सोमवार, 21 सितंबर 2020

कविता -३

नेता मंत्री अफसर बाबू ,
इनपर नहीं किसीका काबू!
भले बुढ़ापा आ जाए पर,
इनकी तृष्णा है बेकाबू!!
नित नित नए चुनावी फंडे,
बदल-बदल कर झंडे डंडे!
राजनीति इतनी हरजाई
कि नहीं देखती संडे मंडे!!
अंधे पीसें कुत्ते खायें यह,
रीति सदा से चली आ रही!
बेरोजगारी महंगाई मिलकर,
भारत की तरुणाई खा रही!!
बार बार जनता को ठगते,
सत्ता की प्रभुता बढ़ भारी!
भारतकी छाती पर अपने,
खुद ही चला रहे हैं आरी !!
लोकतंत्र कहने भर को है,
फासिस्टों के हाथ हैं लम्बे !
बिन मतदान बिल पास हो रहे,
जय जगदम्बे जय जगदंबे !!
श्रीराम तिवारी
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माल गपागप खाएं चोट्टे,
कसर नहीं हैवानी में।
मंद मंद मुस्काए हुक्मराँ,
गई भैंस जब पानी में।।
सुरा सुंदरी शोहरत शक्ति,
सत्ता की गुड़ धानी में।
संविधान को धता बताते,
शासकगण आसानी में।।
लोकतंत्र के चारों खम्बे,
पथ विचलित नादानी में।
लुटिया डूबी अर्थतंत्र की,
मुल्क फसा हैरानी में।।
बेरोजगार खीजते मरते,
कोरोना की शैतानी में।
कारपोरेट पूँजीकी जयजय,
जीडीपी गई पानी में।।
निर्धन निबल लड़ें आपस में,
जाति धर्म की घानी में।
दल्ले अविरल जुटे हुए हैं,
काली कारस्तानी में।।
बलिदानों की गाथा भूले,
लिख गये भरी जवानी में।
संघर्षों की सही दिशा थी,
भगतसिंह की वाणी में।।
श्रीराम तिवारी

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