पुलिस के हत्थे  चढ़ा ,तब उसकी और उसके अनुयाइयों की ही नहीं बल्कि  भाजपा नेताओं की भी  प्रतिक्रिया थी कि इस में  -'माँ - बेटे का हाथ है'। माँ याने सोनिया गांधी। बेटा  याने राहुल गांधी।   केंद्र की तत्कालीन   मनमोहन - सरकार और राजस्थान की गेहलोत सरकार ने यदि अपने कार्यकाल में  कोई यादगार और बेहतरीन कार्य किया है तो वो है - आसाराम को जेल में ठूँसना। हालाँकि  आसराम को इतनी बड़ी हैसियत तक ले जाने के लिए  यही नेता  और यही सत्ता की  राजनीति भी जिम्मेदार है।  इसी के साथ   ही  अंध श्रद्धालु जनता भी  बराबर की जिम्मेदार है ,जो धार्मिक पाखंड के खिलाफ कुछ भी सुनना  पसंद   नहीं करती। अंधश्रद्धालुओं के वोट से सत्ता पाने वाले साम्प्रदायिक नेता भी इस राष्ट्र विरोधी पाखंडवाद को पनपने में सहायता करते रहते हैं।

                           न्याय पालिका के भय से भाजपा और उसकी सरकार चाहते हुए भी इन पाखंडी बाबाओं की मदद नहीं कर पा रही है। यही वजह है कि  आसाराम को साल भर में जमानत भी नहीं मिली है।   भारत में आजादी के दौरान और उसके भी पहले मुग़ल काल में कई सन्यासी विद्रोह पढ़ने -सुनने में आये हैं। इस देश में योग ,सन्यास और नैतिक मूल्यों को स्थापित करने में  सभी धर्मों के संतों,कवियों और महात्माओं का बड़ा योगदान रहा है। किन्तु आजादी  के बाद  देश  में इस क्षेत्र में गिरावट और चरम पतन का सिलसिला थम नहीं रहा है।  इस दुखद और शर्मनाक  स्थति के लिए शायद  लोकतान्त्रिक सुविधा का बेजा दुरूपयोग  ही जिम्मेदार है।  राजनीतिक  गिरावट,साहित्यिक बदचलनी  और पूँजीवादी  व्यवस्था भी इस अंधश्रद्धा के लिए  कुछ कम   जिम्मेदार नहीं  है। यह कटु सत्य है कि सभी धर्मों,सम्प्रदायों और पंथों में  पापाचार की भयानक प्रतिद्व्न्दिता तो है ही इसके साथ ही  इन सभी के असंवैधानिक कृत्यों  से राष्ट्र राज्य को भी सदा खतरा हुआ करता  है।

                                            ८० के दशक में कांग्रेस की शह पर संत भिंडरा वाला , अमेरिका की शह  पर  गंगासिंह ढिल्लो , सिमरनजीतसिंह मान  ,इंदिराजी के हत्यारे और पाकिस्तान पोषित   उनके  ही जैसे  अन्य  सैकड़ों मरजीवड़ों ने भी भारत में  धार्मिक अंधश्रद्धा के नाम पर  -एक  अलग देश खालिस्तान के नाम पर -देश में खूनी  मंजर  मचा रखा था। यह सब पाकिस्तान की शह पर और अकाल तख्त  के तत्कालीन  कटटरपंथी साम्प्रदायिक देशद्रोही  करता धर्ताओं  की  कुटिल करतूतों के तिलस्म तथा   कांग्रेस की असफल  राजनैतिक नीतियों तथा चालबाजियों का  ही संयुक्त  परिणाम था ।  इतिहास गवाह है कि तब   देश की अखंडता अक्षुण रखने के  लिए स्वर्ण मंदिर में भी पुलिस को प्रवेश करना पड़ा था । इंदिरा जी , ललित माकन जी ,तथा हजारों देश  भक्तों को अपना बलिदान देना पड़ा। हजारों  निर्दोष  सिखों और गैर सिखों को पंजाब , दिल्ली और पूरे  भारत  में जान से हाथ धोना पड़ा था। इस नर संहार के लिए भी  धार्मिक अंध श्रद्धा और धार्मिक पाखंडवाद ही जिम्मेदार है।  वेशक विदेशी दुश्मन ताकतें  भी  इस तरह के  भयानक नर  संहार  कराने में बराबर की  भागीदार  रहीं  हैं।  पाकिस्तान की आईएसआई और अमेरिका की सीआईए  के कच्चे -चिठ्ठे तो अब  विस्तार से   बिकीलीक्स भी  दुनिया को  बाँट रहा हैं।

                                           यदि मोदी जी के नेतत्व में केंद्र में भाजपा या एनडीए की सरकार नहीं बनती और  पुनः यूपीए सरकार ही बनती तो रामपाल से पहले  स्वामी रामदेव का  जेल जाना  सुनिश्चित था।  वे भले ही राष्ट्रवाद की बड़ी -बड़ी बातें करें या अपने उत्पादों ,अपने योग प्रदर्शन से आवाम को प्रभावित करने की कोशिश करें किन्तु उनके खिलाफ जितने भी आरोप लगे हैं उनमे से एक भी निरस्त किये जाने योग्य नहीं है। यह तो  राजनीति  की ही  बलिहारी है कि  'खुदा मेहरवान तो गधा पहलवान '।  अभी तो  स्वामी रामदेव की बीसों घी में है। न केवल केंद्र सरकार बल्कि उत्तराखंड की 'हरीश रावत सरकार भी उनकी मिजाज पुरसी में लगी हुई है। किन्तु बकरे की अम्मा कब तक खेर मनाएगी ? जिस दिन  भारत की न्यायपालिका को कोई अहम सुराग हाथ लगा की समझो इन बाबा जी  के काम भी लग गए।  तब कोई राजनैतिक संरक्षण या लोम -विलोम काम नहीं आएगा। रामदेव का व्यावसायिक  साम्राज्य भी  भारत में अंधश्रद्धा को बढ़ावा दे रहा है।

                              गुरमीत  राम रहीम -डेरा बाबा सच्चा सौदा ,स्वामी नित्यानंद ,इच्छाधारी स्वामी भीमानंद ,स्वामी दुराचारी  ,स्वामी सदाचारी ,स्वामी  चुतियानन्द , हवा में उड़ने वाला बाबा ,पानी पर चलने वाला बाबा,  निर्मल बाबा ,अमुक बाबा ,धिमुक बाबा  -ढेरों बाबा हैं जिन्हे जेल जाना ही होगा। ये जो  संत [?] बाबा  रामपाल अभी भारत के अंधश्रद्धालुओं की मूर्खता पर जेल में अठ्ठहास  कर रहा है।  वह तो  धार्मिक  अंधश्रद्धा  और  पाखंडवाद  की हांडी का एक चावल मात्र है। आर्य समाज की जागरूकता और बहादुरी के फलस्वरूप -विगत २० नवम्वर को  हरियाणा एवं पंजाब  हाई  कोर्ट  की  तगड़ी  न्यायिक  सक्रियता के फलस्वरूप - यह  गुरु घंटाल जेल के सींकचों से पहले पुलिस रिमांड  तक जा पहुंचा है। हालाँकि  हरियाणा की नयी -नयी खटटर सरकार  का  इस बदमाश 'संत रामपाल' को उसके १२ एकड़ में फैले विशालकाय  'सतलोक' आश्रम से  गिरफ्तार करने का  इरादा कदापि नहीं था। क्योंकि इस बाबा के श्री चरणों में वे पहले ही   कई मर्तवा शीश नवा चुके  हैं । इसके अलावा और भी कई बाबाओं और गुरु घंटालों का 'संघ परिवार' और भाजपा से सीधा नाता  रहा  है।  इन बाबाओं और थैलीशाहों के प्रसाद पर्यन्त ही तो  भाजपा और संघ परिवार की राजनैतिक 'रोजी-रोटी' चलती है। अशोक सिंहल ,प्रवीण तोगड़िया जी को इन पाखंडी बाबाओं में राष्ट्रीय अस्मिता दिखती है।  एक 'बाबा राम-रहीम -डेरा सच्चा सौदा वाले'  तो हरियाणा  विधान सभा चुनाव में  भाजपा का प्रचार  भी करते रहे हैं । आम चर्चा है कि  भाजपा के वरिष्ठ और कद्दावर राष्ट्रीय नेता कैलाश विजयवर्गीय ने उन्हें मनाया होगा। जबकि यह सभी जानते हैं कि  कैलाश जी को  चुनाव जिताने के लिए किसी बाबा के सहयोग की जरुरत  कदापि  नहीं हुआ करती।  वे तो  स्वयं अजातशत्रु हैं। अजेय हैं।जहाँ  वे खड़े हो जाते हैं  'विजयश्री'  वहीँ जन्म लेने को मजबूर हो जाया करती है।राम रहीम को तो बचाव का राजनैतिक तोड़ चाहिए इसलिए भी वह सत्तासीन नेताओं से प्यार की पेगें बढ़ा रहा है।

                          आसाराम   की तरह  ही  रामपाल ने भी सोचा होगा कि  अब तो रंग रंगीले  'बाबाओं-स्वामियों' की तरफदार  सरकर आ गई है। अब न केवल केंद्र में बल्कि प्रांतों में भी  बाबाओं की पसंद की सरकारें आती जा  रही  है, इसलिए 'सैंया भये कोतवाल -अब डर  काहेका' । अब भाजपा के बड़े नेता और प्रवक्ता भी देवी जुबान से  कह  रहे हैं कि " हरियाणा सरकार  और उसकी  पुलिस  को इस  गिरफ्तारी के दौरान मीडिया कर्मियों पर अनावश्यक लाठी चार्ज से बचना चाहिए था " ।  वैसे  मीडिया पर हरियाणा सरकार  के पुलिसिया अत्याचार  से देश को एक फायदा तो अवश्य ही  हुआ  है। जो मीडिया कल तक खट्टर जी  की चरण वंदना कर रहा था वो अब  न केवल 'खट्टर काका ' की धुलाई कर रहा  है, न केवल देश भर में फैले इसी तरह के पाखंडी -उन्मादी बाबाओं की पोल खोलने में जुट गया है ,  बल्कि भाजपा को भी लपेटे में ले रहा है।  इस हमले के बाद  मीडिया ने भाजपा नेताओं के और  इन पाखंडी बाबाओं  के नाजायज -  नापाक अन्तर्सम्बन्ध भी उजागर करना  शुरू कर दिये  है। अब तो मीडिया  'मोदी मोह पाश ' से भी कुछ-कुछ   छिटकने लगा है ।  प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी और अन्य वरिष्ठ  भाजपा नेता  की  इस 'पाखंडी  बाबा वाद '  पर  चुप्पी को मीडिया ने 'मोनी बाबा ' के दौर से भी बदतरीन और असहनीय माना है। इन घटनाओं पर केंद्र  सरकार की चुप्पी देशभक्तिपूर्ण कैसे  कही जा  सकती है ?

                             यह सुविदित है कि  संत रामपाल  २००६ में हत्या का  आरोपी  माना गया था , वह २००८ से जमानत पर चल रहा है।  तभी से उसकी अनेकों बार गिरफ्तारी टलती रही है । अपनी गिरफ्तारी पर इतने प्रबल प्रतिरोध बाबत उसका यह जबाब बहुत महत्वपूर्ण है कि "मुझे मेरे अनुयाइयों-भक्तों और चेलों ने बंदी बना रखा था '।उसकी इस बात पर यकीन क्यों न किया जाए ?  चेलों का  कहना है कि  बाबा संत रामपाल ने हम सबको बंदी बना रखा था।  इसे सिरे से ख़ारिज क्यों न किया जाए ?  सोचने की बात है कि  अकेला रामपाल २० हजार  उजडड  अंध श्रद्धालुओं  को कैसे रोक सकता है ?  आसाराम भी उतना ताकतवर नहीं था। उसे भी उसके बदमाश गुर्गों ने पहले तो  जेल तक पहुचाया बाद में 'अरण्य रोदन' में जुट गए। रामपाल ने कोर्ट की अवज्ञा की और पेशी पर नहीं गया।उसे   किसने  रोका यह अंतिम फैसला तो न्यायपालिका ही करेगी। किन्तु इतना तो एक अदना सा इंसान -जड़मति मूर्ख भी समझ सकता है कि  सुरंगे खोदना ,बंदूकें ,हथगोले चलाने ,पेट्रोल बम फेंकने और नेताओं से लेकर वकील -कोर्ट कचहरी तक अपना ताना - बाना  कायम रखने के लिए क्या एक ही शख्स जिम्मेदार ही सकता है ?  किसी भी ढोंगी बाबा ,संत  के दरबार में या  मठ , मंदिर ,मस्जिद ,चर्च ,गुरुद्वारे में  या मस्जिद  जैसे धर्म स्थल पर जो भीड़ जुटती है  क्या उसकी कोई जिम्मेदारी नहीं ? हालांकि जनता के इस तरह लाखों की तादाद में एकत्रित होने पर हादसों को पूरी तरह रोक पाना संभव नहीं किन्तु इन मेलों- ठेलों  और बाबाओं के आश्रम  - पंढालों  पर 'स्पेस सेटेलाइट' की नजर अवश्य होनी चाहिए। चाहे मजहब -धर्म का समागम हो या राजनैतिक सम्मलेन -सभी  का  पूरा  लेखा -जोखा   देश की संसद और सरकार के पास अवश्य  होना चाहिए।

                       हालाँकि  गनीमत यह है कि  ऐंसे बाबाओं कि  या किसी भी अन्य गैर सम्वैधानिक सत्ता केंद्र की ओकात नहीं है कि  'न्यायपालिका ' की ताकत के सामने टिक सके।  जिस न्याय पालिका ने सीबीआई के चीफ को ही रिटायरमेंट  से १२ दिन पहले ही  'झंडू बाम' बना डाला तो इन  आबाओं  -बाबाओं की ओकात ही क्या है ?  वेशक  इस दौर में  न्याय मंच से जो  अधिकांस बेहतरीन फैसले  देश के समक्ष अवतरित हुए हैं  उनसे देश का सम्मान और आत्म विश्वाश  तो अवश्य ही लौटा है। आसाराम को सबक सिखाने के बाद लगता है की क़ानून अब  रामपाल  को  भी अपने  निशाने पर  ले चूका है। उस पर  न्यायिक अवमानना के अलावा - देश द्रोह ,  श्रद्धालुओं को जबरियां बंधक बनाना ,भूमिगत सुरंगें बनाना  -बिस्फोटक असलाह  जुटाना  ,राष्ट के खिलाफ जंग का ऐलान करना तथा मीडिया और पुलिस पर हमला  करना  इत्यादि इतने मुकदमे  आरोपित हैं कि   इस पाखंडी संत को  फांसी की सजा भी शायद  कम ही पड़ेगी।
                                    मार्क्स ने तो सिर्फ कहा था कि  'धर्म -मजहब की अंधश्रद्धा एक अफीम ही है'।  किन्तु संत रामपाल  ,संत  आसाराम ने  तो पंचेन  बूटी  और मादक द्रव्यों के सेवन उपरान्त इस उक्ति को साबित भी कर दिया। पूँजीवादी  लोकतंत्र में   लालची पूँजीपति  और सत्ता के दलालों को  जनता  की  समस्याओं से ध्यान हटाने और  सत्ता के खिलाफ पैदा होने वाले जन संघर्ष को न्यूट्रीलाइज' करने के लिए - धार्मिक  अंधश्रद्धा और  पाखंडवाद को बढ़ावा दिया जाता है।  अब बाबा  और देवियाँ पैदा नहीं होते  बल्कि पैदा किये जाते हैं ।  जिस तरह  पाकिस्तान के मदरसों में मौलाना कम आतंकी ज्यादा पैदा  हो रहे हैं, उसी तरह भारत में और खास तौर  से गुजरात  के सरस्वती शिशु मंदिरों में  पाखंडी बाबाओं और सत्ता के दलाल नेताओं की पैदावार  बढ़ रही है।  आसाराम इसी तरह की पैदाइस है। वह अपने पूँजीपति  दलालों -चेलों के घटिया उत्पादों को बाजार में अपने नाम से बिकवाता रहा है । इन्ही धंधेबाजों के  मार्फ़त भोली भाली महिलाओं और लड़कियों का सगील हरण  भी करता रहा है  । आसाराम का तो  राम नाम सत्य होने वाला है। अब ये ढोंगी संत रामपाल भी कुछ दिनों देश के मीडिया  पर राज करेगा। इसकी लीलाओं के चर्चे होंगे।  यह कोई खास बात नहीं  कि   यह साला  हरामी दूध से  नहाता  था और  इसके शरीर के 'धोबन' से जो खीर  पकाई  जाती  थी ,उसी खीर को महाप्रसाद के रूप में 'भक्तो' अनुयाइयों और जायरीनों को प्रदान किया जाता था । जो लोग किसी बाबा ,साधु -संत या  किसी बड़े आश्रम ,मठ  या किसी भी मजहबी संस्थान से जुड़े हैं वे  इस घटना से सबक सीखने की कोशिश करे।

                  आसाराम तो शायद कभी न कभी छूट  भी सकता है किन्तु इस  देशद्रोही रामपाल  का बच पाना अब कदापि संभव नहीं है। इन गिरफ्दारियों  से पहले काँची  कामकोटि  पीठाधीश्वर स्वामी श्री  जयेंद्र सरस्वती  जी महाराज , स्वामी नित्यानंद , चन्द्रा स्वामी  भी हवालात की हवा खा चुके हैं। इन मठाधीशों के अलावा भी अनेक गुरु घंटाल ,बाबा,स्वामी,मुल्ला ,मौलाना,इमाम,पादरी ,ग्रंथी ,ज्ञानी और धर्मात्मा या तो जेल जा चुके हैं या किसी राजनैतिक संरक्षण के चलते अब तक बचे रहे हैं। चूँकि न्यायिक सक्रियता का नियम है कि  उसे समाज को पटरी पर चलाने के लिए निरंतर निर्बाध 'बलि' चाहिए इसलिए बहुत सम्भव है कि  आने वाले दिनों में न्याय पालिका द्वारा   और भी  धर्मान्ध दुष्ट जेल भेजे जाएंगे।  दो-चार को  फाँसी भी   हो जाए तो कोई आश्चर्य नहीं !

    तमाम  चिंतक ,वुद्धिजीवी ,लेखक ,संपादक,पत्रकार ,कवि   और खास तौर  से प्रगतिशील -जनवादी साहित्यकार इस विमर्श  में अपना सिद्धांत  पेश करते रहे हैं। जब कभी कहीं किसी सामाजिक ,सांस्कृतिक या साम्प्रदायिक विकृति , धर्मान्धता ,अशिक्षा और सामंती अवशेषों  के प्रति  अंधश्रद्धा का पर्दाफास होता है तो   आस्तिकता बनाम नास्तिकता का विमर्श खड़ा आकर दिया जाता है। यदि रामपाल के दुघ्ध स्नान  उपरान्त उसके  शरीर  की गंदगी को  खीर के रूप में सेवन करना आस्तकिता है तो इस  आस्तिकता से वह नास्तिकता बेहतर है जो  मेहनतकश  आवाम को  बेहतरीन इंसान बंनाने की तमन्ना रखती है।  इस अंधश्रद्धा के अपवित्र   पाखंडवाद को उद्दाम रूप प्रदान करने में  वैश्विक  पूँजीवाद  का अवांछनीय  सहयोग भी कमतर नहीं है। किन्तु  जो बुद्धिजीवी इस मजहबी उन्माद को  सभ्यताओं के संघर्ष में बदलते हुए देख रहे हैं या इसे वर्तमान  वैज्ञानिक भौतिकवाद का अनिवार्य  उत्पाद समझ बैठे हैं वे जनता  को उस की नकारात्मक मनोवृति से बचाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। वे धन्यवाद के पात्र हैं।
                                             वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर नजर दौड़ाएं तो स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है कि राष्ट्रों,समाजों,और व्यक्तियों  के उत्थान  पतन में सूचना - सम्पर्क क्रांति का ,शिक्षा का  साइंस एंड टेक्नॉलॉजी का और लोकतांत्रिक आकांक्षाओं की राजनीति का  बहुत ही  महत्वपूर्ण  और बराबर का अवदान  हो रहा है।
 कतिपय उत्तर आधुनिक  अवयवों ने अपने दौर के रासायनिक योगकीकरण से दुनिया के तमाम  राष्ट्रों ,समाजों , सभ्यताओं  और धार्मिक आस्थाओं में चरम पतन  के भयानक  रसातल  भी निर्मित किये हैं।  मसला   चाहे वो  इजरायल बनाम फिलिस्तीन  का  हो !  मसला चाहे वो अफगानिस्तान में तालिवान वनाम लोकतंत्र का हो !  मसला  चाहे वो सीरिया -इराक  में आईएस के लड़ाकों  के भयानक खूनी  मंजर का  हो ! मसला चाहे पाकिस्तान  के आतंकी चेहरे का  हो  ! मसला चाहे अमेरिका ,यूरोप,या  नाटो की शर्मिंदगी का हो  ! मसला  चाहे भारत में  कश्मीर ,पंजाब में आतंकवाद का मसला हो या मसला यत्र-तत्र -सर्वत्र धर्मान्धता  - साम्प्रदायिकता का हो !  ये  सभी मसले शायद  मानव सभ्यता के प्रारंभिक दौर में ही शुरू हो चुके  होंगे ।धरती की भौगोलिक स्थति ,सामाजिक -आर्थिक उत्थान-पतन और वैश्विक यायावरी ने इसे   सामंती या राजशाही के दौर में  परवान चढ़ाया होगा। कहीं कहीं राज्य सत्ता को इस पाखंडवाद से मदद मिली होगी। कहीं -कहीं  राज्य सत्ता ने इस पाखंडवाद को सर  चढ़ाया होगा। इस दौर में भी यह सिलसिला जारी है।  किन्तु वर्तमान उन्नत  लोकतान्त्रिक  या प्रजातांत्रिक और खुले  समाज में मानव  अधिकार  , वैयक्तिक  स्वतंत्रता के नारों के बीच पतन की संभावनाएं कमतर ही हैं। वेशक लोगों की  उत्थान में उतनी रूचि नहीं दिखाई जितनी कि  नैतिक पतन में उत्साह दिखाया जाता है। किन्तु  पतन  जब अपने चरम पर हो  तो उत्थान का ध्रव  खुद-ब- खुद सक्रिय हो उठता है.  चूँकि इस युग में  साक्षरता बढ़ी  है  ,जीवन यापन के संसाधनों में इजाफा हुआ  है  और चौतरफा  'उदारवाद' का नारा लग रहा  है  तो यह कैसे संभव है कि  अंधश्रद्धालु  धर्मान्धता के पोखर में डुबकी नहीं लगाएँगे ?

                     श्रीराम तिवारी 

 

गुरुवार, 20 नवंबर 2014

धर्मान्धता ने कर दिया ,धरती को बेनूर ।।


               देश तरक्की का मचा  ,यत्र-तत्र बहु शोर।

             एफडीआई  वकालत ,करते हैं मुँह  जोर।। -[१]



            असल -धन्य वे शूरमा , वतनपरस्त   इंसान।

            राष्ट्र निर्माण के हेत वे , होते गए कुर्बान ।। - [२]



            कोटि  जतन गांधी  किये , जनता हुई न एक ।

           लोकतंत्र   में घुस गए ,दीमक  दुष्ट अनेक।। -[३]



         सुखी  हुए वे लोग सब  , किये गलत जिन काम।

         मेहनतकश  भूँखों मरा  ,दवी  -कुची  आवाम।। -[४]




           धरम  के  ठेकेदार  कुछ ,  बाबा   भये  यमराज ।[[[५]

           देते रहे सुपारियाँ  ,     नेता       धंधेबाज ।।




           भोले -भाले लोग  कुछ  ,घनचक्कर के  भूत ।

          अनुयाई बन मिट गए   , खुद हो गए यमदूत।।[६]



          ठिये  धर्म -मजहबों  से ,नैतिकता भइ  दूर  ।

          धर्मान्धता ने कर दिया  ,धरती को  बेनूर ।। [७]


                 श्रीराम तिवारी


          

कालेधन की भूमिका ,झलक रही घनघोर।

  राजनीति  जबरन घुसे  , मजहब  -ठेकेदार।

  फ़िदा बुखारी  'आप' पर, फिर फतवा  तैयार।।


     ज्यों जनता धर्मांध है  , बाबाओं की भक्त  ।

     गुरमित  राम रहीम है  , बी जे पी  का  भक्त ।।


      ठिये  धर्म -मजहबों  हुए  ,पाप पंक में चूर ।

       भेड़ तंत्र की भीड़ में , नैतिकता बेनूर ।।


      दिल्ली राज्य  चुनाव में , दुष्प्रचार पुर जोर।

      कालेधन  की भूमिका  ,झलक रही घनघोर। ।

                                      श्रीराम तिवारी



     

सोमवार, 17 नवंबर 2014

आनन्दम् के दोहे :- श्रीराम तिवारी !




         जीवन के उत्तरार्ध यदि ,  हो जिजीविषा मंद  ।

          वरिष्ठ जनों के लिए है ,  आनन्दम् -आनंद।।  [१]


         गतिविधियाँ मनोरंजनी  , होतीं  यहाँ सम्पन्न।

        मिलती  है  नव ऊर्जा ,    मन  होता   प्रशन्न।।  [२]


        मानव  मूल्य सद्गुण सभी, आनंदम  के प्राण ।

         कहने को  हैं बृद्धजन  ,  दिखते  सभी  जवान।। [३]


          यदा-कदा  आते यहाँ ,डाक्टर  बड़े महान  ।

      खण्डेलवाल जी  के जतन ,करते  रोग निदान।।  [४]


      निर्धन बच्चों को यहाँ ,शिक्षा मिले  निशुल्क  ।

      सुरेन्द्र जैन  का ऋणी तो  ,सदा रहेगा मुल्क।।  [५]


        परिचर्चा अध्यात्म  की ,सार्थक  नित्य नवीन।

       ब्रह्म ज्ञान  देते हमें  ,   लालवानी   प्रवीन।।  [६]


      कविता-कथा -अनुभवों का , अविरल काव्य प्रवाह ।

     मिश्राजी और  रमा जी,    सूत्रधार    भइ      वाह   ।।  [७]


     सभी सदस्य  सक्रिय रहें, आनंदम  के  संग  ।

     नरेद्रसिंह जी  देखते ,सपने  नित   नव रंग   ।।  [८]


    वैसे तो सब ही यहाँ  , बड़े  -बड़े  -उस्ताद।

   काव्य शील  महिलाओं की ,यहाँ बड़ी तादाद। [९]



 ज्योत्स्ना जी  के हिये  ,योग ध्यान  का वास ।

 रेखासिंह  जी  निष्णांत हैं ,चित्र कला में खास।।  [१०]



पाठक  जी  बड़जात्या , दोनों  ही कैलाश ।

जिनके मन मंदिर सदा , आनंदम  का वास।।  [११]


  यदा -कदा  मिलता यहाँ ,ज्ञानामृत आनंद ।

   देते  जब गीता प्रवचन , स्वामी  प्रबुद्धानंद।।[१२]


  आनंदम  में हो रहे , खेल -मेल अरु योग ।

 श्री भाटिया जी करें , दिल से नित  सहयोग ।।  [१३]


  जन्म दिन  की  इस दौर  में ,  खूब  मची  है होड़ ।

  किन्तु आनन्दम का कहीं  ,नहीं मिलेगा तोड़ ।।[१४]


     भजनों की  बहती यहाँ  , अविरल  धार अखंड ।

    मांडगे जी  जैसा  मिला  , संगीतज्ञ  प्रचंड ।।  [१५]


    उचित प्रशिक्षण मदद भी   , जो बहिनों हैं  दीन।

     जिनके नहीं आजीविका , संसाधन से  हीन।।  [१६]


     स्वावलम्बन के लिए , नव कुटीर उद्योग।

     माँ शारदा  मठ   करे  ,  आनन्दम्  सहयोग।। १७]



    मैंने  थोड़ा  ही  लिखा ,   शेष बहुत कुछ और।

   श्रीराम   का  सेतु है ,    आनन्दम्   इंदौर।। 


                             :- श्रीराम तिवारी



       

रविवार, 16 नवंबर 2014


    बुरा  बक्त  किसी  का बतलाकर नहीं आता।

   किया गया कुछ भी किसी का बेकार नहीं जाता।।

   दूध के  फट  जाने पर दुखी हो जाते  हैं नादान ,

   शायद  उन्हें  रसगुल्ला  बनाना  नहीं  आता।

   खुदा   क्यों  देता  है  उसको  खुदाई  इतनी ,

  जिसको अपने सिवा कुछ  भी नजर नहीं आता।।

   माना  कि  बहारों का असर है फिजाओं में ,

   फिर  भी गुलों से यारी निभाना नहीं आता।

   वेशक उन्हें  किसी से कोई गिला शिकवा न हो ,

 लेकिन अपनों को मनाना  भी तो उन्हें  नहीं आता ।।

   खुदा की  रहमत से बुलंदियों पर है उनका मुकाम,

    डर है कि  उन्हें जमीं  पर पाँव ज़माना नहीं आता।

   वो क्या खाक कला -साहित्य-संगीत-सृजन ,

   जिसे मजलूमों के आंसू पोंछना भी नहीं आता।।

                           श्रीराम तिवारी

 

शुक्रवार, 14 नवंबर 2014



    वही इंसान सबसे बड़ा विद्वान है जो ये जानता है कि वह क्या नहीं जानता। वही इंसान  राज्य सत्ता  संभालने के योग्य  है जो यह मानता है कि  हवा,पानी, धरती ,आसमान और सूरज पर न केवल इंसानों  अपितु  सृष्टि के समस्त प्राणियों का  भी  अपितु समान अधिकार है।  वही इंसान महान है  जो सदा कमजोर  और पीड़ित के  पक्ष में तथा उत्पीड़क - शक्तिशाली के विपक्ष में अपना अभिमत रखने  का हौसला रखता है। वही इंसान सम्माननीय है जो  सर्वजनहिताय के लिए बलिदान के  मूल्यों,सिद्धांतों  में यकीन रखता हो।  वही मेहनतकश व्यक्ति और समाज सर्वश्रेष्ठ है जो  श्रमपूर्ण आजीविका का अनुशीलन करता है।   जिस देश में ,जिस समाज में और जिस परिवार में ऐंसे श्रेष्ठ नर-नारी विद्यमान हों  उसे  किसी क्रांति की जरुरत नहीं। ऐंसे लोग  फोटो खिचवाने के लिए झाड़ू हाथ में नहीं लिया करते। ऐंसे लोग अपने पूर्वजों की निंदा नहीं किया करते।   ऐंसे लोग  भृष्ट और बदमाश अमीरों के कालेधन को क़ानून से मुक्त रखने की जुगाड़ नहीं जुटाया करते। ऐंसे लोग जो लफ्फाजी ,असत्याचरण और  पैसे की ताकत से सत्ता हथिया लेते है  वे धोखे की टटिया  को ज्यादा दिन महफूज नहीं रख सकते।  ऐंसे लोग निरंतर  भयभीत रहा करते हैं। ये अपने ही मित्रों और शुभ चिंतकों पर यकीन नहीं करते। इनका पराभव सुनिश्चित है।
                                                                                                

                        :श्रीराम तिवारी   
टी वी दर्शकों  का विमर्श :-


                    भारत के दर्शक सभी ,हो जाते उद्दाम।

                   जब रोहित छक्का  जड़े ,मुक्का मेरीकॉम।। \




               किसी विदेशी टीम की , हो जाये यदि  हार।

                भारत में  हर  जीत पर ,  मन जाता त्यौहार।।




             सास बहु के सीरियल , कुटिल कषाय कुलीन   ।

                सीरियल निर्माता हुए  ,निज स्वारथ में लीन ।।



              टीवी पर  देते रहे   , स्वर्ग  प्राप्ति की टिप्स।

              नर्कवास उनका हुआ  ,  हुए जेल में फिक्स ।।


         
               उम्र बहत्तर साल की , महानायक अमिताभ ।

                टीवी पर  करते वही ,जिसमे हो कुछ लाभ ।। 



              ट्रांसपोंडर  भर चुके , उपग्रह दूर संचार।

              गलाकाट प्रतियोगिता ,हो रहे केबल 'वार'।।


                                                          श्रीराम तिवारी

गुरुवार, 13 नवंबर 2014

सरदार पटेल बनाम पंडित नेहरू का तुलनात्मक विमर्श देशभक्तिपूर्ण नहीं है।

    

    नदियों-झरनों का कल-कल संगीत ,पंछिओं -पखेरुओं का कलरव गान ,प्राकृतिक सौंदर्य बोध का रसास्वादन करने के लिए न केवल ज्ञानेन्द्रयों की बल्कि  ह्रदय की सुग्राह्यता  भी अत्यंत आवश्यक है.शास्त्रीय संगीत का आनंद  उन्ही को प्राप्त हो सकता है जो सरगम की समझ  के साथ -साथ  ह्रदय की विशालता को धारण किया   करते हैं। पंडित जवाहरलाल नेहरू के अवदान को वही समझ सकते हैं जिन्हे न केवल स्वाधीनता  संग्राम का सही इतिहास मालूम है ,बल्कि जिनके  दिलों  में अपने शहीदों और पूर्वजों के प्रति आदर सम्मान का भाव है। वेशक   पंडित नेहरू   के कारण ही आज भारत  जैसा विराट मुल्क  दुनिया का सबसे शानदार लोकतंत्र है।
                                                                  पंडित नेहरू की विचारधारा और कार्यशैली से असहमत उनके समकालीन प्रतिश्पर्धियों ने भी  उनकी महानता का  लोहा माना है।  पंडित नेहरू की लोकतान्त्रिक आस्था का एक बेहतरीन उदाहरण यही है कि ,उनके सबसे बड़े आलोचक -ईएमएस नम्बूदरीपाद , हरकिशन सिंह सुरजीत ,श्रीपाद अमृत डांगे ,ऐ के गोपालन , सुभाषचन्द्र  बोस  ,जैनेन्द्र,लोहिया ,श्यामाप्रसाद मुखर्जी ,दीनदयाल उपाध्याय ,अटल बिहारी बाजपेई और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर  भी यह अस्वीकार नहीं कर  सके कि  नेहरू ने हमेशा लोकतांत्रिक -धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणतंत्र भारत के निर्माण की ही कामना की है।  वेशक पंडित नेहरू न तो लेनिन बन सके और न ही माओ  बन पाये , किंतु वे जैसे भी थे  उनकी उस महानता का दुनिया में  कोई  सानी नहीं  है।  भारत भी न तो सोवियत संघ बन  सका और न ही चीन। किन्तु भारत फिर भी  दुनिया में बेजोड़ लोकतांत्रिक -धर्मनिरपेक्ष  राष्ट्र तो है।  पंडित नेहरू  इस महान  देश के  प्रथम  प्रधानमंत्री थे।  क्या यह  उत्तरदायित्व उन्हें किसी ने खैरात में दिया था ?यदि  भारत अपने प्रजातांत्रिक मूल्यों के लिए ,अपने धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के लिए संसार में  आज सबसे अधिक सम्मानीय है।  तो क्या यह अंग्रेजो की बदौलत है ? क्या यह किसी साम्प्रदायिक संगठन की बदौलत है ?
                                                            कुछ लोगों को पंडित नेहरू के व्यक्तित्व से बेजा शिकायत है कि  वे हिन्दुराष्ट्र के लिए समर्पित  क्यों नहीं  रहे । ऐंसे लोगों को चाहिए कि भारत की,विश्व की  और भारत के पड़ोस की सामाजिक -राजनैतिक  पृष्ठभूमि का सिंहावलोकन करें। यदि इन्हे लगता है कि  यह संभव है तो 'मत चूके   चौहान '.  वैसे भी अभी तो संघ परिवार की बीसों घी में हैं। मोदी जी प्रधानमंत्री हैं। संसद में पूर्ण बहुमत प्राप्त है। कर सको तो करके   दिखाओ ! दम  है तो  लाल किले पर 'गरुड़ध्वज' फहराकर  दिखाओ  ! नेहरू पर  या किसी और प्रगतिशील  -धर्मनिपेक्ष नेता पर तोहमत लगाना आसान है किन्तु करके दिखाओ तो जाने !
                                                            कुछ लोगों को शिकायत है कि पंडित नेहरू ने लेडी माउन्टवेटन से प्यार क्यों किया ?  सवाल किया जा सकता है कि जिस ब्रटिश साम्राज्य के ऐयाश शासकों ने गुलाम भारत की   माता -बहिनों -अबला -सबला  अनगिनत -नारियों    का  २०० साल तक देह शोषण किया है। यदि  उसी ब्रटिश साम्राज्य   के प्रतिनिधि - वायसराय की  गोरी मेम  पंडित  नेहरू   के पीछे पड़  गयी  तो इसमें उनका क्या  कसूर ?   क्या यह भारत की समस्या है ?जिन लोगों ने  सोसल मीडिया पर कट-पेस्ट की कला से आपराधिक कृत्य किया है, क्या  लेडी माउन्टवेटन उन  लफंगों की अम्मा लगती है।  क्या इन  कृतघ्न लुच्चों को मालूम है कि  यह पंडित नेहरू ही थे जिन्होंने  आजाद हिन्द फौज के सेनानियों की  खातिर काला कोट पहनकर उनका मुकदद्मा लड़ा था।  उन्ही नेहरू की वजह से ही गुलामी के  उस दौर में भी  जब सारे  भारतीय उपमहाद्वीप में  ये  नारा लगता था  कि :-

  लाल किले से आई आवाज !    सहगल ढिल्लन शाहनवाज    !

 ये गगनभेदी  नारे ब्रिटिश साम्राज्य  को हिलाने में  सक्षम थे। किन्तु   इन दिनों  भारत में कुछ  लोगों को गोडसे की सवारी आने लगी  है,   उन्हें  लगता है काश सरदार पटेल  ही भारत के  प्रथम प्रधानमंत्री होते ! वेशक सरदार पटेल भी इस योग्य थे।  किन्तु उससे क्या ? भारत के प्रधानमंत्री तो चरणसिंह और देवेगौड़ा भी बन चुके हैं।इन लोगों ने क्या भेला  उखाड़ लिया ? सरदार होते तो क्या कर लेते ? कामरेड ज्योति वसु को सीपीएम ने प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया , कोई भी  कह सकता है कि  काश वे प्रधानमंत्री होते ! मैं तो  डंके की चोट कहता हूँ कि  जो भी हुआ -पीएम बना वही माकूल था। भारत की यही नियति थी।  आज जो सत्ता में हैं  उनको देखकर कांग्रेसी सोचे होंगे कि  काश राहुल गांधी प्रधानमंत्री होते ! वामपंथी सोचते होंगे कि  काश कोई कम्युनिस्ट इस देश का प्रधानमंत्री होता ! कैसे  होता  ? होना तो नरेंद्र मोदी को था ,इसलिए वे हैं। इसमें काश ! ये होता  !  काश वो होता से कुछ नहीं होता ! मैं ये भी नहीं कहूँगा कि  यह ईश्वर की मर्जी है।  जिस तरह अभी-अभी हुआ कि  भारत का मीडिया ,भारत के पूंजीपति और  कांग्रेस की असफलता ने ही तय कर दिया  कि मोदी जी  ही प्रधानमंत्री होगे तो वे हैं।इसी तरह स्वतंत्र भारत के ततकालीन नेताओं ,पूंजीपतियों  और कांग्रेस ने भी कुछ इसी तरह  पंडित नेहरू को अपना नेता चुना होगा । ये सभी याद रखें कि  ' पंडित नेहरू   की आलोचना करने  की  औकात किसी की नहीं है ,जो कर रहे हैं वे भी जान लें कि  उनके पूर्वजों में भी नहीं थी।
                  पंडित नेहरू भारत के महानतम रत्न थे ,उनके  पिता इतने अमीर थे की आज के अम्बानी ,अडानी, मित्तल जैसे  लोग कहीं नहीं टिकते।   फिर भी उन्होंने सब कुछ देश के स्वाधीनता संग्राम को अर्पित कर दिया  .  कुछ अज्ञानी और अनभिज्ञ लोग   सरदार  पटेल बनाम  पंडित नेहरू का तुलनात्मक  विमर्श  पैदा कर  कर रहे हैं जो कि  देशभक्तिपूर्ण कदापि नहीं है। काश  जहाँ हिमालय है वहाँ आल्पस होता ! काश जहाँ गंगा है वहां गोदावरी या मिसीसिपी होती। काश  .... ! यह सिलसिला तो अजर अमर है ! फिर भी आज तो पंडित नेहरू याने "नेहरू चाचा '  का हैप्पी बर्थ डे है।  बधाई !
                                               
            श्रीराम तिवारी    

मंगलवार, 11 नवंबर 2014

'दोहे -उत्तर-आधुनिक ' :- लिखते कवि श्रीराम !

                     संचार क्रांति का विमर्श :-


[१]            यह युग उत्तर -आधुनिक ,  तकनीकी  उत्कर्ष  ।

               'फेक -वर्चुअल' पर टिका  , जग व्यवहार विमर्श ।।


[२]             गूगल   ट्विटर  फेसबुक ,   इंटरनेट   संचार।

                  सर्च इंजन  में छुपा  है ,   आभासी      संसार।।


[३]               गजब  क्रांति संचार की   ,कम्प्यूटर उथ्थान ।

                    मोबाईल सिम बन गई  ,  व्यक्ति की पहचान ।।


[४]               नेता  मंत्री  संतरी ,  जाने गुणा न  भाग  ।

                   आतंकी  तक  सीख गए   ,डिजिटल एनालॉग।।


[ ५  ]             पुलिस तंत्र को भेदकर,  सक्रिय हैं हैकर्ष।

                     हाई  टेक अपराध भी , होने लगे सहर्ष।।

              

  [६ ]                  खास हुआ कागज कलम ,  ब्रॉड बेंड अब आम।

                         लेपटॉप पर लिख रहे   , दोहे कवि  'श्रीराम'।

                   




              कालेधन का विमर्श :-


[ १ ]                यूपीए के दौर में , भृष्ट  भये  धनवान।

                     अर्थनीति मनमोहनी ,आत्मघात सामान ।।


[ २ ]               रेल-तेल -कोयला -खनिज ,कॉमनवेल्थ के गेम।

                    कांग्रेस को  खा  गए,  टू जी   थ्री जी   स्कैम।।


 [३  ]             खूब तरक्की  कर  चुके ,   नेता  और दलाल  ।

                    अर्थतंत्र  को लील गए  ,काले धन  के लाल  ।।



     [ ४ ]          हो हल्ला  अण्णा  किया ,  रामदेव  तकरीर ।

                     सुब्रमण्यम  स्वामी  की भी , चली नहीं तदवीर  ।।



     [ ५ ]         प्रशांत भूषण   याचिका , रंग लाई  कुछ  लाल।

                     न्याय पालिका से डरे ,  काले  धनिक  दलाल ।।


     
       [६]                रातोंरात  खाली  हुए , स्विस बैंक अकाउंट।

                            धेला  मिला ने देश  को , ब्लैक मनी अमाउंट। ।


   [७  ]             अर्थनीति   दौर की    घृत ले  पियो  उधार  ।

                       चार्वाक दर्शन  बना  ,   फिर से नव आचार  ।।


  [८  ]              उसी तर्ज  चलने लगी ,  नव  मोदी सरकार।

                          पूँजी के विनिवेश की , इनको भी  दरकार।।


   [  ९]                   बी जेपी को मिल गया ,धनी -मनी  का साथ।

                            मोदी जी की पीठ पर ,अम्बानी का हाथ।।


   [ १०  ]                 अमेरिकी  जिस  नीति ने  ,  किया मुल्क  हलकान।

                             अरुण  जेटली   कर रहे   ,  उसका  ही  गुणगान ।।


     [  ११]                  हानि होती देश की , लाभ  कमाएँ  कमीन ।

                               एडम स्मिथ  कीन्स का  , है सिद्धांत नवीन  ।।



           [  १२]              नयी  आर्थिक नीति की ,महिमा बड़ी अजीब।

                                दस-बीस  धनवान भये,  कोटिक हुए गरीब।।



         [१३  ]                  नव्य  उदारीकरण है , निजीकरण   की जान।

                                    पब्लिक प्रायवेट पार्टनर ,पी पी पी पहचान।।



            [१४ ]                     होटल हो  या  खेत  हो,   फैक्टरी - खलिहान।

                                         मुफ़लिस बच्चों का कहाँ , होता है कल्याण।।



                  [१५  ]          देश बनें उनके लिए , जिनकी बखत  विशेष।

                                     निर्धन का होता  नहीं , कोई   अपना   देश।।



                               श्रीराम तिवारी



                 लोकतंत्र का विमर्श :-


          [१  ]        प्रजातंत्र  की  कृपा  से , भृष्ट  हुए   बलवान।

                        अब तो शोषक  भी करें , इसका ही  गुणगान।।



    [२  ]               कैसे   कहें  मजबूत   हैं  , लोकतंत्र  की  नीव ।

                         अल्पमती  शासन करे, बहुमत   है निर्जीव  ।।



[३ ]                     कौम -जाति  के चौधरी , ठस नौटंकीबाज ।

                           राजनीति के मंच से , गरजत हैं लफ़्फ़ाज़।।



[४ ]                      शोषण - उत्पीड़न -जुलुम , सिस्टम भृष्ट कमजोर।

                             व्हिसिल व्लोवर  मीडिया ,  चौकस   है  चहुँ ओर   ।।



[  ५ ]                        सीमाओं पर  दिख रहे , घातक दुष्परिणाम ।

                                 रंचमात्र   रुकते नहीं ,   कालेधन के काम।।



[६ ]                         भृष्टाचारी  तंत्र  ने ,  पैदा किया जूनून।

                               रिश्वत को पर लग गये  ,विफल दंड  क़ानून  ।।



[७ ]                      नयी  आर्थिक नीति की ,महिमा बड़ी अजीब।

                           दस-बीस  धनवान भये,  बेबस   वतन गरीब।।


[८ ]                   नव्य उदार वैश्वीकरण , निजीकरण बलवान।

                        पब्लिक प्रायवेट पार्टनर ,पी पी पी पहचान।।


[९ ]     होटल हो  या  खेत  हो,   फैक्टरी - खलिहान।

           मुफ़लिस बच्चों का कहीं ,हुआ नहीं कल्याण।।


[१० ]          देश बनें उनके लिए , जिनकी बखत  विशेष।

                 निर्धन का होता कहाँ , कोई   अपना   देश ।।


[११ ]          हानि होती देश की , लाभ  कमाएँ  कमीन ।

                एडम स्मिथ -कीन्स के , ये  सिद्धांत नवीन ।।



            मोदी उद्भव का विमर्श :-


               खूब चली मोदी लहर , रहा संघ सिरमौर।

                 राजनीति  में थम चुका ,गठबंधन का दौर।।



              भूतपूर्व पीएम थे , इजरायल के एक।

              शिमोन पेरेज  जी  ,कह  गए सच्ची  एक।।



                                      निंदा या तारीफ नहीं ,झूंठ न समझे कोय।

                                     मोदी में उनको दिखे ,नेहरू गांधी दोय।।



                                जो बगिया मनमोहिनी , वैश्विक पूंजीवाद ।

                                मोदी जी भी दे रहे ,उसी को पानी खाद।।                                            


            
                         बीजेपी को मिल गया ,धनी -मनी  का साथ।

                         मोदी जी की पीठ पर ,अम्बानी का हाथ।।

           

                    लिए गजब की लालसा  , नए  उत्साहीलाल।

                पूँजी मिले विदेश से , किसी तरह  फिलहाल ।।



                कोटि जतन मिन्नत करी ,  अमित -समिट मनुहार।

                     रेड- टेप   ढीले-किये  ,   खोले सकल बाजार ।।



                    आनन फानन कर दिया  ,एमएनसी  को काल ।

                     डॉलर लेकर आये न ,   फिर भी  गोरेलाल।।


                         बढ़ते व्यय के बजट की ,अविचारित यह नीति।

                          ऋण  लेकर घी  पी चलो ,  चार्वाक  की  रीत ।।




                        निजी क्षेत्र के कर कमल,  राष्ट्र रत्न नीलाम।

                         ओने-पौने  बिक  गए , बीमा      टेलीकॉम।।



                        जब तक रहे  विपक्ष में ,रहा स्वदेशी याद।

                       आज विदेशी का वही  ,  करते  जिंदाबाद।।

                                                     
                                                    श्रीराम तिवारी


   टी वी दर्शकों  का विमर्श :-


          भारत के दर्शक सभी ,हो जाते उद्दाम।

                  विराट  जब छक्का  जड़े ,मुक्का मेरीकॉम।। \




          यदि क्रिकेट के खेल में ,  होय पाक की हार।

                भारत में बिन तिथि के ,  मन जाता -त्यौहार।।




 सास बहु के सीरियल , कुटिल कषाय कुलीन   ।

              ज्ञानी-ध्यानी हो रहे ,निज स्वारथ में लीन ।।



   टीवी पर  देता रहा   ,स्वर्ग  प्राप्ति की टिप्स।

             व्यभिचारी  वो आजकल  ,हुआ जेल में फिक्स ।।


                                                         श्रीराम तिवारी


                सीमाओं पर झगड़े  के दोहे :-



 [ १ ]         ताकत बढ़ गई चीन की ,दुनिया में  बेजोड़।

               भारत भी करने लगा ,कुछ-कुछ उससे होड़।।


 [ २ ]          अतिक्रमण सीमाओं पर ,हुआ हजारों बार।

              अब तक कुछ न  निकल सका ,बातचीत का सार।।


[३  ]          पश्चिम की सीमाओं पर , नाहक ठनी  है रार।

              दहशतगर्दी  बन  चुके ,पाकिस्तान का  भार।।


[ ४ ]           काश्मीर  में मच रही ,फ़ोकट की तकरार।

                  फौजी पाकिस्तान के ,  छिपकर करते बार।।


[५  ]             बेकारी  से तंग हो ,युवा   बिकें    वे भाव

                    दहशतगर्दी बन गई ,मानवता का घाव।।


  [ ६ ]            धरती अम्बर सिन्धु सब ,भारत के अनुकूल।

                      किन्तु  दुश्मन दे  रहे।, भारत को त्रयशूल।।


[७  ]           भारत के इस दौर  का ,यही असल   इतिहास।

                  झगड़ों की जड़ छोड़ गए ,कुछ अंग्रेज भी खास।।


[8 ]                जनता  इस महाद्वीप की ,  सहज एक परिवार।

                     सम्प्रदाय -जातीयता   ,कर रही बंटाढार।।


                                               श्रीराम तिवारी

              


           
   आरक्षण के दोहे ;-



                                         आरक्षण अवलम्ब बिना  ,बाबा भीम महान।।

                                          संपादित  वे  कर गए  ,भारत का संविधान ।।


 
                                         आजीवन भुगती कठिन ,जाति -वर्ण  की पीर।

                                           बिन आरक्षण क़ानून  के , हुआ दवंग कबीर।।



                                            आरक्षण  की वैशाखियाँ , नहीं वतन के जोग ।

                                              भारत जन को बन गयी ,यह संक्रामक रोग  ।।


                                   
                                            मल्टीनेशनल   दे   रहे  , योग्य  सवर्ण   को  जॉब।

                                             निर्धन का    होता नहीं ,  कहीं   भी   पूरा   ख़्वाब।।



                                             जात-पाँति  के नाम  पर, नेता बने अमीर ।

                                              नाचे-कूंदे बंदरिया ,  खाएँ  मदारी  खीर।।

                                           
                                              
                                          अण्ड -गण्ड  जिनको नहीं , अफसर  बने  प्रचण्ड ।

                                           आरक्षण  की कृपा से   ,  कौवे   कागभुशुण्ड ।।


                                    
                                         सबल सवर्ण दलित दोउ  , हृदयहीन खुदगर्ज।

                                          निर्बलजन पर थोपते ,    बेकारी   का    मर्ज।।



                                         रिश्वतखोर - मक्कार -ठग , ये हैं  नीच निदान ।

                                        ऊँची जात  वो  ही असल , मेहनतकश इंसान ।।



                                         सकल जाति सब धरम  के ,होते मनुज समान।

                                           शोषक नीची जाति  है  ,उच्च मजूर किसान।।

                                        

                                        

                                          


                                        

                                              

                                           
                                           


                                          

                                            
         

          
 

रविवार, 9 नवंबर 2014

क्या नरेंद्र भाई मोदी जी विकाश और राष्ट्रवाद की युति का केंद्र बन चुके हैं ?




   कुछ लोगों के   इस  आकलन में दम  है  कि आइन्दा  एनडीए अब इतिहास की  वस्तु  होने के  करीब है. लगातार  शिवसेना को दुत्कारने , महाराष्ट्र में  बिना शिवसेना के ही -देवेन्द्र फड़नवीस सरकार बनाने,केंद्र  सरकार के  अपने 'जम्बो - एक्टेंडेड मंत्रिमंडल'[ यह सवाल तो लोग पूंछ ही रहे हैं कि मिनिमम गवर्मेंट-मॅग्ज़िमम एडमिनिस्ट्रेशन का क्या हुआ ?] में  उद्धव को चिढ़ाते हुए 'बलात' सुरेश प्रभु को  शामिल करने के बाद अब शक की कोई गुंजाइश नहीं कि  मोदी जी  को  गठबंधन मुक्त भारत चाहिए ! अर्थात राह के रोड़े उन्हें   कदापि पसंद नहीं। हरियाणा में  वे अपने बलबूते राज्य सरकार बनवाने के बाद  पंजाब और कश्मीर की ओर  भी  देख रहे हैं । 
                                          यदि  इन राज्यों में भी वे सफल हो गए तो  न  केवल  देश के क्षेत्रीय दल - वंशवादी राजनैतिक दल  बल्कि हर किस्म के राजनैतिक  गठबंधन  के दौर  भविष्य में  अप्रसांगिक होते चले जायँगे।   वैसे भी मोदी जी  को  बहाव के अनुकूल तैरने का सुअवसर  सहज ही प्राप्त हुआ  है. जिस तरह उनका कुछ काम तो कांग्रेस -  यूपीए ने आसान आकर दिया है।  उसी तरह कुछ काम अकाली , नेशनल कांफ्रेंस के  कुशासन तथा  यत्र-तत्र  - आतंकवादी और अलगाववादी भी आसान कर रहे हैं।  बदनाम ममता बेनर्जी और  सजायफ्ता जय ललिता को भी भान होने लगा है कि उनके  'क्षेत्रीय दलों की अम्माएं' कब तक खैर मनाएंगी ? इधर देश का  मध्यम  वर्गीय युवा और 'व्हाइट कालर्स  ' भी  मोदीजी की झाड़ू अदा से लेकर 'गंगा आरती' तक सब कुछ  पसंद कर रहे हैं। हम भले ही  मोदी के इन उपक्रमों का मजाक उड़ायें  या आलोचना करें किन्तु सच यही है कि  देश  की बहुसंख्यक आवाम अब नीतियों और कार्यक्रम में  नहीं बल्कि मोदी के व्यक्तित्व और कृतित्त्व में अपना कल्याण खोज रहे हैं। निसंदेह मोदी जी विकाश और  राष्ट्रवाद  की युति का के केंद्र बन चुके हैं।
                        उनसे असहमत लोग भले ही   उन्हें 'अधिनायकवादी' व्यक्तिवादी या वर्चसव्वादि  कहते रहें किन्तु एक बात तो माननी ही पड़ेगी कि  मोदी राजनैतिक  'सफाई'  में जरा ज्यादा ही  माहिर  हैं। पहले तो उन्होंने  बड़ी हिकमत और तिकड़म से संघ परिवार और भाजपा में अपने  ही संभावित प्रतिदव्न्दियों की सफाई की.उन्होंने  बड़े-बड़ों को कूड़ा करकट की मानिंद 'मार्गदर्शक' बना दिया। तदुपरांत अपने विश्वश्त सेनापति अमित शाह की मार्फ़त -शिवसेना और अपने बचे-खुचे अलायन्स के घरों में भी सफाई करने  भी जा पहुंचे।  सुरेश  प्रभु हों या  राव वीरेन्द्र सिंह  हों या रामकृपाल  यादव  हों , जो कल तक अपने पैतृक आकाओं के बगलगीर थे वे अब सभी मोदी जी की झाड़ू के तिनके बन चुके हैं। सा र्वजनिक स्थलों  की सफाई , भृष्टाचार की सफाई ,मुनाफाखोरों की सफाई ,मिलावटियों  की सफाई ,जमाखोरों की सफाई और कालेधन वालों की सफाई भले ही वे न कर सकें या ना  करना चाहें,  किन्तु  अपने अलायन्स पार्टनर्स दलों की सफाई में  तो  मोदी जी  जरूर सफल होते दिख रहे हैं।  वैसे भी  देश में भगवा  कलर  की एक दर्जन पार्टियां  होना कहाँ का न्याय है ? न  केवल 'भगवा परिवार' बल्कि 'जनता परिवार' कांग्रेस परिवार ' डीएमके परिवार ' सारे परिवार खत्म हों जाएँ तो  भी देश में  दो-तीन दल  तो बच ही जाएंगे !         
                        कहा गया है कि सर्वजन हितकारी ,क्रांतिकारी  विचारधाराएँ कभी खत्म नहीं होती ,अतएव मोदी की इस  राजनैतिक  सफाई के बाद देश में सिर्फ तीन  विचारधाराएँ  ही शेष रहेंगी। एक विचारधारा वह  जो  'संघ परिवार' की  है । एक वह जो गांधी-नेहरू-पटेल-आंबेडकर-मौलाना आजाद की  है एवं  जिसमे नरसिम्हाराव और मनमोहनसिंह ने आर्थिक  उदारवाद का मठ्ठा  डाला है।  याने यह नव्य  उदारवाद की   विचारधारा  ही अब  कांग्रेस की विचारधारा बन चुकी  है।  एक वह जो देश के गरीब -मजदूरों -किसानो और शोषित पीड़ित सर्वहारा वर्ग  की  याने 'लेफ्ट' की  विचारधारा है।  चूँकि नरेंद्र भाई मोदी ने अपनी मातृ  संस्था  संघ की विचारधारा में नरसिम्हाराव और मनमोहनसिंह की विचारधारा का घालमेल  कर लिया  है ,उसमे उन्होंने  बहुसंख्यक हिन्दुत्ववादी विचारधारा  का 'सत' भी दाल दिया है  जो कि  अब अल्पसंख्यक  कट्टरवाद के समक्ष  जस्टिफाई किया  जा  रहा  है। इसलिए  उनकी इस नई  विचारधारा याने  'मोदीवाद' के सामने अब  कांग्रेस की शाम  तो ढलने लगी  है।  इसीलिये आइन्दा जब जनता का इस 'मोदीवाद' से मोह  भंग होगा, तब  देश में शायद  दो ही विचारधाराओं का द्व्न्द शेष रहेगा ।  एक वह जो 'मोदी वाद' हैऔर  एक वह जो साम्यवाद है। 
   चूँकि चारों ओर अंधाधुंध  प्रचार-प्रसार और मीडिया की वर्चुअल इमेज का ही प्रभाव है की जनता के सवाल  हासिये पर हैं , चीन ,पाकिस्तान  की तो चर्चा ही  छोड़िये। अब तो  श्रीलंका  भी आँखे दिखा रहा  है। उसने चीन के फौजी  बेड़ों  को अपने पूर्वी तट   पर आवाजाही की निरापद छूट  दे रखी है। नेपाल  भी   आँखें तरेर रहा है। बांग्ला देश के आतंकी बंगाल में बमकांड कर रहे हैं।  'चोर-मचाये शोर'की तर्ज़  पर कालाधन रातों रात स्विस  बैंकों से गायब हो चूका है। क़ानून व्यवस्था की हालात ये है कि  स्वर्णिम गुजरात में ही एयरपोर्ट पर जहाज से  भेंस  टकरा रही है। अस्पतालों में दर्जनों की तादाद में गलत इलाज से या स्कूलों में जहरीले खानपान से बच्चे  रोज  मर रहे हैं।  हिंसा ,रेप और डकैती पर बात करना अब बेकार है. वनारस में मोदी -अम्बानी -बिड़लाओं की आरती  की आड़ में  लोग उन फैक्टरियों  और नालियों को विस्मृत कर चुके हैं जो की मलमूत्र से  गंगा को और ज्यादा गन्दी कर  रही है।
                    पेट्रोल डीजल चूँकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में  भारी गिरावट पर है इसलिए   दुनिया भर में कीमतें गिरी हैं। उसी के कारण सोना भी भूलुंठित हो रहा है। यदि भारत में पेट्रोल डीजल ३-४ रुपया सस्ता कर दिया गया तो उसका बहुत प्रचार किया जा रहा है। किन्तु  लोग पूंछ रहे हैं की  महंगाई किस चीज में  कम हुई  है ? डीजल-पेट्रोल सस्ता है तो ट्रासंपोर्टेसन भी सस्ता क्यों नहीं किया जा  रहा है ? इन तमाम  असफलताओं और आर्थिक संकट के वावजूद  भी  कुछ खास लोग 'मोदी मय ' हो रहे हैं।  क्या यह स्थायी भाव है ? क्या यह सिलसिला सदैव रह सकता है ? यह दुहराने की जरुरत नहीं कि  १६ मई  -२०१४ के बाद, भाजपा संसदीय बोर्ड का हर फैसला  चूँकि  नरेंद्र भाई मोदी का ही फैसला है।  अतएव  इस दौर  में आभासी उपलब्धियों का श्रेय उनके खाते में जमा किया जा रहा  है ।  लेकिन यदि  राष्ट्र के  साथ या राष्ट्र की जनता के साथ  कोई'हादसा'  होता है तो आइन्दा  नाकामियों का ठीकरा भी उन्ही के सर फूटेगा।

                     श्रीराम तिवारी